फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन संपादकीयमास्टरमाइंड का मारा जाना

मास्टरमाइंड का मारा जाना

  इसे पुलवामा की आतंकी वारदात का प्रतिशोध भी कहा जा रहा है। हालांकि खबर अभी सिर्फ इतनी है कि 14 फरवरी की आतंकी वारदात के षड्यंत्र में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी गाजी राशिद...

मास्टरमाइंड का मारा जाना
हिन्दुस्तानMon, 18 Feb 2019 11:56 PM
ऐप पर पढ़ें

 

इसे पुलवामा की आतंकी वारदात का प्रतिशोध भी कहा जा रहा है। हालांकि खबर अभी सिर्फ इतनी है कि 14 फरवरी की आतंकी वारदात के षड्यंत्र में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी गाजी राशिद उर्फ कामरान को सुरक्षा बलों ने मार गिराया है। उसके साथ एक स्थानीय आतंकी हिलाल भी मारा गया है। इसके साथ यह भी दावा किया गया है कि षड्यंत्र में शामिल एक और आतंकवादी की पहचान कर ली गई है और जल्द ही वह भी निशाने पर आ सकता है। सोमवार को हुई इस मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के चार जवान शहीद हो गए। लेकिन क्या इस मुठभेड़ को 14 फरवरी की वारदात का प्रतिशोध माना जा सकता है? इन दिनों टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया पर प्रतिशोध शब्द कुछ ज्यादा ही चर्चा में है, शायद इसीलिए सुरक्षा बलों की हर छोटी-बड़ी कार्रवाई में इसे देखा जा रहा है। हालांकि अभी जो हुआ है, वह एक नियमित तरीका है, जिसे सुरक्षा बल पहले भी करते रहे हैं। किसी भी आतंकी वारदात के बाद उसके मास्टरमाइंड का पता लगाना, उसे पकड़ना या मार गिराना ऐसा काम है, जिसे सुरक्षा बल काफी मुस्तैदी से करते रहे हैं। सोमवार को सुरक्षा बलों ने यही किया। उन्होंने इस काम को चार दिन में ही अंजाम दे दिया, इसके लिए हमें सुरक्षा बलों की तारीफ तो करनी ही चाहिए।
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों को जिस तरह कार बम विस्फोट में शहीद किया गया, उसका माकूल जवाब पाकिस्तान को दिया जाए, उसे सबक सिखाया जाए, इस पर देश में एक आम सहमति है। देश के सभी राजनीतिक दल भी इससे सहमत दिखाई दे रहे हैं। हालांकि इसके लिए प्रतिशोध शब्द कितना सही और कितना जरूरी है, यहां इस पर चर्चा करने का कोई अर्थ नहीं है। पुलवामा की आतंकी वारदात करने वालों को ऐसा सबक सिखाया जाना जरूरी है, जिससे भविष्य में वे फिर ऐसी जुर्रत न कर सकें। जाहिर है, जब भी सबक सिखाने का ऐसा प्रयास होगा, वह सोमवार की मुठभेड़ से कहीं बड़ा होगा। ऐसा प्रयास कब होगा? सैनिक होगा, या राजनयिक, या किसी किस्म की सर्जिकल स्ट्राइक? यह ऐसा मसला है, जिसे हमें पूरी तरह सरकार, सेना और विशेषज्ञों के विवेक पर छोड़ना होगा। इसका अर्थ यह भी नहीं कि सोमवार की कार्रवाई कोई छोटी सफलता है, लेकिन सबक सिखाने का काम जैसे भी कभी होगा, इससे कहीं बड़े पैमाने पर होगा।
सोमवार को जिन आतंकवादियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया, वे मूल रूप से वारदात कोे स्थानीय स्तर पर अंजाम देने वाले आतंकवादी या मास्टरमाइंड थे। यह पूरी तरह स्पष्ट है कि इसके असल षड्यंत्रकारी सीमा के उस पार बैठे जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई हैं। उनके इस गुनाह में पाकिस्तान की सरकार और फौज भी बराबरी से शामिल है। पाकिस्तान सरकार आतंकवाद का इस्तेमाल विदेश नीति के रूप में करती है और वहां की फौज एक हथियार के रूप में। स्थानीय स्तर पर आतंकवादियों की लगातार धर-पकड़ या उन्हें मार गिराया जाना बहुत जरूरी है, लेकिन यह भी जरूरी है कि उन केंद्रों को खत्म किया जाए, जहां से आतंक का निर्यात लगातार जारी रहता है। सीमा पार मार करने की यह चुनौती काफी बड़ी है और हम यह मानते हैं कि हमारी सरकार व सेनाएं इसमें पूरी तरह से सक्षम हैं। वे इसकी जरूरत से भी पूरी तरह वाकिफ हैं।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें