परदेसी का स्वागत
इस समय जब अमेरिका में अप्रवासियों को रोकने के लिए दीवार बनाने तक की बात चल रही है, कनाडा ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। कनाडा के अप्रवासी मामलों के मंत्री अहमद हुसैन ने वहां की संसद...
इस समय जब अमेरिका में अप्रवासियों को रोकने के लिए दीवार बनाने तक की बात चल रही है, कनाडा ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। कनाडा के अप्रवासी मामलों के मंत्री अहमद हुसैन ने वहां की संसद को बताया है कि उनका देश 2021 तक 10,80,000 प्रवासियों को आमंत्रित करना चाहता है। वैसे अहमद हुसैन खुद भी एक अप्रवासी हैं, कुछ साल पहले वह एक सोमाली शरणार्थी के रूप में कनाडा आए थे। कनाडा के मंत्रिमंडल में वह अकेले अप्रवासी नहीं हैं। वहां के मंत्रिमंडल में चार भारतीय हैं। इनमें सबसे प्रमुख नाम हरजीत सज्जन का है, जो कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री हैं। इसी तरह, नवदीप बैंस के पास विज्ञान व आर्थिक विकास जैसा महत्वपूर्ण विभाग है। इसके अलावा, कनाडा में जगमीत सिंह धालीवाल हैं, जो विपक्षी दल न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं और जिन्हें कनाडा के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर भी देखा जाता है। यह सब बताता है कि कनाडा न सिर्फ अप्रवासियों का स्वागत करता है, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने की पूरी संभावनाएं भी देता है। इसका एक और उदाहरण यह है कि कुछ समय पहले तक जब लगभग पूरे यूरोप में सीरियाई शरणार्थियों को लेकर हाय-तौबा मची थी, उसी दौरान कनाडा ने अपने यहां 25 हजार से ज्यादा सीरियाई लोगों को शरण दी। इससे यह भी पता चलता है कि दुनिया के तमाम देशों में अप्रवासियों के खिलाफ जिस तरह का माहौल बनता है और जो राजनीति होती है, वह कनाडा में पूरी तरह नदारद है।
कनाडा इतने अप्रवासियों को क्यों चाहता है? कारण कई हैं। एक तो यह कि कनाडा की आबादी अब बुढ़ा रही है, उसे अगर अपनी अर्थव्यवस्था की गति बरकरार रखनी है, तो उसे नौजवानों को लाना ही होगा। कनाडा में हुए कई शोध यह बताते हैं कि अप्रवासी जब किसी देश में आते हैं, तो वे स्थानीय रोजगार के अवसर नहीं छीनते, बल्कि उनके आने से रोजगार के अवसर बढ़ जाते हैं। एक समस्या यह भी है कि कनाडा की ज्यादातर मूल आबादी अब शहरों में बस गई है और गांव लगभग पूरी तरह खाली हो चुके हैं। ऐसे में, एक ही तरीका है कि अप्रवासियों को लाकर गांवों में बसाया जाए। इसका अर्थ यह भी है कि कनाडा को सिर्फ कुशल लोग ही नहीं चाहिए, उसे अकुशल लोगों की भी उतनी ही जरूरत है। ऐसा भी नहीं है कि ये सारी स्थितियां सिर्फ कनाडा में ही हैं। कई और देश भी इन्हीं हालात से गुजर रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपने दरवाजे अप्रवासियों के लिए नहीं खोले हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जापान है, जो अप्रवासियों की बजाय रोबोट के जरिये अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में जुटा है।
कनाडा की इन्हीं नीतियों का नतीजा है कि वह इस समय दुनिया का सबसे ज्यादा बहुलतावादी देश बन चुका है। बड़ी बात यह है कि वे सारे तनाव वहां लगभग नहीं हैं, जिनकी आशंकाएं हम अक्सर बहुलता वाली संस्कृति से पाल लेते हैं। एक सच यह है कि कनाडा को तमाम कारणों से अप्रवासियों की जरूरत है, लेकिन दूसरा बड़ा सच यह है कि कनाडा का समाज अप्रवासियों के लेकर किसी भी तरह के पूर्वाग्रह का शिकार नहीं बना है। और यह भी सच है कि इतने बडे़ स्तर पर अप्रवासन के बावजूद वहां की शांति भी मोटे तौर पर भंग नहीं हुई है। एक तरह से कनाडा में इस समय सांस्कृतिक बहुलता का एक ऐसा विराट प्रयोग चल रहा है, जो पूरी दुनिया को जीने की नई राह दे सकता है।