जकरबर्ग की पेशी
जिसे उनकी अग्नि परीक्षा माना जा रहा था, उससे फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग बेदाग निकल आए। पिछले तीन दिन से अखबारों, खबरियां चैनलों और सोशल मीडिया पर इस तरह की तमाम अटकलें थीं कि कैंब्रिज...
जिसे उनकी अग्नि परीक्षा माना जा रहा था, उससे फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग बेदाग निकल आए। पिछले तीन दिन से अखबारों, खबरियां चैनलों और सोशल मीडिया पर इस तरह की तमाम अटकलें थीं कि कैंब्रिज एनालिटिका मामले में जकरबर्ग जब अमेरिका की संसदीय समिति के सामने पेश होंगे, तो उनसे किस तरह के सवाल पूछे जाएंगे और वे कैसे निरुत्तर हो जाएंगे? बेशक, कुछ सवालों के जवाब में वह निरुत्तर भी दिखे। जैसे पांच घंटे चली इस पूछताछ में एक सांसद ने उनसे पूछा कि क्या वह बताना चाहेंगे कि कल रात वह किस होटल में ठहरे थे? लंबी चुप्पी के बाद जकरबर्ग ने कहा कि नहीं, वह नहीं बताना चाहेंगे। इसके बाद भले ही कुछ कहा नहीं गया, लेकिन इशारा साफ था कि जब वह अपनी निजी जानकारी संसदीय समिति से साझा नहीं कर सकते, तो अपने उपयोगकर्ताओं की जानकारी व्यापारिक कारणों से क्यों साझा करते हैं? ऐसे कुछ सवालों को छोड़ दें, तो जकरबर्ग भी पूरी तैयारी से आए थे। उन्हें पता था कि मामला तकनीकी पेच में गया, तो वह फंस सकते हैं, इसलिए वह शुरू से ही माफी मांगने की मुद्रा में दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि जो हुआ, उसकी जिम्मेदारी उन्हीं की है और उनका वादा है कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि अगले एक साल में भारत समेत कई देशों में चुनाव हैं और वह पूरी कोशिश करेंगे कि फेसबुक उपयोगकर्ताओं की निजी जानकारी का इनमें दुरुपयोग न हो।
अमेरिकी संसदीय समिति के सामने इस पेशी से पहले तक माना जा रहा था कि फेसबुक का भले ही कुछ न बिगडे़, पर जकरबर्ग एक पस्त योद्धा की तरह बाहर आएंगे। अगर ऐसा होता, तो उनके व फेसबुक के लिए यह एक और झटका होता। जब से कैंब्रिज एनालिटिका मामले का खुलासा हुआ है, फेसबुक के शेयर लगातार लुढ़क रहे हैं, उसके बाजार पूंजीकरण में बड़ी गिरावट आई है। मगर बुधवार की इस पेशी के बाद उन्हें हाथोंहाथ विजयी घोषित कर दिया गया है। कोई उनके धैर्य की तारीफ कर रहा है, तो कोई उनकी माफी और उनके पछतावे में भविष्य के लिए अच्छे संकेत देख रहा है। बेशक, ये सारी चीजें अहम हैं, पर वे सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं, जो कैंब्रिज एनालिटिका मामले से उठे थे।
हम यह मान सकते हैं कि जो हुआ, उससे फेसबुक ने बहुत कुछ सीखा होगा। कैंब्रिज एनालिटिका ने फेसबुक के उपयोगकर्ताओं की जानकारी को बडे़ पैमाने पर हासिल किया, अपने व्यापारिक हितों या यूं कहें कि अपने ग्राहकों के लिए राजनीतिक इस्तेमाल किया और फेसबुक ने चुपचाप इसे होने दिया। माना जा सकता है कि फेसबुक अब शायद भविष्य में ऐसा न होने दे। पर इसमें इस बात की गारंटी नहीं है कि लोगों की निजी जानकारी का फेसबुक अपने व्यावसायिक हित में इस्तेमाल नहीं करेगा, क्योंकि अंतत: इसी से उसकी कमाई होनी है। सबसे बड़ी समस्या फर्जी खबरों की है। फेसबुक फर्जी खबरों का सबसे बड़ा प्रसारक बनकर उभरा है, दूसरा बड़ा प्रसारक वाट्सएप है, जिसका मालिकाना हक भी फेसबुक के पास ही है। इन्हीं दोनों की बदौलत फर्जी खबर चंद मिनट में पूरी दुनिया में फैल जाती है। हालांकि यह ऐसी समस्या है, जिससे पूरी दुनिया और उसके सभी समाजों को निपटना होगा, लेकिन फेसबुक के सक्रिय सहयोग के बिना यह संभव नहीं है। क्या फेसबुक ऐसा करेगा?