बनते-बिगड़ते रिश्ते
आम चुनाव में अभी कुछ वक्त है, लेकिन नेताओं और दलों ने जिस तरह अपने-अपने पर तौलने शुरू कर दिए हैं और गठबंधनों-महागठबंधनों के आकार-प्रकार बनने-बिगड़ने लगे हैं, वह गहराती शीत में ताप बढ़ाने वाला है। लंबी...
आम चुनाव में अभी कुछ वक्त है, लेकिन नेताओं और दलों ने जिस तरह अपने-अपने पर तौलने शुरू कर दिए हैं और गठबंधनों-महागठबंधनों के आकार-प्रकार बनने-बिगड़ने लगे हैं, वह गहराती शीत में ताप बढ़ाने वाला है। लंबी हां-ना के बाद आखिरकार राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़ लिया है। उन्हें महसूस हुआ कि केंद्र सरकार ने वादे पूरे नहीं किए, न सामाजिक न्याय के एजेंडे पर काम किया, और न बिहार के लिए ही कुछ किया। लंबे समय से नाराज कुशवाहा खुलकर सामने भले आ गए हों, लेकिन गारंटी नहीं कि आने वाले वक्त में किसी गठबंधन में शामिल होते भी हैं, तो उन्हें कितनी सीटें मिलेंगी? शायद यही कारण है कि आगामी आम चुनाव, खासकर बिहार की जातीय गुणा-गणित की संभावनाओं-आशंकाओं के बीच वह अपनी रणनीति के पत्ते खोलने से बच रहे हैं।
कुशवाहा के इस्तीफे या एनडीए से उनके अलग होने का एहसास तो उसी वक्त हो गया था, जब उन्होंने संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने से ठीक पहले सोमवार की सुबह होने वाली एनडीए की रणनीतिक बैठक में जाने से मना कर दिया था। उपेंद्र कुशवाहा बिहार की राजनीति में लंबे समय से सहज नहीं महसूस कर रहे थे और हाल के टिकट बंटवारे ने तो उन्हें ज्यादा ही बेचैन कर दिया था। बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से चार की मांग के विपरीत भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा महज दो सीटों की पेशकश को वह पचा नहीं पा रहे थे। ऐसे में, अब जब उनका एनडीए से नाता टूट चुका है, तो राजद सुप्रीमो लालू यादव से लेकर तेजस्वी यादव तक से उनकी मुलाकातों की लंबे समय से जारी चर्चाओं के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के साथ एनडीए को झटकने की उनकी रणनीति के निहितार्थ भी तलाशे जा रहे हैं।
उपेंद्र कुशवाहा के पास इस्तीफे के अलावा कोई विकल्प नहीं था या फिर सीमित विकल्प थे, लेकिन उन्होंने इस्तीफे के लिए जो समय चुना, वह उन्हें लाभ पहुंचाने से कहीं ज्यादा भाजपा के लिए चुनौती बन सकता है, क्योंकि पांच राज्यों के चुनावों पर एग्जिट पोल के नतीजों ने अगर विपक्ष को हमलावर बनाया है, तो इन्हीं नतीजों ने भाजपा के अपने साथियों को भी मुखर होने का मौका अनायास दे दिया है। ऐन ऐसे समय में कुशवाहा का इस्तीफा कहीं न कहीं एनडीए में टूट की शुरुआत का संकेत दे सकता है। जाहिर है, चुनाव नतीजे नकारात्मक रहने की स्थिति में यह संदेश घर के अंदर भी उथल-पुथल मचा सकता है। हालांकि चुनाव की घड़ी करीब आते-आते मोहभंग, रिश्तों का टूटना, लंबे चले हनीमून से भी अचानक उकता जाना भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के लिए अब कोई नई बात नहीं है। मतगणना और संसद सत्र शुरू होने के एक दिन पहले शुरू हुआ यह घटनाक्रम और दिल्ली में चल रही विपक्षी एकजुटता की कवायद भी बता रही है कि नतीजे विपक्ष के अनुकूल हुए, तो एका की यह कवायद और जोर पकड़ेगी। इस एका की कवायद का खास पहलू यह भी है कि इसमें उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक के गैर-भाजपाई स्थानीय क्षत्रप और कांग्रेस साथ आते दिख रहे हैं। ये नतीजे मंगलवार से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र की गरमी तो बढ़ाएंगे ही, आने वाले वक्त में महागठबंधन की धुरी भी इन्हीं पर टिकी होगी।