ब्रेग्जिट की आखिरी उम्मीद
पिछले तीन साल से भी ज्यादा समय से पूरा ब्रिटेन बे्रग्जिट यानी यूरोपीय संघ से खुद को अलग करने के लिए संघर्ष कर रहा है। और अंत में अब उसने एक ऐसे नेता को प्रधानमंत्री चुना है, जो बे्रग्जिट समर्थकों की...
पिछले तीन साल से भी ज्यादा समय से पूरा ब्रिटेन बे्रग्जिट यानी यूरोपीय संघ से खुद को अलग करने के लिए संघर्ष कर रहा है। और अंत में अब उसने एक ऐसे नेता को प्रधानमंत्री चुना है, जो बे्रग्जिट समर्थकों की सबसे बड़ी और शायद आखिरी उम्मीद हैं। ब्रिटेन के अनुदार दल की बैठक में प्रधानमंत्री चुने गए बोरिस जॉनसन को बहुत ज्यादा सम्मान की दृष्टि से तो नहीं देखा जाता, लेकिन उनके व्यवहार पर चुटकियां बहुत ली जाती हैं। अखबार उन्हें किसी मसखरे की तरह पेश करते हैं और अक्सर वह जो वेशभूषा धारण करते हैं, उसका भी खासा मजाक बनाया जाता है। उनकी भाषण शैली को किसी भी स्टैंड-अप कॉमेडियन को मात देने वाला माना जाता है, जिसमें तर्क कम होते हैं और तंज ज्यादा। लेकिन इस मामले का दूसरा सच यह है कि बोरिस जॉनसन ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से अलग करने की चाह रखने वालों की आखिरी उम्मीद भी हैं। वह शुरू से बे्रग्जिट के सबसे बड़े हिमायती रहे हैं। अपने भाषणों में वह यूरोपीय संघ का ही नहीं, एक यूरोप की अवधारणा का भी खुलकर मजाक उड़ाते रहे हैं। यह भी माना जाता है कि बे्रग्जिट के मामले में लोगों से जितना सीधा संवाद उन्होंने स्थापित किया, उतना किसी और नेता ने नहीं किया है।
लेकिन बोरिस जॉनसन के लिए शायद ऐसे मजाक का समय खत्म हो चुका है, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री निवास, डाउनिंग स्ट्रीट के दस नंबर बंगले में पहुंचते ही उन्हें सीधे बे्रग्जिट की हकीकत से टकराना होगा। जॉनसन खुद भी इसे जानते हैं और प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने के तुरंत बाद पार्टी सांसदों को संबोधित करते हुए उन्होंने इसकी कोई रूपरेखा भले ही न पेश की हो, लेकिन इसकी समय-सीमा जरूर दे दी है। बाद में उन्होंने एक ट्वीट करके भी कहा कि यह फैसला 31 अक्तूबर तक हो जाएगा। यानी इसके लिए कुलजमा तीन महीने से कुछ ही ज्यादा का समय है। बोरिस जॉनसन यह भी अच्छी तरह जानते होंगे कि इसके पहले बे्रग्जिट का मसला उनकी पार्टी के ही दो प्रधानमंत्रियों डेविड कैमरन और थेरेसा मे की बलि ले चुका है।
अभी तक के ज्यादातर विश्लेषण यही बताते हैं कि बे्रग्जिट से ब्रिटेन को फायदा बहुत कम होगा, लेकिन नुकसान बहुत ज्यादा भी हो सकता है। आर्थिक रूप से लगातार कमजोर हो रहे ब्रिटेन की जनता को इसका डर भी सता रहा है। जर्मनी के दबदबे वाले यूरोपीय संघ ने तो लगभग तीन साल पहले से ब्रिटेन के बिना ही अपने भविष्य के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। वैसे यह भी माना जाता है कि ब्रिटेन ने आधे-अधूरे ढंग से ही यूरोपीय संघ को अपनाया था। वह उसका सदस्य तो बन गया, लेकिन बाकी कई देशों की तरह अपनी मुद्रा को उसने खत्म नहीं किया था। अभी कुछ ही दिनों पहले ब्रिटेन के तेल टैंकर को ईरान ने बंदी बना लिया था, इसके तुरंत बाद जब ब्रिटिश सरकार का बयान आया कि ऐसे खतरों से बचने के लिए पूरे यूरोप को साझा प्रयास करने चाहिए, तो बाकी यूरोप में इसका खासा मजाक उड़ा। प्रधानमंत्री पद के लिए बोरिस जॉनसन का नाम तय होने के बाद ब्रिटिश अखबार द गार्जियन में एक लेख छपा, जिसका लंबा सा शीर्षक काफी महत्वपूर्ण है- जब ब्रिटेन की स्थिति सबसे विस्फोटक है, तब उसने एक ऐसे शख्स को नेता चुना, जो माचिस से खेलता है।