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बढ़ती आबादी की उलझन

  आबादी का गणित हमेशा से दुनिया को बदलता रहा है। लेकिन इसकी मौजूदा चुनौतियां ज्यादा बड़ी हैं। खासकर इसलिए भी कि पर्यावरण का बदलाव ऐसे दौर की ओर जाने लगा है, जिसके बारे में माना जा रहा है कि...

बढ़ती आबादी की उलझन
हिन्दुस्तानWed, 19 Jun 2019 03:32 AM
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आबादी का गणित हमेशा से दुनिया को बदलता रहा है। लेकिन इसकी मौजूदा चुनौतियां ज्यादा बड़ी हैं। खासकर इसलिए भी कि पर्यावरण का बदलाव ऐसे दौर की ओर जाने लगा है, जिसके बारे में माना जा रहा है कि संसाधन लगातार कम हो सकते हैं, और सबसे बड़ी दिक्कत है कि खाद्य संकट काफी उग्र रूप में सामने आ सकता है। ऐसे दौर में, संयुक्त राष्ट्र ने विश्व आबादी पर अपनी जो ताजा रिपोर्ट पेश की है, वह कई तरह की चिंताएं पैदा करती है और कई तरह के खतरों की ओर भी इशारा करती है। अगर हम सिर्फ भारत के आंकड़े ही लें, तो यह रिपोर्ट बताती है कि अगले 30 साल में हमारे देश की आबादी लगभग दोगुनी होने जा रही है। अभी यह आबादी एक अरब, 40 करोड़ के आस-पास है, जो इस सदी के उत्तराद्र्ध के शुरू होने तक दो अरब, 70 करोड़ की संख्या को पार कर चुकी होगी। जहां तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी होने का मामला है, तो यह काम हम अगले आठ साल में ही कर लेंगे। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2027 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। इन आंकड़ों के साथ जो चिंताएं जुड़ी हुई हैं, वे परेशान करने वाली हैं।
यह सवाल हमेशा से उठाया जाता रहा है कि देश की बहुत सी समस्याएं उसकी अधिक आबादी के कारण हैं या उसकी प्रशासनिक विफलता के कारण। अब जब हम चीन को पीछे छोड़ने की तरफ बढ़ रहे हैं, तो इस मामले में हमें चीन की ओर देखना होगा। पिछले कुछ समय में चीन ने अपने यहां गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निपटने की कोशिश की है और बहुत बड़ी कामयाबी भी हासिल की है। चीनी शासन तंत्र की अपनी कई समस्याएं हो सकती हैं और शायद वह भी अभी इन समस्याओं से पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है, लेकिन भारत में जो हुआ है, उसके मुकाबले चीन की सफलता काफी बड़ी है। चीन ने पिछले कुछ दशक में ऐसा आर्थिक तंत्र खड़ा किया है, जिसमें उसने अधिक आबादी को अपनी कामयाबी का आधार बना लिया। इतना ही नहीं, चीन को यह भी पता है कि आबादी अगर और बढ़ी, तो यह बहुत बड़ी बाधा भी बनेगी, इसलिए उसने इसे नियंत्रित करने के लिए भी एड़ी-चोटी का दम लगा दिया है। चीन की तरह ही हमें भी तेजी से आगे बढ़ने का अपना रास्ता निकालना होगा। जरूरी यह भी है कि यह रास्ता आधुनिक हो, देश-समाज को आगे ले जाने वाला हो, पीछे धकेलने वाला नहीं। हमारे लिए गरीबी-बेरोजगारी ही नहीं, इनसे जन्मी कुपोषण जैसी समस्याएं भी बहुत बड़ी हैं।
हालांकि विश्व के संदर्भ में देखें, तो दुनिया में कई ऐसे देश भी हैं, जहां समस्या भारत से कहीं ज्यादा गंभीर है। खासकर नाइजीरिया जैसे देशों में, जहां आबादी की वृद्धि दर इस समय सबसे ज्यादा है। इस सदी का उत्तराद्र्ध शुरू होने पर पूरी दुनिया में ऐसे कई देश होंगे, जिनकी आबादी एक अरब का आंकड़ा पार कर चुकी होगी। और ये सारे वे देश होंग, जिनकी तरक्की की रफ्तार बहुत धीमी है। इनमें से कुछ के पास तो अभी ही अपनी आबादी का पेट भरने के संसाधन नहीं है और निकट भविष्य में वहां कोई बड़ी उम्मीद भी नहीं दिखती। ऐसे संकट किसी एक देश तक सीमित नहीं रहते, उनका दबाव पूरी दुनिया को महसूस होता है। इसलिए अब ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ती आबादी के बीच पूरी विश्व व्यवस्था के लिए नए ढंग से सोचने का वक्त आ गया है।

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