फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन संपादकीयजांच की राजनीति 

जांच की राजनीति 

  हमारे लोकतंत्र के लिए वह क्षण बहुत दुखद और शर्मनाक होता है, जब पुलिस के किसी आला अधिकारी की गिरफ्तारी पर रोक लगाने या रोक हटाने की नौबत आती है। कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार की...

जांच की राजनीति 
हिन्दुस्तानFri, 17 May 2019 11:55 PM
ऐप पर पढ़ें

 

हमारे लोकतंत्र के लिए वह क्षण बहुत दुखद और शर्मनाक होता है, जब पुलिस के किसी आला अधिकारी की गिरफ्तारी पर रोक लगाने या रोक हटाने की नौबत आती है। कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार की गिरफ्तारी पर लगाई गई रोक को हटाना जहां बहुत महत्वपूर्ण है, वहीं उन्हें सात दिनों की मोहलत देना और भी अर्थपूर्ण है। दरअसल, भारतीय कानून व्यवस्था यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती है कि भले ही कोई अपराधी छूट जाए, लेकिन किसी निरपराध को सजा न होने पाए। सीबीआई का आरोप है कि राजीव कुमार ने पश्चिम बंगाल में हुए शारदा चिटफंड घोटाले के साक्ष्य मिटाए हैं। सीबीआई ने जब जांच के सिलसिले में राजीव कुमार पर शिकंजा कसा, तो स्वार्थ की राजनीति शुरू हो गई। लोग भूले नहीं हैं, सीबीआई और केंद्र सरकार के विरोध में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सड़क पर उतर आई थीं। 
5 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने राजीव कुमार की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। अब शुक्रवार को सीबीआई ने इस पुलिस अधिकारी के खिलाफ दस्तावेज देकर उस रोक को हटवा लिया है। अब यदि पुलिस अधिकारी को सात दिन के अंदर अग्रिम जमानत मिल जाती है, तो वह गिरफ्तारी से बचे रहेंगे। हालांकि इस मामले में सच की चिंता किसे है, यह बताना मुश्किल है।
क्या पश्चिम बंगाल सरकार या स्वयं उस पुलिस अधिकारी के लिए यह प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए थी कि उनके दामन से घोटाले के दाग जल्द से जल्द दूर हो जाएं? क्या यह अच्छा लग रहा है कि पुलिस का एक आला अधिकारी सीबीआई के अधिकारियों से बचने की कोशिश कर रहा है? दागी अफसर से पांच दिन पूछताछ करने के बावजूद सीबीआई संतुष्ट नहीं है और उसे गिरफ्तार करके पूछताछ करना चाहती है? शारदा चिटफंड घोटाले की जांच उच्च स्तर पर पहुंचकर नैतिकता से जुडे़ अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े कर रही है। यहां सवाल किसी एक घोटाले की जांच मात्र का नहीं है। सवाल यह है कि सीबीआई, पुलिस और राजनीति, तीनों में से कौन है, जिस पर पूरा भरोसा कर लिया जाए? कौन सही बोल रहा है? किसके साथ अन्याय हो रहा है? इन प्रश्नों के उत्तर देना आसान नहीं है, तो इसके लिए फिर वही पुलिस, सीबीआई और उससे भी ज्यादा संबंधित राजनेता दोषी हैं। 
सभी जिम्मेदार पक्षों को यह ध्यान रखना चाहिए कि चिटफंड घोटाले में जो रहा है, वह देश के लिए मानक बनेगा। विडंबना देखिए, किसी समय राजीव कुमार चिटफंड घोटाले की जांच का नेतृत्व कर चुके हैं, लेकिन आज वह जांच की आंच से बचना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनके प्रति प्रक्रियागत उदारता बरती है, तो कोई आश्चर्य नहीं। सात दिन में लोकसभा चुनाव के परिणाम आ चुके होंगे। केंद्र में राजनीतिक समीकरण अगर बदल गया, तो सीबीआई की जांच पर शायद फिर आंच आ जाएगी। दरअसल, व्यापकता में एक बहुत विचारणीय विषय यह है कि हमारी कानून-व्यवस्था संबंधी एजेंसियां, संस्थाएं और राजनीतिक दल स्वार्थ की होड़ में ऐसे मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां सच खोजना और उसे सिद्ध करना एक जटिल कार्य है। संविधान और जनता तो सदा सच के पक्ष में हैं, लेकिन इन एजेंसियों, संस्थाओं, दलों को बार-बार साबित करना चाहिए कि वे किसके पक्ष में हैं?

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें