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आतंक का चरित्र

जम्मू-कश्मीर के दुर्दांत आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के एक खतरनाक आतंकी संदीप कुमार शर्मा का पकड़े जाना बहुत कुछ कहता है। यह जितना संदीप कुमार शर्मा के बारे में नहीं बताता, उससे ज्यादा कश्मीर में चल...

आतंक का चरित्र
हिन्दुस्तानMon, 10 Jul 2017 11:04 PM
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जम्मू-कश्मीर के दुर्दांत आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के एक खतरनाक आतंकी संदीप कुमार शर्मा का पकड़े जाना बहुत कुछ कहता है। यह जितना संदीप कुमार शर्मा के बारे में नहीं बताता, उससे ज्यादा कश्मीर में चल रहे आतंकवाद के असली चेहरे को बेनकाब करता है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले संदीप की गिरफ्तारी उसी घर से हुई, जहां कुख्यात आतंकवादी बशीर लश्करी सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया। उस इमारत में मौजूद लोगों की धर-पकड़ हुई, तो सुरक्षा बल उस समय हैरत में पड़ गए, जब उन्हें एक ऐसा शख्स मिला, जो स्थानीय न था। आगे जब और पूछताछ हुई, तो एक के बाद एक कई राज खुलने लगे। पता लगा कि संदीप काफी समय से इस आतंकवादी संगठन से सहयोग कर रहा है। शुरू में उसकी भूमिका एटीएम लूटने में इस संगठन की मदद करने की थी, लेकिन बाद में उसने कई बड़े आतंकवादी अभियानों में भी हिस्सा लिया। शुरुआती जांच में ही यह भी पता चला है कि कश्मीर में आदिल के नाम से सक्रिय संदीप 16 जून को हुई पुलिस अधिकारी फिरोज डार की हत्या में भी शामिल था। इसके अलावा वह मुंडा में हुए सेना के काफिले पर हमले में भी शामिल था, जिसमें दो जवान शहीद हुए थे। यह भी पता पड़ा है कि इन्हीं दुस्साहसी कारनामों के कारण वह बशीर लश्करी का काफी नजदीकी हो गया था।

यह पूरी कहानी पहले से ही ज्ञात इस तथ्य का एक और सुबूत है कि आतंकवादियों के समर्थक भले ही तमाम आदर्शों की बात करें, लेकिन कश्मीर के आतंकी उन अपराधी गिरोहों की तरह ही काम कर रहे हैं, जो जरूरत पड़ने पर कहीं भी किसी की भी मदद ले सकते हैं। शुरू में कश्मीर में अलगाववादी संगठन और आतंकवादी कश्मीरियत की बात करते थे, हालांकि यह तर्क तभी निरर्थक हो गया था, जब उन लाखों पंडितों को अपना घर-बार छोड़कर भागने को मजबूर होना पड़ा, जो कश्मीर की संस्कृति का अभिन्न अंग थे। अब तो खैर इस कश्मीरियत की बात अलगाववादी पांतों में भी कहीं सुनाई नहीं पड़ती और घाटी में जो कुछ हो रहा है, उसे पिछले कुछ वक्त से सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है। हालांकि दुनिया को तब भी यही बताया जाता रहा है कि यह स्थानीय लोगों का रोष है, जिसके चलते नौजवान हथियार उठा रहे हैं। संदीप की गिरफ्तारी इस कहानी को भी झुठला रही है। वैसे यह पहला मौका नहीं है, जब कश्मीर में गैर-कश्मीरी आतंकवादियों और अपराधियों की सक्रियता दिखी हो। कश्मीर से पकडे़ गए पाकिस्तानी आतंकवादियों की बात तो इतनी पुरानी है कि अब इसके कोई सुबूत देने की भी जरूरत नहीं है। धर्मगुरु के नाम पर आतंकवादियों की पांतों का संचालन करने वाले मौलाना मसूद अजहर को भी सुरक्षा बलों ने कश्मीर में ही पकड़ा था। इसी तरह, 1995 में चरार-ए-शरीफ अग्निकांड के समय जिस आतंकवादी का नाम सबसे ज्यादा उभरा था, वह था मस्त गुल। मस्त गुल अफगान था और अग्निकांड को अंजाम देने के बाद पाकिस्तान लौट गया था, जहां बाद में उसे हाईवे पर लूटपाट जैसे मामले में पकड़ा गया था। 

ये सारे किस्से यही बताते हैं कि कश्मीर के आतंकवाद का चरित्र वही है, जो दुनिया भर में आतंकवाद का होता है। उनके दावे, नारे और आदर्श सिर्फ दिखावटी हैं और धर्म सिर्फ दहशत फैलाना है। इसका अर्थ यह भी है कि इस आतंक का कोई राजनीतिक पक्ष नहीं और इन आतंकियों से निपटने के लिए सैनिक सख्ती की ही जरूरत है। यह जरूर है कि इस सख्ती के साथ ही कश्मीर को ऐसी राजनीति भी चाहिए, जो कश्मीरी अवाम को इन आतंकवादी और अलगाववादी ताकतों से दूर कर सके। 

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