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कप्तान बनाम कोच

बेशक, बहुत से लोगों को यह अच्छा न लगा हो, लेकिन अनिल कुंबले ने भारतीय क्रिकेट टीम के कोच पद से इस्तीफा देकर वही किया, जो वह कर सकते थे। उन्हें यह बहुत पहले ही समझ में आ गया था कि उनका प्रशिक्षक का...

कप्तान बनाम कोच
हिन्दुस्तानWed, 21 Jun 2017 11:51 PM
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बेशक, बहुत से लोगों को यह अच्छा न लगा हो, लेकिन अनिल कुंबले ने भारतीय क्रिकेट टीम के कोच पद से इस्तीफा देकर वही किया, जो वह कर सकते
थे। उन्हें यह बहुत पहले ही समझ में आ गया था कि उनका प्रशिक्षक का पद एक ऐसा अफसाना बनता जा रहा है, जिसे किसी अंजाम तक ले जाना
मुमकिन नहीं है। यह जरूर कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने इस्तीफे को एक खूबसूरत मोड़ नहीं दिया। कप्तान समेत भारतीय क्रिकेट टीम के वरिष्ठ
सदस्यों, टीम मैनेजमेंट और खुद कुंबले ने अगर परिपक्वता का परिचय दिया होता, तो शायद इस स्थिति से टीम की कड़वाहट को उजागर किए बिना भी
निपटा जा सकता था। कप्तान और कोच में पटरी नहीं बैठ रही, यह बात कई दिनों से खबरों में थी। खबर यह भी थी कि टीम के कई वरिष्ठ खिलाड़ी भी
कोच से तालमेल नहीं बिठा पा रहे। अभी कुछ ही दिनों पहले अदालत द्वारा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के प्रशासक बोर्ड के सदस्य नियुक्त किए गए
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपने पद से इस्तीफा दिया था, तो इसमें कोच अंनिल कुंबले और कप्तान विराट कोहली के बीच का तनाव एक बड़ा मुद्दा था।
गुहा ने अपने इस्तीफे में कहा था कि एक कप्तान को टीम का कोच तय करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता।

रामचंद्र गुहा की बात अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन चाहे कोई भी खेल हो, कारोबार हो या कोई अभियान, तकरीबन हर जगह एक लिखित-अलिखित
नियम यह होता है कि अगर टीम के दो महत्वपूर्ण सदस्य आपस में तालमेल नहीं बिठा पा रहे, तो उनमें से एक को जाना ही होगा। क्योंकि किसी टीम के
लक्ष्य को दो सदस्यों की आपसी उलझन का शिकार नहीं बनने दिया जा सकता। खेलों के मामले में तो यह नियम और भी स्पष्ट होता है। अगर यह विवाद
कोच और कप्तान या कोच और किसी खिलाड़ी के बीच का है, तो अंतत: कोच को ही जाना होगा। क्योंकि कोच को तो बदला जा सकता है, लेकिन कप्तान व
खिलाड़ी को बदलना इतना आसान नहीं होता है। कोच की भूमिका खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने, उन्हें उनकी खामियां और खूबियां बताने, और टीम की
रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण होती है, लेकिन अंतत: मैदान में उस रणनीति को अंजाम देने का काम कप्तान और खिलाड़ियों को ही करना होता है। यही तब
भी हुआ था, जब ग्रेग चैपल और सौरव गांगुली के बीच विवाद खड़ा हुआ था। तब भी कोच को ही जाना पड़ा था। वह भी तब, जब गांगुली का करियर अपने
सूर्यास्त की ओर बढ़ रहा था, जबकि विराट कोहली की कप्तानी का दौर तो अभी शुरू ही हुआ है और भारतीय टीम के लिए विराट से काफी उम्मीदें बांधी गई
हैं।

कोई भी टीम कप्तान, खिलाड़ियों और कोच के आपसी तालमेल से ही आगे बढ़ती है। तालमेल न हो, तो समस्याएं भी आती हैं, टीम का खेल भी प्रभावित
होता है और कई अप्रिय स्थितियां भी बनती हैं। तो क्या इसका समाधान यह है कि कोच के चुनाव में टीम के कप्तान को भी शामिल किया जाए? यह वही
मसला है, जिस पर रामचंद्र गुहा को आपत्ति थी। यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब बहुत सरल नहीं है, लेकिन ऐसे मौकों पर जब कप्तान या वरिष्ठ
खिलाड़ियों और कोच में तालमेल न बन पा रहा हो, तो टीम प्रबंधन की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। तालमेल न होना टीम का एक अंदरूनी मसला है और
इस पर आंतरिक स्तर पर ही निपटा जाना चाहिए। यह ऐसा मुद्दा नहीं है, जिस पर किसी तरह के सार्वजनिक विमर्श की जरूरत हो। इसलिए कुंबले के
इस्तीफे पर जो हाय-तौबा हो रही है, उसे टीम प्रबंधन की असफलता के रूप में ही देखा जाना चाहिए।

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