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पढ़ने की बदलती तकनीक

जब से हाथ में मोबाइल आया, कागज के किताब छूट गए। मगर यह भी सत्य है कि अनाप-शनाप ही सही, औसत भारतीय अब 10-12 घंटे प्रति दिन अक्षर पढ़ता है। जब मोबाइल नहीं था, तो लोग सुबह का अखबार पढ़ते, कुछ मैगजीन पलट...

पढ़ने की बदलती तकनीक
प्रवीण झा की फेसबुक वॉल सेTue, 06 Mar 2018 10:14 PM
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जब से हाथ में मोबाइल आया, कागज के किताब छूट गए। मगर यह भी सत्य है कि अनाप-शनाप ही सही, औसत भारतीय अब 10-12 घंटे प्रति दिन अक्षर पढ़ता है। जब मोबाइल नहीं था, तो लोग सुबह का अखबार पढ़ते, कुछ मैगजीन पलट लिया, और कुछ उपन्यास। प्रतिदिन इतने अक्षर नहीं पढ़ते, जितना अब पढ़ते हैं। पर अब यह आंखें कचरा अधिक पढ़ती हैं। यही हाल चीन का है, जहां हर व्यक्ति मोबाइल में डूबा है। मगर ताज्जुब है कि चीन में विश्व की सबसे अधिक किताबें छपती हैं। भारत से लगभग पांच गुना अधिक, और कहीं सस्ती। यह कैसे संभव है कि मोबाइल में डूबा देश इतनी अधिक किताबें पढ़ जाता है? चीन मोबाइल पर ही पढ़ता है। और गर भारत में यह परंपरा नहीं आई, तो भारत में किताबें दिनानुदिन घटती जाएंगी, और मोबाइल पर कचरा बढ़ता जाएगा। इससे बचने के दो ही उपाय हैं- एक, भारतीय मोबाइल पर मात्र एक-दो घंटे दें और बाकी के आठ घंटे अखबार/ मैगजीन/ उपन्यास पढ़ें। और दूसरा कि भारतीय दस घंटे मोबाइल पर रहें, पर यहां कचरा नहीं, किताबें पढ़ें। मुश्किल यह भी है कि भारत में मोबाइल पर किताबें कम छपती हैं। मोबाइल पर फेसबुक-वाट्सएप में ही वक्त गुजरता है।भारत चाहे तो इस डिजिटल दुनिया में सबको मात दे दे, पर मोह-पाश में अटका पड़ा है।

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