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हमारे गरीब, उनके गरीब

एरॉन (नाम परिवर्तित) लगभग 12 वर्षों से मेरे मित्र के नौकर हैं। हालांकि यहां नौकर नहीं, ‘सीजनल वर्कर’ या ‘हाउस-हेल्पर’ कहते हैं। पर हैं, फिल्मी रामू काका सरीखे ही। वह अल्बानिया...

हमारे गरीब, उनके गरीब
प्रवीण झा की फेसबुक वॉल सेThu, 30 Nov 2017 11:39 PM
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एरॉन (नाम परिवर्तित) लगभग 12 वर्षों से मेरे मित्र के नौकर हैं। हालांकि यहां नौकर नहीं, ‘सीजनल वर्कर’ या ‘हाउस-हेल्पर’ कहते हैं। पर हैं, फिल्मी रामू काका सरीखे ही। वह अल्बानिया के गरीब हैं, जो नॉर्वे जैसे अमीर देशों के सामंतों के घर पलते हैं। खैर, बात यह है कि अब उनका आदेश देने वाला बदल गया है, जिससे वह चिंतित हैं। जिस बच्चे को उन्होंने कंधे पर रखकर घुमाया, आज मालिक का वह बेटा बड़ा हो गया है। अब वह आदेश देता है, तो एरॉन को पसंद नहीं आता। पर सामंत का बेटा भी सामंत ही होता है। मैंने उनको समझाया कि बुरा न मानें। 

मेरे सामने भी कई ऐसे चेहरे घूम गए, जो बचपन में हमारे प्रिय थे। आम के गाछ पर बिठा देते, हाट घुमाने ले जाते, मामूली पहाड़ा भी सिखा देते। अब जब गांव जाता हूं, तो वे ‘मालिक-मालिक’ करते हैं। कुछ मर भी गए। मैं सामंत-वामंत नहीं, पर सामंतइ तो है ही। गाड़ी में घूमने वाला सामंत है। जो कोई भी जाते वक्त सौ रुपये पकड़ा सके, सामंत है। और उसका बेटा भी सामंत-इन-मेकिंग है। इस कुचक्र से मुक्ति संभव नहीं। एरॉन को अपनी बिहारी बुद्धि से बूझा दिया।
कुछ हायपोथेसिस वैश्विक हैं। मैंने यूं ही पूछ लिया, एरॉन, तुम्हारा बेटा क्या कर रहा है? उसने कहा कि भारत में मेरे जैसों के बेटे क्या करते हैं? वही कर रहा है।

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