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कौटिल्य का अर्थशास्त्र

'चाणक्य का अर्थशास्त्र' शायद ही कोई कहता हो। मूलत: यह कौटिल्य का अर्थशास्त्र  है। चुनावी उठा-पटक में जीत-हार के लिए ‘साम, दाम, दंड, भेद’ को (इसे डिकोड करना क्या जरूरी है? हर...

कौटिल्य का अर्थशास्त्र
उदय प्रकाश की फेसबुक वॉल सेMon, 10 Feb 2020 09:40 PM
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'चाणक्य का अर्थशास्त्र' शायद ही कोई कहता हो। मूलत: यह कौटिल्य का अर्थशास्त्र  है। चुनावी उठा-पटक में जीत-हार के लिए ‘साम, दाम, दंड, भेद’ को (इसे डिकोड करना क्या जरूरी है? हर नागरिक इसे समझता है) इस्तेमाल करने वाला मीडिया और दरबारियों द्वारा सम्मानपूर्वक ‘चाणक्य’ का खिताब पाता है। पहले जैसे नेहरू और पटेल थे, वैसे ही अभी की मौजूदा जोड़ी है। एक जुनूनी ड्रीमर, दूसरा प्रैग्मैटिक चाणक्य। लेकिन अर्थशास्त्र तो है कौटिल्य का अर्थशास्त्र, जो प्रजा-हित को कम और राज्य-हित को अधिक ध्यान रखकर लिखा गया है। शासकों के लिए एक अद्भुत ग्रंथ है कौटिल्य का अर्थशास्त्र।  

प्रजा-हित में बस उतना ही कि वह इतनी असंतुष्ट न हो पाए कि विद्र्रोह कर दे। और राज्य-हित में बाकी सब कुछ कि यह सत्ता बनी रहे, दीर्घकालिक हो। ‘कुटिल’, कुटिलता’ आदि लोकोपयोगी पद इसी कौटिल्य के शास्त्र की व्याख्याएं हैं। कुटिलता विधानसम्मत लोकतांत्रिक व्यवस्था का विलोम है। या तो लोकतंत्र रहेगा या फिर ‘कुटिलता की कुचालें’ रहेंगी। मध्यकालीन भारत का इतिहास देखें, उस मौर्य-गुप्तकाल में, जिसे हमारे देश का ‘स्वर्ण-युग’ कहा जाता है, भारतीय किसानों और साधारण प्रजा की हालत सबसे दयनीय थी। तो क्या हम मानें कि यह दौर कुटिलता का स्वर्ण-काल है?

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