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Hindi News ओपिनियन साइबर संसारअनुच्छेद 370 हटाने से पड़ा अच्छा असर

अनुच्छेद 370 हटाने से पड़ा अच्छा असर

साल 2019 में 5 अगस्त को ही केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का एलान किया था। पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय की भी मुहर इस फैसले पर लग गई है। मोदी सरकार की इस रणनीति की...

अनुच्छेद 370 हटाने से पड़ा अच्छा असर
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानSun, 04 Aug 2024 11:01 PM
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साल 2019 में 5 अगस्त को ही केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का एलान किया था। पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय की भी मुहर इस फैसले पर लग गई है। मोदी सरकार की इस रणनीति की प्रशंसा करनी होगी। दरअसल, उसे पता था कि विपक्ष इसे अदालत में चुनौती देगा, इसलिए उसने पूरी तैयारी और सुनियोजित रणनीति के साथ अनुच्छेद 370 को हटाने का अभियान चलाया। विरोधियों का तर्क था कि अनुच्छेद 370 के उपखंड (2) में लिखा हुआ है कि राज्य की संविधान सभा की अनुमति से ही राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 निरस्त कर सकते हैं। अनुच्छेद 370 इसीलिए एक अस्थायी व्यवस्था थी, क्योंकि भारतीय संविधान के लागू होने के समय तक जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का गठन नहीं हुआ था। इस सभा का अस्तित्व मई 1951 से जनवरी 1957 तक था और केवल उस अवधि में वह अनुच्छेद 370 को निरस्त कर सकती थी। अत: इस संविधान सभा के भंग होने के साथ ही अनुच्छेद 370 स्थायी हो गया था। तभी कश्मीर के कुछ नेता ताना मारा करते थे कि इस अनुच्छेद को कोई नहीं हटा सकता। मगर मोदी सरकार की दूरदर्शिता के कारण न सिर्फ यह अनुच्छेद हटा, बल्कि जम्मू-कश्मीर में एक नई उम्मीद का संचार भी हुआ।
कहना गलत नहीं होगा कि पिछले पांच साल में वहां काफी विकास हुआ है। लोग मुख्यधारा का हिस्सा बनने के लिए लालायित थे। इसी कारण पिछले आम चुनाव में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अब राज्य का विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है। उम्मीद है, इसकी रुकावट को भी जल्द हटाया जाएगा और वहां ऐसी सूबाई सरकार बन सकेगी, जिससे वहां विकास और बढ़-चढ़कर हो सकेगा।
बीते पांच साल में वहां सड़कें भी बनी हैं और पुल-पुलिया भी। रेलवे का काम तो काफी तेजी से किया गया है। पहाड़ों को काटकर सुरंगें भी बनाई गई हैं। इन सबसे जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को पंख मिले हैं। अब वहां के लोग उम्मीद भरी नजरों से नई दिल्ली को देख रहे हैं। उनको विश्वास है कि जो कार्य केंद्र की सरकार ने शुरू किया है, उसे जल्द ही पूरा किया जाएगा और राज्य के लोगों को सहूलियतें मिल सकेंगी। सबसे बड़ी बात, घाटी में अमन-चैन कायम हो सकेगा। उन दिनों को शायद ही लोग भूल सकेंगे, जब आए दिन यहां कफ्र्यू जैसे हालात होते थे। तब आतंक का साया हर वक्त मंडराया करता था। मगर अब लोगों का भरोसा नई दल्ली पर काफी बढ़ चला है। इसमें अनुच्छेद 370 की विदाई ने काफी अहम भूमिका निभाई है। इसे वहां के लोग तो एक तरह की बंदिश समझ रहे थे।
विमल कुमार, टिप्पणीकार

पांच साल में नहीं बदल पाए बहुत हालात
जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था, तब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एक टिप्पणी काफी वायरल हुई थी। उन्होंने कहा था, हम सत्ता में रहें या विपक्ष में, फर्क नहीं पड़ता, हमें देश की चिंता है। हमें पता है कि लोग अनुच्छेद 370 के खत्म होने पर जश्न मना रहे हैं। लोग उस वक्त भी जश्न मना रहे थे, जब नोटबंदी की गई थी और जीएसटी लागू किया गया था। हमने तब भी उनका विरोध किया था। हमारा कहना था कि इससे देश को नुकसान होगा। भले ही चुनावों में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन बाद में हमने यही देखा कि नोटबंदी और जीएसटी से देश को भारी नुकसान हुआ। आज भी लोग जश्न मना रहे हैं, सभी पार्टियां भाजपा के साथ हैं, फिर भी हम कह रहे हैं कि भारतीय हितों को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। भले आप सबको अभी लगता होगा कि फायदा है, लेकिन हमें पता है कि इससे फायदा नहीं, देश को नुकसान होगा। हमें पार्टी की कुर्बानी मंजूर है, लेकिन देश का नुकसान नहीं। ऐसा लगता है कि मनमोहन सिंह ने जो भविष्यवाणी पांच साल पहले की थी, वह आज बिल्कुल सत्य जान पड़ रही है। यकीन न हो, तो कश्मीर एक बार घूम आइए, आपको सच पता चल जाएगा।
आज स्थिति यह है कि यह सूबा पहले से कहीं ज्यादा अस्थिर हो गया है। आतंकी घटनाएं अब उन इलाकों में भी होने लगी हैं, जहां पिछले दशकों में शांति कायम हो चुकी थी। जम्मू के इलाकों में आतंकवादी गतिविधियों के बढ़़ने का आखिर क्या अर्थ लगाया जाए? इसी तरह, वहां की अर्थव्यवस्था भी उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ सकी। माना गया था कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद वहां की आर्थिकी एक नई ऊंचाई को छूएगी, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वहां की अर्थव्यवस्था को इस अनुच्छेद के हटने से घाटा ही हुआ है। आलम यह है कि अदालत को वहां विधानसभा चुनाव कराने के लिए निर्देश देना पड़ा, तब जाकर चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई। हालांकि, यह भी कब तक हो सकेगा, यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है।
बेशक, ‘एक देश-एक कानून’ की तारीफ की जानी चाहिए, लेकिन जब परिस्थितियां प्रतिकूल हों, तो पहले उनको अनुकूल बनाना चाहिए और फिर नीतिगत बदलाव की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। यहां के लोगों को कई तरह की उम्मीदें हैं, उनको पूरा करने का काम ईमानदारी से करना होगा। अगर स्थानीय लोगों की सरकार जल्द बनाई जा सके, तो काफी फायदा हो सकता है। मगर सवाल है कि इन सब कामों के लिए जरूरी तत्परता दिखाएगा कौन?
स्वाति, टिप्पणीकार