दिखने लगा मेक इन इंडिया का असर
देश के युवाओं के लिए रोजगार जुटाने और स्व-रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए ही मोदी सरकार ने दस वर्ष पूर्व ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरुआत की थी। इसकी पहचान अब वैश्विक स्तर पर बन चुकी है...

देश के युवाओं के लिए रोजगार जुटाने और स्व-रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए ही मोदी सरकार ने दस वर्ष पूर्व ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरुआत की थी। इसकी पहचान अब वैश्विक स्तर पर बन चुकी है। भारत ने मैन्युफैक्चरिंग इनीशिएटिव का एक रोडमैप तैयार किया है, जो हाल के इतिहास में किसी भी देश द्वारा शुरू की गई सबसे बड़ी पहल है। यह सार्वजनिक-निजी भागीदारी की परिवर्तनकारी शक्ति को दर्शाता है। भारत के वैश्विक सहयोगियों को शामिल करने के लिए भी इस सहयोगी मॉडल का विस्तार किया गया है। इसके अलावा, केंद्र सरकार विनिर्माण में तेजी लाने और भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में तैयार करने के लिए देश भर में गलियारों का पंचकोण बना रही है। देश में सौर ऊर्जा की क्षमता साल 2014 में 2,650 मेगावाट थी, जो आज बढ़कर 60,000 मेगावाट से अधिक हो गई है। इसी तरह, पवन ऊर्जा की क्षमता भी 21,132 मेगावाट से बढ़कर 45,000 मेगावाट से अधिक हो गई है। देश में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या 1.33 लाख हो गई है। कुल मिलाकर, जीडीपी कल्याण मॉडल ने भारत के लिए अद्भुत काम किया है, जिसका लाभ उन लोगों को मिला है, जो लंबे समय से जीवन की मूलभूत सुविधाओं से वंचित थे। साफ है, ‘मेक इन इंडिया’ का लाभ हमें जीवन के हर क्षेत्र में मिल रहा है। ऐसे में, अब समय आ गया है कि भारत अपनी शक्ति से दुनिया को अवगत कराए। हम अपनी जनशक्ति को पहचानें और दुनिया के सामने कुशल भारत की छवि पेश करें। इसमें ‘मेक इन इंडिया’ काफी सहायक साबित हो रहा है। सरकार इसे इसी रूप में आगे बढ़ा भी रही है।
युगल किशोर राही, टिप्पणीकार
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
मेक इन इंडिया अभियान 25 सितंबर, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना था। इस अभियान के तहत, भारत में हर घंटे एक नया स्टार्टअप शुरू हुआ है, जिससे लगभग 15 लाख नई नौकरियां पैदा हुई हैं। इस पहल ने देश में विदेशी निवेश को आकर्षित करने और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मेक इन इंडिया के माध्यम से भारत ने व्यापार करने की सुगमता में सुधार किया है। बीते एक दशक में मेक इन इंडिया अभियान न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में सहायक रहा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसने भारत को नई पहचान दी है।
वंदना वर्मा, राजनेता
अब भी इस योजना में कई विसंगतियां
कहने वाले कह सकते हैं कि ‘मेक इन इंडिया’ ने बीते एक दशक में भारतीय उद्योगों को नई दिशा दी है, देश में विनिर्माण क्षेत्र को मजबूती दी है, निवेश आकर्षित किया है और आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ाई है, लेकिन सच यही है कि जितनी उम्मीदें इस अभियान से थीं, उनमें से कई अब तक पूरी नहीं हो सकी हैं। यानी, कहना यह चाहिए कि जिस जोर-शोर से इस अभियान की शुरुआत हुई थी, उस हिसाब से यह अपने मकसद में सफल नहीं हो सका है। दावे भले ही कई किए जाते हैं, लेकिन हकीकत की जमीन पर अब भी कई मामलों में हम खाली हाथ हैं। यकीन न हो, तो स्टार्टअप का ही मामला देखें। दावा है कि लाखों स्टार्टअप शुरू हुए, लेकिन उन स्टार्टअप से हमें लाभ कितना मिला और कितने मनमाफिक परिणाम न निकल पाने के कारण बंद कर दिए गए, यह आंकड़ा सार्वजनिक ही नहीं किया जाता।
दरअसल, हम नहीं समझ सके हैं कि भारत के कुशल परंपरागत कारीगरों की उपेक्षा करना अब भी मेक इन इंडिया पर भारी पड़ रहा है। यह जानते हुए भी कि एक जमाने में भारत का परंपरागत शिल्प-कौशल इतना उन्नत था कि इसकी पहचान विश्व गुरु के रूप में होती थी, हम अपने इसी कौशल को नजरंदाज करने में लगे हुए हैं। इसी कारण आज हमारे आस-पास परंपरागत शिल्पकार नहीं है। उद्यमिता को ही यदि हम खत्म कर देंगे, तो लोग उद्यम की ओर भला कैसे उन्मुख होंगे? इससे अच्छा तो यह होता कि उनको बेहतर माहौल दिया जाता, उनकी मुश्किलों को समझने का प्रयास किया जाता और उनकी चुनौतियां खत्म की जातीं। यदि ऐसा हो सकता, तो शिल्पकारों की नई पीढ़ी भी अपने खानदानी पेशे की ओर उन्मुख होती और मेक इन इंडिया अभियान वाकई साकार हो पाता।
आज तो उद्योगों की परिकल्पना ही बदल गई है। मशीनी काम को ही अब उद्यमशीलता माना जाता है। उन विचारों को नवाचार कहा जाता है, जो किसी दूसरे देश में साकार हो चुके हैं। जबकि, सच्चाई यही है कि परंपरागत शिल्पकार प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कालजयी इबारतें लिखने में सक्षम रहे हैं, जिसका फायदा हमारे उद्योग क्षेत्र को मिला करता था। मगर हमने उनसे उनकी कुशलता ही छीन ली। बिना कुशल हाथों से वे विकास में भागीदार बनें भी तो कैसे? जाहिर है, मेक इन इंडिया को विश्व स्तर पर प्रभावशाली बनाने के लिए हमें कई रुकावटों को अब भी पार करना होगा। ऐसी नीति बनानी होगी कि निचले तबक के उद्यमियों को भी इसका फायदा मिले। तभी मेक इन इंडिया को सफल माना जाएगा।
सुष्मिता, टिप्पणीकार
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