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थाली का हस्तांतरण

कबीर ने कहा है, मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै?  यह क्यों नहीं कहा कि मन मस्त हुआ, तब अंग्रेजी बोलें। एक मित्र के सहयोगी की चेतना का विस्तार कुल डेढ़ पेग में हो गया और वह अंगे्रजी बोलने लगे। खाने की...

थाली का हस्तांतरण
मुकेश रमण की फेसबुक वॉल सेFri, 27 Aug 2021 11:23 PM

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कबीर ने कहा है, मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै?  यह क्यों नहीं कहा कि मन मस्त हुआ, तब अंग्रेजी बोलें। एक मित्र के सहयोगी की चेतना का विस्तार कुल डेढ़ पेग में हो गया और वह अंगे्रजी बोलने लगे। खाने की इच्छा हुई, तो कहने लगे, ‘आई शैल ब्रिंग ब्यूटीफुल मुरगा। अंग्रेजी भाषा का कमाल देखिए, जनाब ने थोड़ी ही पी है, मगर खाने की चीज को खूबसूरत कह रहे हैं। जो भी खूबसूरत दिखा, उसे खा गए। यह भाषा रूप में भी स्वाद देखती है। ऐसी भाषा साम्राज्यवाद के बडे़ काम की होती है। अंग्रेजों ने कहा ‘इंडिया इज ए ब्यूटीफुल कंट्री’ और छुरी-कांटे से इंडिया को खाने लगे। जब आधा खा चुके, तब देशी खाने वालों ने कहा, अगर इंडिया इतना खूबसूरत है, तो बाकी हमें खा लेने दो। तुमने ‘इंडिया’ खा लिया, बाकी बचा ‘भारत’ हमें खाने दो। अंग्रेजों ने कहा- अच्छा, हमें दस्त लगने लगे हैं। हम जाते हैं। तुम खाते रहना। 
यह बातचीत 1947 में हुई थी। हम लोगों ने कहा, अहिंसक क्रांति हो गई। बाहर वालों ने कहा- यह ‘ट्रांसफर ऑफ पॉवर’ है, यानी सत्ता का हस्तांतरण! मगर सच पूछिए, तो यह ‘ट्रांसफर ऑफ डिश’ हुआ। थाली उनके सामने से इनके सामने आ गई। वे देश को पश्चिमी सभ्यता के सलाद के साथ खाते थे, ये जनतंत्र के अचार के साथ खाते हैं।
 

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