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कमला ने भारतीय ज्ञान से कराया था परिचय

पिछले दिनों मीडिया में जो बाइडन की बड़ी-बड़ी तस्वीरों के साथ विश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी छोड़ने की खबर प्रकाशित-प्रसारित हुई। मगर मेरे लिए वह महत्वपूर्ण खबर नहीं थी...

कमला ने भारतीय ज्ञान से कराया था परिचय
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानFri, 26 Jul 2024 11:09 PM
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पिछले दिनों मीडिया में जो बाइडन की बड़ी-बड़ी तस्वीरों के साथ विश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी छोड़ने की खबर प्रकाशित-प्रसारित हुई। मगर मेरे लिए वह महत्वपूर्ण खबर नहीं थी, मेरे लिए तो इस चुनाव की सबसे बड़ी खबर है, कमला हैरिस का राष्ट्रपति की उम्मीदवारी में मजबूती से उभरना और जल्द ही दावेदारी भी हासिल कर लेना। अगर ऐसा हुआ, तो अमेरिका के 244 साल के इतिहास में यह पहली बार होगा। कमला हैरिस अमेरिकी इतिहास में पहली महिला अश्वेत राष्ट्रपति बन सकती हैं। पिछले राष्ट्रपति चुनाव को याद करिए। उसमें कमला हैरिस को उप-राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने से पहले जो बाइडन का चुनाव अभियान ढीला-ढाला चल रहा था, लेकिन कमला हैरिस के उम्मीदवार बनने के बाद पूरे एशियाई और अफ्रीकी समुदाय का समर्थन बाइडन को मिल गया। दरअसल, यहां अफ्रीकी मूल के अश्वेतों की संख्या 13 फीसदी है, जिसके 87 फीसदी मत डेमोक्रेटिक पार्टी को मिल गए। कैलिफोर्निया 55 इलेक्टोरल वोट के साथ सबसे बड़ा राज्य है, जहां से कमला खुद सांसद हैं। उस कैलिफोर्निया में बाइडन को लगभग 65 फीसदी वोट मिले, जो पिछली बार हिलेरी क्लिंटन को भी नहीं मिला था, कमला हैरिस ने इस चुनाव की दिशा बदल दी थी। 
कमला हैरिस कमाल की नेता हैं। उन्होंने अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद ‘ब्लैक लाइव्स मैटर्स’ जैसा अभियान चलाया और पूरे अमेरिका को बताया कि किसी देश का लोकतंत्र तभी आदर्श है, जब उसके नागरिकों के बीच नस्ल, भाषा, प्रांत और धर्म के नाम पर कोई भेदभाव न हो और उसके नेता मानवीय मूल्यों की रक्षा करने से कभी पीछे न हटें। भारतीय मूल की मां और अफ्रीकी मूल के पिता की इस संतान ने पूरे विश्व के सामने भारत की ज्ञान व नेतृत्व-शक्ति का परिचय कराया था। 
कमला हैरिस ने अपने एक भाषण में बेकर मोटले, फैनी लू हैमर और शिरीष चिशोल्म जैसी अमेरिकी महिलाओं का जिक्र करते हुए यह कहा था कि मैं यहां तक पहुंच सकी हूं, तो उसके पीछे इन महान हस्तियों का संघर्ष है। महिलाओं और पुरुषों में समानता, स्वतंत्रता और सभी के लिए न्याय होना चाहिए। अमेरिका के राष्ट्रपति का वह चुनाव कोई सामान्य चुनाव नहीं था। वह दरअसल अमेरिका में लोकतंत्र को बचाने की जंग थी, जो लोकतांत्रिक ताकतों ने जीत ली थी। एक महिला ने अमेरिका के लोकतंत्र को तब बचा लिया था। कमला हैरिस ने सचमुच कमाल कर दिया था। उम्मीद है, वह फिर एक बार कमाल करेंगी! 
अपूर्व भारद्वाज, टिप्पणीकार

भारत उनसे अपने लिए ज्यादा उम्मीदें न पाले
अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ से जो बाइडन के हटने के बाद यह लगभग तय-सा लगता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस को ही अपना उम्मीदवार बनाएगी। उनके पास महज सौ दिन का समय है, अपने तगडे़ प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप से चुनावी मुकाबला करने के लिए। अब जो भी कमाल है, उन्हें इसी समय दिखाना होगा। अगर वह यह चुनाव जीत जाती हैं, तो यह बराक ओबामा की जीत से भी कहीं अधिक ऐतिहासिक विजय होगी, क्योंकि अमेरिका अपने दो सौ साल के इतिहास में पहली बार किसी महिला, और वह भी एक अश्वेत महिला को राष्ट्रपति बनाना स्वीकार करेगा। अच्छी बात यह है कि कमला हैरिस की दावेदारी आने के बाद जो नया सर्वे आया है, उसमें दिखाया गया है कि वह डोनाल्ड ट्रंप पर भारी पड़ती दिख रही हैं। नए सर्वे के मुताबिक, उन्होंने ट्रंप के ऊपर दो प्रतिशत की बढ़त हासिल कर ली है।
बहरहाल, हमें बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना होने की जरूरत नहीं है। चूंकि कमला हैरिस की मां तमिल मूल की हैं, महज इस कारण वह अगर राष्ट्रपति बन जाती हैं, तो भारतीयों के लिए न तो यह गर्व की बात होगी, और न इससे भारत को अधिक रियायत मिलने की संभावना है। वह अमेरिकी हैं और अगर उस देश के सर्वोच्च पद पर बैठती हैं, तो वह एक अमेरिकी की तरह ही सोचेंगी और उसी के अनुरूप नीतियां तय करेंगी। उस देश का हित उनकी पार्टी और उनकी खुद की नजर में जो भी है, उसी की नजर से देखेंगी। उसमें भारत के प्रति अतिरिक्त भावुकता की जगह नहीं होगी।
जहां तक गर्व करने की बात है, तो हम इसके अधिकारी हो भी नहीं सकते। इसकी स्वाभाविक वजह है। क्या भारत की राजनीति एक तमिल महिला को- चाहे वह कितनी ही पढ़ी-लिखी और तेजतर्रार हो- यह अवसर देती? उसे भारत का प्रधानमंत्री बनने देती? जहां की राजनीति हिंदू-मुस्लिम से ऊपर नहीं उठ पा रही है, वहां एक साधारण पृष्ठभूमि से आई तमिल महिला के लिए कोई अवसर होता? इसलिए व्यर्थ का गर्व और फालतू की अपेक्षा का कोई अर्थ नहीं। 
याद कीजिए, जब साल 2004 में कांग्रेस की विजय के बाद पार्टी में सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग पुरजोर तरीके से उठी थी, तब की विरोधी पार्टी की एक नेत्री ने कितना बड़ा हंगामा खड़ा किया था और सोनिया गांधी ने डॉ मनमोहन सिंह के नाम पर सहमति बनाई थी। मान लीजिए, कल राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलता है, तो क्या बेहूदगियां नहीं होंगी, जो अभी भी कम नहीं हो रही हैं? 
विष्णु नागर, टिप्पणीकार