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चुनी हुई सरकार निरर्थक हो जाएगी

केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर दिल्ली का नियंत्रण छोड़ना नहीं चाहती और दिल्ली की केजरीवाल सरकार को केवल कागजी बनाकर रखना चाहती है। इसीलिए वह ट्रांसफर-पोस्टिंग में दिल्ली के उप-राज्यपाल का वर्चस्व...

चुनी हुई सरकार निरर्थक हो जाएगी
Amitesh Pandeyहिन्दुस्तानTue, 23 May 2023 10:50 PM
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केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर दिल्ली का नियंत्रण छोड़ना नहीं चाहती और दिल्ली की केजरीवाल सरकार को केवल कागजी बनाकर रखना चाहती है। इसीलिए वह ट्रांसफर-पोस्टिंग में दिल्ली के उप-राज्यपाल का वर्चस्व बनाए रखने के लिए यह अध्यादेश लेकर आई है, जिसके माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले को उलट दिया गया है। इससे भविष्य में सुप्रीम कोर्ट बनाम केंद्र सरकार रूपी एक नए टकराव की आशंका बढ़ गई है। कुछ दिनों पहले ही अधिकारों की लड़ाई में दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी जीत मिली थी। मगर बाद में उस फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने यह अध्यादेश जारी कर दिया। यह केजरीवाल सरकार के लिए ही जारी किया गया है, जो साफ बताता है कि अधिकारियों की पोस्टिंग-ट्रांसफर के असली बॉस एलजी ही रहने वाले हैं। संविधान पीठ ने कहा था कि चुनी हुई सरकार के पास अफसरों की पोस्टिंग-ट्रांसफर की ताकत रहनी चाहिए, जिससे चुनी हुई सरकार जवाबदेह बनती है और अधिकारियों की भी जवाबदेही तय हो पाती है। मगर केंद्र सरकार का अध्यादेश बताता है कि दिल्ली सरकार बेशक अधिकारियों की पोस्टिंग पर फैसला ले सकती है, लेकिन उस पर अंतिम मुहर एलजी की ही लगेगी। अध्यादेश के जरिये राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा, जो बहुमत में फैसला करेगा कि कब किस अधिकारी का ट्रांसफर करना है। इस प्राधिकरण में तीन सदस्यों को रखा जाएगा, जो होंगे- मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव। मगर यहां भी फैसला बहुमत के आधार पर होगा, यानी केजरीवाल सरकार के फैसले को दो नौकरशाह नकार सकते हैं। इस प्रकार चुनी हुई सरकार निरर्थक साबित हो सकती है, और यह संसदीय लोकतंत्र का पूरी तरह उपहास होगा।
संजीव दत्त शर्मा, रिटायर्ड बैंकर

बेमतलब होती सत्ता
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार को दी गई शक्तियां एक अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार ने वापस छीन ली हैं! भले ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला है, लेकिन यहां जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है। स्वाभाविक है कि उसके अपने एजेंडे होंगे, जिसके लिए उसे कार्य करने की छूट दी जानी चाहिए। मगर जब सत्ता की चाबी उप-राज्यपाल के हाथों में रहेगी, तब लोकतांत्रिक सरकार नख-दंत विहीन बनकर रह जाएगी। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है? यदि अधिकार दिल्ली सरकार के पास नहीं रहेंगे, तो उसका होना और न होना बराबर है।
विभूति बुपक्या, स्वतंत्र टिप्पणीकार

अब दिल्ली की व्यवस्था ठीक होगी
सत्य के बाद मनुष्य निर्भय हो जाता है और झूठ के बाद कायर। अब केजरीवाल जी ने भ्रष्टाचार किया है, झूठ बोला है, तो कायरता दिखाएंगे ही। उन्हें डर है कि उनके दोनों मंत्रियों की भांति कहीं वह भी न जेल चले जाएं, क्योंकि हर भ्रष्टाचार की लाइन कहीं न कहीं केजरीवाल से जुड़ती है। राष्ट्रीय राजधानी में ट्रांसफर-पोस्टिंग के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सबसे पहले उन अधिकारियों को परेशान करना शुरू किया, जो उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रहे थे। वह उनके ट्रांसफर करने लगे, अधिकारियों को दिल्ली सरकार के मंत्री धमकाने लगे। सरकारी कार्यालयों के दरवाजे तोड़कर स्वयं से जुड़ी फाइलें निकालने लगे, उनकी फोटोकॉपी करने लगे। स्वयं पर लगे दाग को मिटाने के लिए वे पावर का गलत इस्तेमाल करने लगे। इसलिए जनता के हित में यह अध्यादेश लाया गया, जो कानूनन सही है। अब इससे केजरीवाल की बौखलाहट लाजिमी है, उन्होंने झूठ फैलाना शुरू कर दिया। पूरी आम आदमी पार्टी ही लोगों को भ्रमित करने में लग गई। मेरा स्पष्ट मानना है कि केजरीवाल जी के आने से पहले 20 साल दिल्ली में सरकारें चलीं। एलजी और मुख्यमंत्री में हमेशा एक-दूसरे के प्रति सम्मान होता था। 20 साल में ऐसा कोई घटनाक्रम नहीं हुआ, जैसे आज दिल्ली के उप-राज्यपाल के प्रति दिल्ली सरकार कर रही है। जाहिर है, अरविंद केजरीवाल जी का चरित्र पूरी दुनिया के सामने उजागर हो चुका है। कभी जिन्हें वह भ्रष्टाचारी कहा करते थे, आज उनके साथ गलबहियां करते हुए दिख रहे हैं। अध्यादेश के मुताबिक, नौकरशाहों का फैसला केजरीवाल समेत दो अन्य अधिकारी मिलकर करेंगे। अगर केजरीवाल सही बात कहेंगे, तो भला कौन मना करेगा? मगर मुख्यमंत्री को डर है कि कहीं ऐश-ओ-आराम की उनकी जिंदगी और शीशमहल छिन न जाए? इसीलिए अध्यादेश के बारे में वह भ्रम फैला रहे हैं, जबकि ट्रांसफर-पोस्टिंग की टीम में वह स्वयं भी हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री खुद को संविधान से ऊपर मानते हैं। वह स्वयं को दिल्ली का मालिक समझते हैं। उन्हें लगता है कि जो वह कह दें, पत्थर की लकीर बन जाए। मगर देश उनकी तानाशाही से नहीं, लोकतंत्र के हिसाब से चलेगा। दिल्ली के प्रशासन में केंद्र की बड़ी भूमिका है। जब कोर्ट ने कह दिया कि केंद्र सरकार कानून ला सकती है, तो इतना हंगामा क्यों? केंद्र सरकार ने इस अध्यादेश के माध्यम से दिल्ली की व्यवस्था को ठीक करने का कार्य किया है।
हर्षवर्द्धन, राजनेता 

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