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इस फैसले से भ्रष्टाचारियों पर चोट पड़ेगी

दो हजार रुपये के नोट के चलन पर रोक लगाने संबंधी रिजर्व बैंक के फैसले को कुछ लोग नोटबंदी बता रहे हैं, जबकि यह नोटबंदी नहीं, नोट बदली है। नोटबंदी बोलकर भ्रम फैलाने की जो कोशिश हो रही है, उससे आम...

इस फैसले से भ्रष्टाचारियों पर चोट पड़ेगी
Amitesh Pandeyहिन्दुस्तानMon, 22 May 2023 10:37 PM
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दो हजार रुपये के नोट के चलन पर रोक लगाने संबंधी रिजर्व बैंक के फैसले को कुछ लोग नोटबंदी बता रहे हैं, जबकि यह नोटबंदी नहीं, नोट बदली है। नोटबंदी बोलकर भ्रम फैलाने की जो कोशिश हो रही है, उससे आम लोगों को भ्रमित होने की जरूरत नहीं है। असल में, 2016 में बाजार में ज्यादा नोट नहीं थे। चूंकि लोगों को जरूरत थी, इसलिए दो हजार रुपये के नोट जारी किए गए। पिछले सात साल में नोटों की कमी दूर कर ली गई है। यानी, रिजर्व बैंक के नजरिये से देखें, तो दो हजार रुपये के नोट का उद्देश्य पूरा हो गया, इसीलिए इसके चलन पर रोक लगा दी गई है। जिन लोगों के पास ये नोट हैं, वे सामान्य ट्रांजेक्शन कर सकते हैं। बिना समस्या के इसे बैंक में जमा कर सकते हैं। इस निर्णय से कहीं न कहीं भ्रष्टाचार कम होगा। इन दिनों ईडी व सीबीआई के छापे जहां-जहां पड़े हैं, वहां से दो हजार रुपये के नोट खूब जब्त किए जा रहे थे। इस फैसले से न बाजार पर कोई प्रभाव पड़ेगा, न आम लोगों की सेहत पर। फिर, 200 व 500 रुपये के नोट पहले से ही सर्कुलेशन में हैं। दो हजार रुपये के नोट का जीवन-काल पूरा हो गया है। 30 सितंबर तक समय है। इसके अलावा, अर्थव्यवस्था पर भी इसका ज्यादा असर नहीं होगा। अलबत्ता, इसका फायदा यह होगा कि देश व राज्यों में जीडीपी बढ़ेगी, और जो व्यक्ति इस नोट को दबाकर बैठा है, वह अब इसे बाहर निकालने और बैंकों में जमा करने पर मजबूर होगा।
राधादेव शर्मा, स्वतंत्र टिप्पणीकार

अनिवार्य था यह कदम
भारतीय रिजर्व बैंक के नए आदेश के अनुसार अब 2,000 रुपये के नोट चलन से बाहर किए जा रहे हैं। पिछले दिनों से साफ-साफ महसूस किया जा रहा था कि ये नोट बाजार से गायब हो रहे हैं, यहां तक कि बैंकों से मिलना भी मुश्किल था। जाहिर है, यह काला धन के रूप में कहीं दबाया जा रहा था, जिसको अनुपयोगी बनाने के लिए ही भारतीय रिजर्व बैंक ने यह कदम उठाया है। यह एक उचित फैसला है और काला धन पर इससे प्रभावी रोक लग सकेगी। नवंबर 2016 में जब 1,000 व 500 रुपये के पुराने नोट चलन से बाहर किए गए थे, तब नोटों की कमी न पड़े, इसलिए 2,000 रुपये के नोट जारी किए गए थे, मगर तब भी यह आशंका जाहिर की गई थी कि बड़े नोटों से काला बाजारियों को मदद मिलेगी। आने वाले वर्षों में यह आशंका कमोबेश सच ही साबित हुई। ऐसे में, केंद्रीय बैंक द्वारा अब जो फैसला लिया गया है, वह निश्चित रूप से समझदारी वाला माना जाएगा।
वीरेंद्र जाटव, स्वतंत्र टिप्पणीकार

अपनी बेईमानी छिपाने की कवायद
पिछले कुछ दिनों से विभिन्न समाचार पत्रों, सोशल मीडिया, यू-ट्यूब चैनल के बेहतरीन पत्रकारों और राजनीतिक-आर्थिक मामलों के जाने-माने विशेषज्ञों की राय सुनकर लगता है कि वे मोटे तौर पर इन नतीजों पर पहुंचे हैं- एक, दो हजार के नोट काला धन बढ़ाने में कारगर साबित हुए, इसलिए बंद किए जा रहे हैं। दो, मोदी जी ने अपनी गलती सुधारने के लिए जनहित में यह कदम उठाया है। तीन, चूंकि 20 हजार तक के दो हजार के नोटों को बदलने के लिए किसी कागजी कार्रवाई की जरूरत नहीं है, इसलिए यह कदम बाजार में तरलता लाने के लिए उठाया गया है। चार, रूस के पास 40 अरब डॉलर के बराबर दो हजार रुपये की मुद्रा में भारतीय नोट जमा हो गए हैं, इसलिए यह फैसला किया गया है। इन तमाम कारणों की समीक्षा के बाद कुछ सवाल अनुत्तरित रह गए- जैसे, काले धन को खत्म करने की मंशा होती, तो 2,000 के नोटों को अवैध घोषित किया जा सकता था। दो, मोदी जी यदि नोटबंदी को गलत मानते, तो ऐसा फैसला ही नहीं लेते। तीन, भारत की अर्थव्यवस्था 350 लाख करोड़ रुपये की है, यानी 3.5 ट्रिलियन डॉलर की। अगर दो हजार रुपये के तीन लाख करोड़ सर्कुलेशन में नहीं हैं, तो इसका मतलब यह है कि यह राशि संपूर्ण अर्थव्यवस्था का महज एक प्रतिशत है। सवाल है कि यह रकम समूची अर्थव्यवस्था को कितना प्रभावित करने की हालत में थी? चार, रूस के पास जो रुपये का भंडार है, उसके साथ इस कदम का क्या कोई संबंध है? अब मेरे मन में कुछ सवाल हैं। एक, इस फैसले के आते ही गुजरात और मुंबई में नकदी देकर सोना-चांदी खरीदने की होड़ मच गई। स्पष्ट है, सबसे ज्यादा दो हजार के नोट गुजरातियों के पास हैं, तभी वहां पर यह अफरा-तफरी मची है। अगर मोदी जी को यह मालूम था, तो उन्होंने ऐसा कदम क्यों उठाया? दो, अगर विपक्षी दलों की फंडिंग रोकने की बात थी, तो इससे भाजपा भी प्रभावित होगी, क्योंकि नकद पैसा उसके पास बहुत ज्यादा है। तीन, अगर यह फैसला देश को बेवजह परेशान करने के लिए है, तो मैं आपको बता दूं कि ‘हैमलेट’ के पागलपन पर राजा ने कहा, ‘देअर इज अ मेथड इन हिज मैडनेस’, यानी उसके पागलपन के पीछे एक निश्चित योजना है। आखिर वह योजना क्या है? दरअसल, 2024 के चुनाव में निश्चित हार के मद्देनजर यह फैसला लिया गया है। 2016 की नोटबंदी अगर काले धन को सफेद करने के लिए किया गया था, तो 2023 की नोटबंदी (कुछ लोग इसे नोट बदली कह रहे हैं) नकली नोटों को असली बनाने की कोशिश है।
सुब्रतो चटर्जी, स्वतंत्र टिप्पणीकार  

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