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मातृभाषा का सवाल

मैं खानाबदोश प्रवासी हूं। पर मेरा एक ध्येय यह भी रहा कि जब जिस स्थान पर रहूं, वहां की भाषा जरूर सीख लूं। मेरा मानना रहा और एक मित्र ने भाषा-विज्ञान की परिभाषा से भी परिचय कराया कि मातृभाषा या...

मातृभाषा का सवाल
प्रवीण झा की फेसबुक वॉल सेMon, 22 Feb 2021 11:49 PM
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मैं खानाबदोश प्रवासी हूं। पर मेरा एक ध्येय यह भी रहा कि जब जिस स्थान पर रहूं, वहां की भाषा जरूर सीख लूं। मेरा मानना रहा और एक मित्र ने भाषा-विज्ञान की परिभाषा से भी परिचय कराया कि मातृभाषा या ‘नेटिव लैंग्वेज’ का अर्थ उस परिवेश की भाषा से है, जिसमें एक बच्चा बड़ा होता है। अगर बच्चा महाराष्ट्र में अपना बचपन बिता रहा है, तो उसके लिए सहज मातृभाषा मराठी होगी। यह भाषा वह अनायास सीखेगा। इसी तरह, कोई बच्चा यदि केरल से आकर दरभंगा में रहे, तो उसकी मातृभाषा मैथिली होगी। उसे कृत्रिम मलयाली माहौल देकर आप उसके बौद्धिक विकास में कमी लाएंगे। उसे वहां की मिट्टी, संस्कृति में ही बड़ा होने देना चाहिए। यह उस स्थान की भाषा का आदर भी है, जहां आप रह रहे हैं। अब रही बात उस व्यक्ति की, जिसका बचपन केरल में बीता और वह दरभंगा में बस गया। वह मलयालम का ही ‘नेटिव स्पीकर’ है। उसके लिए मैथिली दूसरी या तीसरी भाषा होगी। पर वह मलयालम अपने बच्चे पर न थोपे। वह जरूर उस भाषा  में बतियाए, और बच्चा भी इस बहाने ‘पिता की भाषा’ सीख ले। पर वह उस भाषा का ‘नेटिव स्पीकर’ नहीं बन सकता। यूं भी जिस भाषा को आप सहजता से ग्रहण न कर सकें, जिसके लिए बाह्य प्रयास करने पडे़ं, वह आपकी मातृभाषा नहीं हो सकती। 
 

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