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सरकार और निगम में होगा तालमेल

दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 2022 के अनुरूप दक्षिण, उत्तर एवं पूर्वी दिल्ली नगर निगमों का अस्तित्व 22 मई को समाप्त हो जाएगा और एकीकृत दिल्ली नगर निगम फिर से अस्तित्व में आ जाएगा। वर्ष 2011 में विधानसभा...

सरकार और निगम में होगा तालमेल
हिन्दुस्तानFri, 20 May 2022 12:02 AM
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दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 2022 के अनुरूप दक्षिण, उत्तर एवं पूर्वी दिल्ली नगर निगमों का अस्तित्व 22 मई को समाप्त हो जाएगा और एकीकृत दिल्ली नगर निगम फिर से अस्तित्व में आ जाएगा। वर्ष 2011 में विधानसभा से पारित प्रस्ताव के तहत दिल्ली नगर निगम को उत्तर, दक्षिण और पूर्वी दिल्ली में बांट दिया गया था, ताकि निगमों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो, काम करने की दशा सुधरे, कर्मचारियों के साथ बेहतर समन्वय बने और दिल्ली की समस्याओं का आसानी से निपटारा हो। मगर 10 वर्ष की अवधि का मूल्यांकन करने पर यही स्पष्ट होता है कि निगमों की समस्याएं बढ़ी हैं। अब जब नगर निगम फिर से पुराने रूप में लौट रहा है, तो दिल्लीवासियों की उम्मीद बढ़ गई है। भरोसा है, कर्मचारी अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करेंगे, आर्थिक संकट का समाधान निकलेगा, कार्य-क्षमता में वृद्धि होगी और विकास को गति मिलेगी। साफ है, दिल्ली सरकार और नगर निगम का बेहतर तालमेल देखने को मिलेगा।
विरेंद्र कुमार जाटव

कर्मचारियों के हक में फैसला 
तीनों नगर निगमों को एक करने के लिए केंद्र सरकार का धन्यवाद! नगर निगम का एक कार्यालय होने से पहले समस्त कर्मचारियों व पेंशनरों को वेतन, पेंशन या अन्य बकाए अविलंब मिल जाने चाहिए। इतना ही नहीं, साल 2014 से बंद आजीवन कैशलेस चिकित्सा सुविधा भी तुरंत बहाल होनी चाहिए। 
गिरिराज शर्मा

निगम के कामकाज सुधरेंगे
दिल्ली के तीनों नगर निगमों के एक हो जाने के बाद सभी पार्षद कार्यमुक्त होकर पूर्व पार्षद हो गए हैं। अब पूर्व पार्षदों द्वारा कर्मचारियों व अधिकारियों को नहीं बुलाया जा सकता और न ही इस बाबत कोई आदेश दिया जा सकता है। जाहिर है, दिल्ली सरकार के अधीन काम करने से निगम को मुक्ति मिल गई है। निगम अब कहीं बेहतर सेवा कर सकेगा।
शंभु कुमार

सभी कर रहे अपनी-अपनी राजनीति
क्या नगर निगम को एक करने के बहाने दोनों सियासी दल राजनीति कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि दिल्ली नगर निगम को लेकर एक बड़ा बदलाव संसद के रास्ते लागू होने जा रहा है। खबर है कि दिल्ली के एकीकृत नगर निगम में सीटों की संख्या 250 से अधिक नहीं होगी और एक विशेष अधिकारी को एकीकरण कानून के तहत निकाय की पहली बैठक होने तक इसके कार्य की देखरेख के लिए नियुक्त किया जा सकता है। इस मामले में भाजपा और आप के बीच बड़ी खींचतान चल रही है। गृह मंत्री अमित शाह तो कह ही चुके हैं कि आप सरकार एमसीडी से ‘सौतेली मां’ जैसा व्यवहार करती है, जिसके जवाब में आप सांसद संजय सिंह ने कहा था कि भाजपा ने वर्ष 2014 के बाद से दिल्ली को कभी 325 करोड़ से ज्यादा का फंड दिया नहीं। सच्चाई जो हो, पर अभी यही लग रहा है कि दोनों दल अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं, जिससे दिल्ली की जनता का कितना भला होगा, यह साफ नहीं है।
केपी मलिक

एकीकरण की वजह कुछ और है
दिल्ली में इस बदलाव के सियासी मायने बहुत कुछ हो सकते हैं। दिल्ली के तीनों नगर निगम अब अस्तित्वहीन हो गए हैं। इन पर पिछले 15 सालों से भाजपा का राज रहा। इसलिए अब अगर तीनों नगर निगमों को एक किया जा रहा है, तो इस बारे में सवाल यही उठ रहा है कि क्या भाजपा दिल्ली के बाद पंजाब में बड़ी ताकत बनकर उभरी आम आदमी पार्टी से सचमुच घबरा गई? क्या उसे यह डर लगने लगा था कि दिल्ली के तीनों निगमों पर आम आदमी पार्टी का कब्जा हो जाएगा और देश की राजधानी में बीजेपी की इस पराजय से एक गलत संदेश जाएगा? एक सवाल यह भी है कि तीनों निगमों के एकीकरण से क्या बीजेपी अपना वर्चस्व कायम रख पाएगी? जाहिर है, यह मामला सीधा-सपाट नहीं है। परदे के पीछे भी कई सियासी समीकरण काम कर रहे हैं।
हेमंत शर्मा
 

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