जयदेव को याद करते हुए
चुनिंदा कैसेट, जो सबसे अधिक दिनों तक मेरे साथ रहे, उनमें से अधिकांश जयदेव निर्देशित थे। यह एक संयोग था। जयदेव पर अलग से चर्चा कम मिलती है, मगर उनसे अधिक राष्ट्रीय पुरस्कार सिर्फ ए आर रहमान व इलायराजा...
चुनिंदा कैसेट, जो सबसे अधिक दिनों तक मेरे साथ रहे, उनमें से अधिकांश जयदेव निर्देशित थे। यह एक संयोग था। जयदेव पर अलग से चर्चा कम मिलती है, मगर उनसे अधिक राष्ट्रीय पुरस्कार सिर्फ ए आर रहमान व इलायराजा ने ही जीते हैं। जयदेव फक्कड़ निर्देशकों में रहे। अकेले जिए-मरे, तो चर्चा कहां से होगी? फिल्म अनकही में, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, उसमें पंडित भीमसेन जोशी जैसे गायक ने भजन गाए। स्वयं जयदेव उस्ताद अली अकबर खान के पटु-शिष्य थे और उनके साथ ही मुंबई आ गए थे। जयदेव ने अपना पूरा जीवन पेइंग-गेस्ट बनकर गुजार दिया। न गाड़ी खरीदी, न बंगला, न परिवार बसाया। जब वह मरे, तब उनके साथ कोई नहीं था, जबकि मरने से पहले वह रामायण जैसे लोकप्रिय धारावाहिक का संगीत दे रहे थे। मशहूर अलबम मधुशाला (मन्ना डे) भी जयदेव की ही थी। जयदेव के संगीत-संयोजन वाले कई गीत उनके अकेलेपन को बयां करते हैं। जैसे, एक अकेला इस शहर में, मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया या सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यूं है ... ऐसे लोग कभी यह शायद सोचते भी न हों कि कोई उन्हें याद करे। वे बस अपनी जिंदगी में अपना सर्वोत्तम देकर चुपचाप गुम हो जाते हैं।