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इमरान ने अपने लिए गड्ढा खुद खोदा

पाकिस्तान कई दशकों से अपने आतंकी हथकंडों द्वारा दूसरे देशों, विशेषकर भारत को उलझाता रहा है। वाबजूद इसके नई दिल्ली ने हमेशा उसे मुंहतोड़ जवाब ही दिया। अन्य देशों ने भी कमोबेश खुलकर उसका सामना किया...

इमरान ने अपने लिए गड्ढा खुद खोदा
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानThu, 11 May 2023 11:07 PM
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पाकिस्तान कई दशकों से अपने आतंकी हथकंडों द्वारा दूसरे देशों, विशेषकर भारत को उलझाता रहा है। वाबजूद इसके नई दिल्ली ने हमेशा उसे मुंहतोड़ जवाब ही दिया। अन्य देशों ने भी कमोबेश खुलकर उसका सामना किया। मगर कहते हैं न कि सदा स्थिति एक सी नहीं रहती। पाकिस्तान को लेकर ऊपर वाले की अदालत ने अपना फैसला सुनाना शुरू कर दिया है। दूसरों को उलझाने वाला, परेशान करने वाला यह देश अब खुद अपने जाल में उलझ गया है। इमरान खान प्रकरण इसी का ताजा उदाहरण है। जब इमरान खान ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुरसी संभाली थी, तो उनके पास मौका था कि वह देश की दशा और दिशा बदलते। उनको फौज का समर्थन भी हासिल था और आम लोगों का भी। मगर वह भी दूध के धुले नहीं निकले। नतीजतन, आज पाकिस्तान के सत्ता-प्रतिष्ठान उनके खिलाफ हैं। भले ही, उनके समर्थकों ने वहां जमकर अराजकता फैलाई है, लेकिन यह समझना होगा कि हर गुनहगार को कानून के सामने नतमस्तक होना ही पड़ता है। इसी कारण, विधान के शिकंजे में खुद इमरान ही नहीं, बल्कि उनका परिवार भी है। फिलहाल, समर्थकों के दम पर वह मजबूती से खड़े दिखाई पड़ रहे हैं, उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ देश भर में जगह-जगह बवाल मचा हुआ है, लेकिन सच यही है कि उनका पासा पलट चुका है। अपनी करनी का फल अब उनको भोगना ही होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही उनकी गिरफ्तारी को अवैध बताया है, लेकिन अपने लिए उन्होंने खुद गड्ढा खोदा है। इन सबसे वहां के राजनेताओं की सेहत पर पता नहीं कितना असर पडे़गा, लेकिन पाकिस्तानी जनता हारती नजर आ रही है। उसे न सिर्फ आटे-दाल का भाव पता चल रहा है, बल्कि वह ताजा बवाल में भी फंसती जा रही है। कहने का मतलब यही है कि वहां के आम लोग आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, तमाम तरह के संकटों से घिर चुके हैं। ताजा घटनाक्रम बताता है कि व्यक्ति हो या संस्था अथवा देश, वह बेशक दूसरों को डराता-धमकाता रहे, किंतु हारता है अपनों से ही। देखते जाइए, आगे-आगे क्या होता है- शहबाज शरीफ सरकार किस तरह कानून के मार्फत जीतती है और पूरे पाकिस्तान में पूर्ववत अमन-चैन स्थापित कर पाती है? इन सबको देखते हुए हमारे देश की सरकार भी सावधान हो गई है, लेकिन विडंबना यह है कि पिछले दिनों शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने के लिए जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल अली भुट्टो भारत आए थे, तब उन्होंने प्रच्छन्न रूप से कश्मीर का राग फिर अलापा था। वह यहां फितरती बातें कहकर गए थे, लेकिन वहां जाते ही खुद उनकी सरकार उलझ गई। खुद मियां फजीहत, दूसरों को नसीहत!
शकुंतला महेश नेनावा


उनको साजिश का शिकार बनाया गया

पाकिस्तान की यह बदकिस्मती रही है कि अपनेवजूद में आने के 75 सालों में से  तीन दशक से भी अधिक वक्त तक उसने फौजी तानाशाही को झेला। जब कभी भी वहां नागरिक सरकार बनी, तो उसे रिमोट कंट्रोल के जरिये फौज ही चलाने के प्रयास करती रही। जिस किसी शासक ने सेना से अलग स्वतंत्र हैसियत बनाने की कोशिश की, उसे या तो मार दिया गया या फिर जेल में डाल दिया गया। अब बारी तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान की है। उन्होंने भी फौज से अलग अपनी नीति लागू करने की कोशिश की थी, जिसका खामियाजा वह आज भुगत रहे हैं। भ्रष्टाचार का आरोप तो महज बहाना है। आशंका इसी बात की है कि आगे चलकर उनके साथ भी कुछ बुरा हो सकता है। हालांकि, इस बार फौज ने अपनी रणनीति बदली है। जब इमरान खान को हिरासत में लिया गया था, तब सेना प्रमुख देश से बाहर थे, प्रधानमंत्री भी लंदन के दौरे पर थे, ताकि दुनिया को लगे कि इमरान की गिरफ्तारी में इन दोनों का कोई हाथ नहीं है। हालांकि, पाकिस्तानी अवाम सेना की हरकत को भांप गई है। तभी लाहौर हो या कराची, इस्लामाबाद हो या रावलपिंडी, पेशावर हो या मुल्तान, तमाम जगहों पर सैन्य ठिकानों को जनता निशाना बना रही है। पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है, जब जनता यूं सेना से सीधे तौर पर टकरा रही है। इससे यही जान पड़ता है कि फौजी हुक्मरानों की राह भी अब आसान नहीं रहने वाली। चूंकि सामाजिक और आर्थिक तौर पर यह देश बिल्कुल टूट चुका है, इसलिए आशंका इस बात की अधिक है कि पाकिस्तान गृह युद्ध के मकड़जाल में फंस सकता है। अगर ऐसा होता है, तो यह फौज की बड़ी हार कही जाएगी।
जंग बहादुर सिंह
फौज रहती है हावी
पाकिस्तान में जो नई परिस्थिति पैदा हुई है, वह वास्तव में नई नहीं है, बल्कि आजादी के कुछ समय बाद से ही लगातार वहां इस तरह के हालात पैदा किए जाते रहे हैं। इसका समाधान ढूंढ़ने का काम आम पाकिस्तानियों को करना है। लोकतंत्र की सफलता के लिए कुछ खास शर्तें होती हैं। दुखद है कि पूर्व की सरकारों ने उन शर्तों को पूरा नहीं किया, जिसके कारण सत्ता सेना के हाथ में जाती रही। अब देखने वाली बात यह है कि इमरान खान प्रकरण का क्या नतीजा निकलता है? यह पूरा घटनाक्रम यही जाहिर करता है कि पाकिस्तान में सेना सहित सामंती तत्वों का गठजोड़ सत्ता पर पूरी तरह से हावी है, जिससे भविष्य में भी हालात ऊपर-नीचे होते रहेंगे।
मुकेश कुमार मनन 

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