फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन साइबर संसारमुफ्त की रेवड़ियां काम की नहीं

मुफ्त की रेवड़ियां काम की नहीं

अच्छी बात है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने निर्माण श्रमिकों के लिए डीटीसी बसों में मुफ्त यात्रा सेवा की शुरुआत की है। मगर, दिल्ली की सड़कों और फुटपाथों की हालत अब भी जानलेवा और ‘जामदेवा’ बनी हुई है...

मुफ्त की रेवड़ियां काम की नहीं
हिन्दुस्तानTue, 10 May 2022 08:46 PM
ऐप पर पढ़ें

अच्छी बात है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने निर्माण श्रमिकों के लिए डीटीसी बसों में मुफ्त यात्रा सेवा की शुरुआत की है। मगर, दिल्ली की सड़कों और फुटपाथों की हालत अब भी जानलेवा और ‘जामदेवा’ बनी हुई है। इससे न सिर्फ जनता बहुत परेशान है, बल्कि दिल्ली का आर्थिक विकास भी रुक गया है, जो शायद केजरीवाल सरकार को दिखाई नहीं देता। यहां फुटपाथों पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण आम हैं, इसीलिए हर रोज दिल्ली की बेचारी जनता इस भयंकर गरमी में जाम और हादसों में फंसी रहती है। इससे न जाने कितने धन, ईंधन, समय और ऊर्जा की बर्बादी होती है। धूल व धुएं से प्रदूषण अलग होता है। इसलिए केजरीवाल सरकार जनता को तुरंत राहत देकर अपनी अलग छवि की मिसाल दे, वरना ये मुफ्त की रेवड़ियां किसी काम न आएंगी।
वेद मामूरपुर

लुभावनी घोषणाएं सही अर्थनीति नहीं
समय के साथ मुफ्तखोरी भारतीय राजनीति का अभिन्न अंग बनती जा रही है। चाहे वह चुनावी संघर्ष में मतदाताओं को लुभाने के लिए वादे के रूप में हो या सत्ता में बने रहने के लिए मुफ्त सुविधाओं के रूप में। यही कारण है कि चुनावों के समय लोगों की ओर से ऐसी अपेक्षाएं प्रकट की जाने लगी हैं, जिन्हें मुफ्त के वादों से ही पूरा किया जाता है। देश के सभी राज्यों को लोकलुभावन वादों से बचना चाहिए। इसका प्रभाव राजकोष पर पड़ता है। भारत के अधिकांश राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब है। यदि राज्य कथित राजनीतिक लाभ के लिए व्यय करना जारी रखेंगे, तो उनकी वित्तीय स्थिति डगमगाने लगेगी और राजकोषीय अनुशासन भंग होने की स्थिति बनेगी। भारत बड़ा देश है और यहां अब भी ऐसे लोगों का एक बड़ा समूह मौजूद है, जो गरीबी में गुजर-बसर कर रहे हैं। इसलिए देश की विकास योजनाओं में सभी लोगों को शामिल किए जाने की जरूरत है। ऐसे में, बेहतर यही होगा कि सरकारें अब मुफ्त की घोषणाओं और वादों से बचें।
राहुल सिंह

फायदेमंद होती हैं ऐसी योजनाएं
आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश पर 6.53 लाख करोड़ रुपया कर्ज है, जबकि कर्नाटक पर 4.70 लाख करोड़ रुपया। इसी तरह, मध्य प्रदेश पर 3.37 लाख करोड़, गुजरात पर 3.8 लाख करोड़ और हरियाणा पर 2.29 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। दूसरी तरफ, दिल्ली की सरकार है, जो बिजली, पानी, महिलाओं-श्रमिकों के लिए मुफ्त बस सफर, मुफ्त दवाइयां और महंगे से महंगे इलाज की सुविधा बिल्कुल मुफ्त दे रही है। बुजुर्ग नागरिकों को मुफ्त में तीर्थयात्रा करा रही है। स्कूल व डिग्र तक की पढ़ाई करनेवाले छात्रों को लाखों रुपये छात्रवृत्ति के रूप में दे रही है। देश के लिए अपने प्राण देने वाले सेना के जवानों के परिजनों को एक करोड़ रुपया बतौर सम्मान राशि दे रही है। चाहे सरकारी चिकित्सक हों, कर्मचारी हों, पुलिस अधिकारी या हवलदार, सभी के परिवारवालों के लिए दिल्ली सरकार ने पहल की है। इतना ही नहीं, केजरीवाल सरकार ने पिछले सात वर्षों में टैक्स भी नहीं बढ़ाया है। जनहित की इतनी सुविधाएं मुफ्त देने के बाद भी दिल्ली सरकार का बजट 7,600 करोड़ रुपये सरप्लस है, यानी फायदे में है। इसलिए मुफ्त की योजनाओं को लेकर बेजा राग अलापना बंद करें। 
समिधा

अंतिम व्यक्ति तक बनती पहुंच
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास। यह कोई गरीबी हटाओ  जैसा नारा नहीं, बल्कि मोदी सरकार का मूल मंत्र है। इसी को ध्यान में रखकर हर जन-कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाया जा रहा है। इसका फायदा लोगों को किस हद तक मिल रहा है, इसकी तस्दीक किसी भी गांव में जाकर की जा सकती है। अंत्योदय के सिद्धांत पर आधारित केंद्र सरकार की योजनाएं समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंच रही हैं। इसका असर जमीन पर भी दिखता है, और हमारे व आपके आस-पास भी। ऐसी योजनाओं से भला क्यों हमें ऐतराज हो!
आलोक रंजन 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें