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अदालत में बढ़ी आस्था

मौलिक अधिकारों की रक्षा के मामले में सुप्रीम कोर्ट हमेशा सजगता और मुखरता से अपने न्यायिक फैसले करता है, और शायद न्यायपालिका में आम जनता की आस्था की एक बड़ी वजह है...................

अदालत में बढ़ी आस्था
हिन्दुस्तानTue, 03 May 2022 09:46 PM

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मौलिक अधिकारों की रक्षा के मामले में सुप्रीम कोर्ट हमेशा सजगता और मुखरता से अपने न्यायिक फैसले करता है, और शायद न्यायपालिका में आम जनता की आस्था की एक बड़ी वजह है। आजकल बड़े-बड़े मॉलों और होटलों में बिना टीकाकरण सर्टिफिकेट के एंट्री मान्य नहीं है। गजब बात तो यह है कि वहां मौजूद बाउंसर या सुरक्षा गार्ड आम आदमी को धमकाते हुए यह तक जताते हैं कि बिना वैक्सीन के आप सबसे बड़े गुनहगार हैं, हालांकि, वैक्सीन लगवाकर कोरोना से बार-बार झटका खाते लोग भी मिल जाएंगे और बिना वैक्सीन के स्वस्थ व मस्त दिख रहे लोग भी। मतलब, सरकार और स्वास्थ्य विभाग सिवाय टीके की मार्केटिंग करने के और कुछ नहीं कर रहे। वे यह बताने में अब तक विफल रहे हैं कि टीकों के साइड इफेक्ट, क्लिनिकल ट्रायल और बिना वैक्सीन के लोगों का कोरोना संक्रमण में योगदान से जुड़ी जानकारियां या आंकड़े क्या हैं? कोर्ट ने यही तो मांगा है। हालांकि, कोरोना से बचाव के लिए दो गज की दूरी और मास्क जरूरी जैसे नियमों का पालन सबको करना चाहिए। यह सबकी सुरक्षा के लिए जरूरी है।
शिवम गोयल

एक बड़ी जीत
देश भर के ‘वैक्सीन एक्टिविस्ट’ की यह एक बड़ी जीत है। सुप्रीम कोर्ट ने उचित कहा है कि किसी भी व्यक्ति को जबरदस्ती कोरोना का टीका नहीं लगाया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा है कि टीका न लगवाने वाले लोगों के निकलने पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं है। कोरोना वैक्सीन लगवाने से देश में बहुत से लोग हिचक रहे हैं। ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं, जब स्वास्थ्यकर्मियों से लोग टीका न लगवाने को लेकर झगड़ते दिखे। इस कारण कुछ राज्यों व संगठनों ने टीका न लगवाने वालों की सार्वजनिक मौजूदगी पर पाबंदी लगा दी थी। अदालत ने इन सबको खारिज कर दिया है। उसने साफ-साफ कहा है कि इस तरह की पाबंदियां ठीक नहीं हैं और मौजूदा स्थिति में इन्हें  वापस लिया जाना चाहिए।
मनोज तिवारी

टीकाकरण में रखें विश्वास
लगता है कि अब अपने देश में जजों की नियुक्ति भी जनादेश से होनी चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि न्यायपालिका पर यह आरोप लगने लगा है कि वह देशहित में फैसले नहीं लेती है और सरकार-विरोधी एजेंडे चलाती है। एक नए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि टीका लेने के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता। बेशक, अदालत यह भी मानती है कि टीकाकरण जरूरी है, लेकिन अब अगर कोई टीका नहीं लगाएगा और वह बीमार हो जाता है या किसी दूसरे को संक्रमण फैलाता है, तब इसके लिए किसे कुसूरवार माना जाएगा? और अगर उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसकी मौत का जिम्मेदार कौन होगा? इतना ही नहीं, क्या यह उचित है कि एक व्यक्ति टीका न ले और दूसरे को संक्रमण बांटता फिरे? अगर ऐसा कुछ होगा, तो विपक्षी दलों को सरकार को बदनाम करने का एक और मौका मिल जाएगा। ऐसे में, क्या यह अच्छा नहीं होगा कि सभी के लिए टीकाकरण अनिवार्य बना दिया जाए? 
अभिमन्यु कुमार सिंह

कौन होगा जिम्मेदार
ठीक है, वैक्सीन लगवाने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता, लेकिन कोविड प्रबंधन की विफलता के लिए जवाबदेह कौन होगा- केंद्र सरकार, संबंधित राज्य सरकार या फिर टीका लेने से मना करने वाले लोग? 
वरुण सिंह

सावधान रहिए और टीका लगवाइए
कोरोना के लिए अब क्यों रोना? जो बीत चुका, सो बीत चुका। अब दुनिया लेने लगी है अंगड़ाई। टीका लगवाओ, भीड़ से बचो, और जहां जरूरत है, मास्क लगाओ। यही है कोरोना से बचने का कारगर उपाय। कहने दो कहने वालों को कि मई तो केवल झांकी है, जून-जुलाई की चौथी लहर बाकी है। आप भरोसा रखिए, सतर्क रहिए और टीका लगवाइए। कोरोना से लड़ने के लिए इतना ही काफी है।
प्रदीप सहाय 

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