धर्मांतरण आज भी एक बड़ी चुनौती
उत्तर प्रदेश सरकार ने झांसा देकर धर्मांतरण कराने की समस्या के समाधान के लिए जो कानून बनाया है, वह कितना सफल होगा या उस पर कितनी सस्ती राजनीति होगी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन छल-कपट...
उत्तर प्रदेश सरकार ने झांसा देकर धर्मांतरण कराने की समस्या के समाधान के लिए जो कानून बनाया है, वह कितना सफल होगा या उस पर कितनी सस्ती राजनीति होगी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन छल-कपट से धर्मांतरण और लव-जिहाद आज पूरे देश की एक बड़ी समस्या है और इसके लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। यहां तक कि अदालत भी मान चुकी है कि जबरन धर्म परिवर्तन से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा होता है, इसलिए उत्तर प्रदेश जैसी गंभीरता सभी सरकारों को दिखानी चाहिए और बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के इस मुद्दे पर काम करना चाहिए, ताकि भोले, लोग, आदिवासी और अन्य नागरिक बलि का बकरा न बनने पाएं।
यह बहुत ही गलत है कि धर्म विशेष के लोग दुनिया के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष देश की नीतियों का गलत फायदा उठाकर जबर्दस्ती धर्मांतरण करवा रहे हैं। इसके लिए वे गरीबों और आदिवासी लोगों को अपने जाल में फंसा रहे हैं। मगर ऐसा आखिर वे क्यों कर रहे हैं? किस धर्म में लिखा है कि मजहब के नाम पर छल करना या दूसरों को गुमराह करना जायज है? अगर धर्म विशेष के लोग गरीबों या अन्य वंचितों का भला करना चाहते हैं, उनकी मदद ही करना चाहते हैं, तो वे धर्म परिवर्तन की शर्त क्यों रखते हैं? हालांकि, जो लोग चंद रुपयों के लोभ में अपना धर्म छोड़ देते हैं, वे यही साबित करते हैं कि उन्हें धर्म से नहीं, बल्कि भौतिक सुख-सुविधाओं से प्यार है। बावजूद इसके धर्मांतरण कराने वालों का अपराध कम नहीं हो जाता। जो लोग ऐसा करते हैं, वे एक तो धर्म को बदनाम करते हैं और दूसरे, देश का राजनीतिक माहौल भी खराब करते हैं। ऐसे लोगों से सख्ती से निपटना ही एकमात्र उपाय है।
कुछ यही कहानी लव-जिहाद की भी है। यह बीमारी तभी समाप्त हो सकती है, जब या तो इसके लिए इस्लामी देशों जैसा सख्त कानून बने या फिर लड़कियों को उन लड़कों से बचने के लिए जागरूक किया जाए, जो इस कुत्सित मंशा के साथ दोस्ती बढ़ाते हैं। कितनी शर्मनाक बात है कि कुछ खास मानसिकता के लोग अपने स्वार्थ के लिए प्यार के रिश्ते को दागदार करते हैं। यह समझना चाहिए कि सच्चा प्यार न तो धन-दौलत देखता है, न धर्म-जाति और न ही बदले की भावना रखता है। यह देखते हुए कि लव-जिहाद की शिकार बनी लड़कियों के साथ बाद में काफी दुर्व्यवहार होता है, हमें इस आपराधिक प्रवृत्ति को रोकना ही होगा। अच्छी बात है कि राज्य सरकार इसको लेकर गंभीर हुई है। उम्मीद है, इसका व्यापक असर दिखेगा।
राजेश कुमार चौहान, टिप्पणीकार
धीरे-धीरे कम हो रही यह समस्या
भारत में इस्लामी धर्मांतरण अंग्रेजों के शासन में एकाधिकार स्थापित करते ही धीरे-धीरे न्यनूतम होता गया, जो वर्तमान में स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है। लेकिन अंग्रेजों के शासन में ईसाई धर्मांतरण ने जोर पकड़ा, जो आज भी साफ-साफ देखा जा सकता है। यह आश्चर्यजनक है, क्योंकि अंग्रेजों के शासनकाल का अंत तो साल 1947 में ही हो गया था। ऐसा मुस्लिम धर्मांतरण के संदर्भ में नहीं हुआ था। इसका कारण था, इस्लामी धर्मांतरण और ईसाई धर्मांतरण के लिए अपनाए जाने वाले तरीकों में अंतर। इस्लाम में धर्मांतरण जहां तलवारों के जोर पर कराया जाता था, तो वहीं ईसाई धर्मांतरण प्रलोभन के जरिये।
तलवार का जोर सत्ता पर मजबूत पकड़, या कहें कि एकाधिकार के बिना चलना संभव ही नहीं होता, परंतु प्रलोभन के लिए धन की थैली का बड़ा होना ही पर्याप्त होता है, जो सत्ता, शासन-प्रशासन में आपकी सेंधमारी और आपके क्रियाकलापों के प्रति उनकी उदासीनता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका सफलतापूर्वक अदा करती है। केंद्र में भाजपा की अगुवाई में राजग शासन के आने के बाद से ईसाई धर्मांतरण के लिए जिम्मेदार धन की थैली का आकार दिनों-दिन छोटा होता जा रहा है। रही बात बौद्ध धर्मांतरण की, तो पिछली कई सदियों से भारत में इसके लिए न तो तलवार का जोर उपलब्ध रहा है और न ही धन की थैली। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने संभवत: जन्म से श्रेष्ठता बोध से ग्रस्त सवर्ण हिंदू मठाधीशों को मुंह चिढ़ाने के लिए बौद्ध धर्म अपनाया था और आज भी भारत में मुख्यत: दलित राजनीति करने वालों द्वारा जन्मगत श्रेष्ठता बोध से ग्रसित सवर्ण हिंदू मठाधीशों को मुंह चिढ़ाने के लिए बौद्ध धर्म अपनाने का स्वांग रचा जाता है। बाईस प्रतिज्ञा की भाषा, विषय-वस्तु और लहजा इसी मुंह चिढ़ाने के भाव को प्रमाणित करता है।
स्पष्ट है, भारत में बलात या घूस या प्रलोभन के बल पर धर्मांतरण कराने की संभावनाएं दिनों-दिन क्षीण ही होती जाएंगी। इस किस्म की घुसपैठ के जरिये धर्म विशेष के लोगों की संख्या बढ़ाने की संभावना भी खत्म ही समझें। इसके बाद बचता है दो और खतरा। एक, उच्च जन्म दर का और दूसरा, जन्मगत श्रेष्ठता बोध से ग्रस्त पाखंडियों की दंभ भरी अभिव्यक्ति व आचरण। इन दोनों खतरों से निपटने के लिए सिर्फ कानून बनाने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए हिंदुओं में समरसता बोध बढ़ाने के लिए बहुत गंभीरता से प्रयास करना होगा। उच्च जन्म दर की समस्या का समाधान तो शिक्षा के प्रसार और जीवन स्तर में सुधार से बहुत हद तक प्राप्त किया जा सकता है।
बलराम मिश्रा, टिप्पणीकार