फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन साइबर संसारचुनाव आयोग की चुनौती

चुनाव आयोग की चुनौती

मौजूदा लोकसभा चुनाव में भी चुनाव आयोग को आचार संहिता की याद दिलाते रहने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है, मगर नेता और राजनीतिक दल हैं कि कभी जानते-बूझते, तो कभी कथित बेख्याली में संहिता की...

चुनाव आयोग की चुनौती
डायचे वेले में शिवप्रसाद जोशीFri, 05 Apr 2019 12:23 AM
ऐप पर पढ़ें

मौजूदा लोकसभा चुनाव में भी चुनाव आयोग को आचार संहिता की याद दिलाते रहने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है, मगर नेता और राजनीतिक दल हैं कि कभी जानते-बूझते, तो कभी कथित बेख्याली में संहिता की अनदेखी कर रहे हैं। ...आदर्श चुनाव आचार संहिता एक सहमति का दस्तावेज है। राजनीतिक दल खुद इस पर राजी हुए हैं कि वे चुनाव के दौरान अपने तौर-तरीकों पर नियंत्रण रखेंगे और इस संहिता के दायरे में काम करेंगे। संहिता के मुताबिक, उम्मीदवारों और दलों को अपने विरोधियों के प्रति सदाशयता रखनी चाहिए, नीतियों और कार्यक्रमों की रचनात्मक आलोचना होनी चाहिए, निजी आरोप-प्रत्यारोप नहीं होने चाहिए।

बाज मौकों पर चुनाव आयोग अपनी सख्ती व साहस के लिए भी याद किया जाता है। शेषन और लिंगदोह जैसे मुख्य चुनाव आयुक्तों के कार्यकाल तो इसके उदाहरण हैं ही, 2014 में तत्कालीन सीईसी वी एस संपत ने भाजपा नेता अमित शाह और सपा नेता आजम खान के यूपी में चुनाव प्रचार करने पर रोक लगा दी थी। शाह तो माफी मांगकर बच निकले, पर आजम खान अड़े रहे, लिहाजा प्रचार नहीं कर पाए। चुनाव जिस तरह से सत्ता और वर्चस्व की लड़ाई का माध्यम बन गए हैं, उसमें ये आयोग के साहस उसकी विश्वसनीयता, पारदर्शिता की कड़ी परीक्षा भी हैं।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें