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शिष्य बनना सीखें

मीरा से बड़ा ‘गुरु खोजी’ कोई दूसरा शिष्य नहीं है और रविदास से बड़ा कोई गुरु नहीं, क्योंकि गुरु भाषा से नहीं, आचरण से चलता है। आडंबर से तो कतई कोई गुरु नहीं होता। छाप, तिलक, पहनावा, सब आडंबर...

शिष्य बनना सीखें
चंचल की फेसबुक वॉल सेSun, 05 Jul 2020 08:52 PM
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मीरा से बड़ा ‘गुरु खोजी’ कोई दूसरा शिष्य नहीं है और रविदास से बड़ा कोई गुरु नहीं, क्योंकि गुरु भाषा से नहीं, आचरण से चलता है। आडंबर से तो कतई कोई गुरु नहीं होता। छाप, तिलक, पहनावा, सब आडंबर है। रंगना है, तो मन रंग लो, कपड़ा रंगकर कब तक आडंबर में रहोगे? 
बहुत से लोग शिक्षक को गुरु के गुरुत्व पर चढ़ा देते हैं। इस मुल्क से गुरु-शिष्य परंपरा तो उसी दिन खत्म हो गई, जब ‘आश्रम’ उजाड़ दिए गए, उनकी जगह शिक्षण संस्थानों का जन्म हुआ। समाज की जिम्मेदारी थे आश्रम, शिक्षण संस्थान तो सरकारी नियंत्रण में आ गए। फिर शिक्षा बाजार में खड़ी हो गई। आश्रम के गुरु की जगह पाठशाला में शिक्षक खड़ा हो गया। गुरु अनमोल थे, शिक्षक सरकारी दमड़ी के भाव खरीदे गए। पाणिनि की जगह मैकाले आ खड़े हुए। इस बात को सबसे पहले गांधीजी ने देखा, समझा और बहिष्कार का नारा ही नहीं दिया, उसका विकल्प भी दिया- विद्यापीठ। काशी विद्यापीठ इसका उदाहरण है। एक कुलपति हमने भी देखा है। प्रोफेसर राजाराम शास्त्री। उन जैसों को देखकर गुरु-शिष्य भाव खुद उपज जाता है। पर अब? गुरु खोजो मत। सब जगह बिखरे पड़े हैं, बस पहचानने की आदत डाल लो। जूता बनाने वाले से लेकर बकरी को आवाज देकर बुलाने वाले भी गुरु भाव से पूर्ण हैं, हम में ही शिष्यत्व नहीं है।
 

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