मुंशी, सिपाही और मजदूर
हिंदीप्रेमी जानते हैं कि धनपत राय सरकारी नौकरी में रहते हुए अपने मूल नाम को छिपाकर नवाब राय के नाम से लिखते थे। सोजे-वतन के प्रकाशन के बाद इस नाम पर प्रतिबंध लग जाने के कारण उन्होंने अपना नाम...
हिंदीप्रेमी जानते हैं कि धनपत राय सरकारी नौकरी में रहते हुए अपने मूल नाम को छिपाकर नवाब राय के नाम से लिखते थे। सोजे-वतन के प्रकाशन के बाद इस नाम पर प्रतिबंध लग जाने के कारण उन्होंने अपना नाम प्रेमचंद रखा। पर नाम बदलने से कोई आदमी बदल जाता है?
प्रेमचंद कभी मुंशी नहीं रहे, उन्होंने कभी मुंशी का काम नहीं किया। लेकिन महारथी लोगों ने मिलकर उन्हें मुंशी बना दिया। कुछ लोगों को सिपाही से प्रेम था, तो कलम का सिपाही बना दिया। कुछ ने उन्हें कलम का मजदूर बना दिया। किसी ने जनवादी लेखक बना दिया, तो किसी ने प्रगतिशील लेखक। पर प्रेमचंद को अपने वतन से बेपनाह लगाव था और उन्होंने अपने पहले कहानी संग्रह का नाम सोजे-वतन रखकर यह संकेत भी दिया था कि वह अपने वतन के प्रेम की अग्नि में सतत जलने वाले लेखक थे। देश और वतन में हल्का सा अंतर है। देश किसी भी भौगोलिक स्थान, क्षेत्र या मुल्क को कहा जा सकता है, पर वतन तो मातृभूमि है, जन्मस्थली है। वतन में अपनत्व का बोध होता है। प्रेमचंद को अपने वतन की दयनीय स्थिति देखकर सोज होता है। सोज का अर्थ है, जलन, मनस्ताप या पीड़ा!... अपने वतन की पीड़ा को महसूस करते हुए निरंतर छटपटाते प्रेमचंद के लेखन में एक लपट है। यह हमें लगातार जगाती रहती है।