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प्रश्न ही प्रतिपक्ष

कोरोना महामारी और उसके कारण लागू किए गए लॉकडाउन में भय बहुत व्यापक हो गया है। लगता है, हम अब एक भयाक्रांत व्यवस्था बन गए हैं। पर इसके साथ-साथ यह भी अलक्षित नहीं जा सकता कि गाली-गलौज, लांछन, झगडे़ से...

प्रश्न ही प्रतिपक्ष
सत्याग्रह में अशोक वाजपेयीWed, 29 Jul 2020 10:58 PM
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कोरोना महामारी और उसके कारण लागू किए गए लॉकडाउन में भय बहुत व्यापक हो गया है। लगता है, हम अब एक भयाक्रांत व्यवस्था बन गए हैं। पर इसके साथ-साथ यह भी अलक्षित नहीं जा सकता कि गाली-गलौज, लांछन, झगडे़ से किसी संवाद को असंभव बनाने वाली भक्ति और पालतू प्रवृत्तियों के बरक्स लोग लगातार प्रश्न भी पूछ रहे हैं। पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम, चीन की भारत में घुसपैठ, कोरोना प्रकोप को लेकर की गई नई-पुरानी घोषणाओं और वक्तव्यों को सामने लाकर लगातार बेचैन करने वाले प्रश्न पूछे जा रहे हैं।
शीर्षस्थ राजनेताओं की गतिविधियों पर यह सजग नागरिकता कड़ी नजर रख रही है और उनकी असंगतियों और चूकों को सामने ला रही है। इसका राजनीतिक प्रतिफल क्या और कब होगा, यह कहना मुश्किल है, पर लगता है कि राजनीतिक दलों से अलग और विपक्ष से विच्छिन्न एक तरह का अव्यवस्थित, पर सजग-सक्रिय प्रतिपक्ष अब साधारण अज्ञात कुलशील नागरिकता रूपायित कर रही है। यह आकस्मिक नहीं है कि इसमें रचने-सोचने वाला बड़ा समुदाय शामिल है। यह ज्यादातर सांप्रदायिक, लालची, धर्मांध, जातिवादग्रस्त मध्यवर्ग से अलग एक ढीला-ढाला वर्ग है। सत्ताओं द्वारा उसे दबाना या नष्ट करना आसान नहीं होगा।
 

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