उनकी इमदाद करिए
आप यकीन नहीं करेंगे, मैं (‘मैं’ पहली बार बोल रहा हूं, वरना मैं अपने को ‘हम’ लिखता हूं) आजकल रोने लगता हूं। और भी कई रोते होंगे, लेकिन वे छिपा रहे होंगे, हमने भी छिपाया है,...
आप यकीन नहीं करेंगे, मैं (‘मैं’ पहली बार बोल रहा हूं, वरना मैं अपने को ‘हम’ लिखता हूं) आजकल रोने लगता हूं। और भी कई रोते होंगे, लेकिन वे छिपा रहे होंगे, हमने भी छिपाया है, लेकिन अब नहीं बर्दाश्त हो रहा, तो खुलकर बता रहा हूं- रोने लगता हूं।
मैं कमजोर नहीं हुआ, विवश महसूस करता हूं, जब सोचता हूं कि भारत का एक हिस्सा ‘वतन वापसी’ में पैदल चल रहा है। हजार किलोमीटर से भी ज्यादा की दूरी वह पैदल तय कर रहा है। उसका यह पैदल मार्च कुंभ की आस्था नहीं, मैहर, सबरी और अप्पन की उपासना भी नहीं, यह उसको मिली दैविक और भौतिक आपदा है। आपने देश को लॉकडाउन कर दिया बगैर किसी तैयारी के, बगैर देश को समझे, यह भी नहीं सोचा कि भारत में एक ऐसा बड़ा समाज है, जो हर रोज कुआं खोदता है और पानी पीता है। दिन भर की दिहाड़ी ही उसका वर्तमान है!
मेहरबानी करके यह सीख लीजिए और स्वीकार कर लीजिए, वह जो पैदल चल पड़ा है, वह गरीब नहीं, गैर-बराबरी का मारा हुआ है। हमने पहले ही दिन लोगों से अपील की थी- यह भीड़ जो पैदल गांव की तरफ कूच कर रही है, इसकी इमदाद करिए, इसके भोजन का इंतजाम करिए। इसको रहने की जगह दीजिए। बहुत उपकार होगा।