कब बोलती हैं लड़कियां
शाम गहराती जा रही है, दूर आसमान यूं लाल है, जैसे उसके दिल का लहू किसी ने निचोड़कर बहा दिया हो, बाकी सब गहरा सलेटी, धुंधला, और मटमैला है! दोपहर तेज आंधी के साथ बारिश आई और जरा सी देर में सब उजाड़कर चली...
शाम गहराती जा रही है, दूर आसमान यूं लाल है, जैसे उसके दिल का लहू किसी ने निचोड़कर बहा दिया हो, बाकी सब गहरा सलेटी, धुंधला, और मटमैला है! दोपहर तेज आंधी के साथ बारिश आई और जरा सी देर में सब उजाड़कर चली गई। जिंदगी में कई हादसे, वाकये ऐसे ही झपटते हुए आते हैं और सब कुछ तहस-नहस करके चले जाते हैं। पीछे छूट जाता है सिर्फ मलबा। इन्हीं मलबों में से फिर तिनके चुने जाते हैं, नई सुबह के ख्वाब लिए और जिंदगियां जीने की जद्दोजहद में चल पड़ती हैं।
लड़की का कहा भी दुनिया कहां सुनती है? सुन लेती, तो उसे जीने न देती, जिंदा दफ्न कर देती, क्योंकि दुनिया को बोलने वाली लड़कियां पसंद नहीं। दुनिया को ठहाके लगाने वाली लड़कियां भी नहीं पसंद, पर लड़कियां अजीब मिट्टी की बनी होती हैं, वे पीटे जाने पर भी हंसती हैं, हंसने की उनकी आदत इतनी बेतुकी होती है कि वे पतंग को उड़ता देख लें, तब भी हंस दें। लड़कियां जागते हुए नहीं, नींद में बोलती हैं, उनकी लिपि गूढ़ होती है, आवाजें अस्फुट। वे सपनों में, आंसुओं में, सुबकियों में, बुदबुदाहटों में तमाम रात बोलती रहती हैं। उनकी आवाजें आकाशगंगाओं के परे गूंजती रहती हैं, दुनिया का मालिक इन आवाजों से घबरा उठता है और फिर लड़कियों के इर्द-गिर्द दीवार तनिक और ऊंची कर दी जाती है।