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पिता की हसरतें 

बाबा (नागार्जुन) की कविता गुलाबी चूड़ियां  जब पढ़ी, तब तो उम्र क्या होगी, पर यह सोचता कि कभी मेरी भी सात साल की बेटी होगी, और मैं भी उसके लिए कुछ लेकर जाऊंगा। पता नहीं, उस वक्त गुलाबी चूड़ियों का...

पिता की हसरतें 
प्रवीण कुमार झा की फेसबुक वॉल सेSat, 07 Jul 2018 01:02 AM
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बाबा (नागार्जुन) की कविता गुलाबी चूड़ियां  जब पढ़ी, तब तो उम्र क्या होगी, पर यह सोचता कि कभी मेरी भी सात साल की बेटी होगी, और मैं भी उसके लिए कुछ लेकर जाऊंगा। पता नहीं, उस वक्त गुलाबी चूड़ियों का फैशन हो, न हो। अब सात साल की बच्ची का और क्या शृंगार होगा?... मैं भविष्य देखने में रुचि रखता था, आठवीं क्लास में टॉफलर की किताब जैसे-तैसे पढ़ ली थी। यह लग गया कि सब कुछ फैशन से बाहर हो जाएगा, जब मैं पिता बनूंगा। उस वक्त बाजार बड़ा होगा, पर बेटी की उम्र तब भी उतनी ही होगी। खिलौने हर दिन बदलेंगे कि वह यह निर्णय नहीं कर पाएगी कि उसे लेना क्या है? वह शृंगार न समझेगी, पर विज्ञान समझने लगेगी। वह शायद घूमता हुआ ‘ग्लोब’ मांगे या छोटा कंप्यूटर मांगे या सुनहरे बालों वाली विदेशी गुड़िया। या शायद कुछ मांगे ही नहीं। खिलौने लाऊं भी, तो वह ध्यान न दे। उसकी उम्र जो कागज पर दर्ज हो, उससे ज्यादा हो। वह हर बड़ी बात थोड़ा-बहुत समझने लगे। पता नहीं, उस वक्त बेटी के लिए पिता आखिर क्या तोहफे लाएगा, क्या कामना करेगा? वह किसी भय में गाड़ी तेज तो न चलाएगा कि ये गुलाबी चूड़ियां मिलें न मिलें, बेटी का चेहरा तो देख ले। यह बात टॉफलर क्या बताते, यह तो हमारी तकदीर थी। 

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