सत्ता से बड़ी मनुष्यता
रामकथा के अनेक संस्करण हैं। लेकिन एक बात सबमें एक जैसी है। अयोध्या के सिंहासन का स्वैच्छिक परित्याग और वनवास-ग्रहण। जनमानस में राम की अमिट प्रतिष्ठा की असली वजह यही है। राम ने खुद तय किया कि जिस...
रामकथा के अनेक संस्करण हैं। लेकिन एक बात सबमें एक जैसी है। अयोध्या के सिंहासन का स्वैच्छिक परित्याग और वनवास-ग्रहण। जनमानस में राम की अमिट प्रतिष्ठा की असली वजह यही है। राम ने खुद तय किया कि जिस सिंहासन पर उनका नाम लिखा था, उसे त्यागकर 14 साल के लिए वन चले जाएंगे। लोक हृदय में इस त्याग की बड़ी महिमा है। यह निरी पितृभक्ति नहीं थी, यह एक आदर्श था कि राजसत्ता मनुष्यता से बड़ी नहीं हो सकती। रामकथा राजसत्ता के इर्द-गिर्द चक्कर काटने वाले मानव जाति के इतिहास में एक विप्लवकारी हस्तक्षेप करती है। यह एक ऐसा मौलिक मूल्य-परिवर्तन है, जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं।
सत्ता परित्याग के इस आदर्श के कारण ही जनता ने राम को अपने हृदय में स्थान दिया। शंबूक और सीता के साथ हुए अन्याय के बावजूद। अजब यह है कि इस दोहरे अन्याय को कभी भुलाया भी नहीं गया। जनमानस द्वारा इन्हें क्षमा भी नहीं किया गया। इन्हें राम के चरित्र की दुर्बलता के रूप में याद रखा गया। लेकिन उस त्याग और वनवास की महिमा बनी रही। क्योंकि जिस सत्ता के लिए अपनी मनुष्यता की हत्या करने में लोगों को रंचमात्र हिचक नहीं होती, उसे अपनी मनुष्यता की रक्षा के लिए ठोकर मार देने का आदर्श कथाओं के संसार में भी दुर्लभ है।