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अविभाजित देश की बेटी

फहमीदा रियाज न भारत की थीं, न पाकिस्तान की। वह अविभाजित हिन्दुस्तान की बेटी थीं और सारी उम्र वह उसी टूटे हुए देश के लिए तड़पती रहीं। एक आजाद औरत, एक मुकम्मल इंसान, एक विद्रोही कवि। पाकिस्तान और भारत...

अविभाजित देश की बेटी
आशुतोष कुमार की फेसबुक वॉल से Thu, 22 Nov 2018 11:09 PM
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फहमीदा रियाज न भारत की थीं, न पाकिस्तान की। वह अविभाजित हिन्दुस्तान की बेटी थीं और सारी उम्र वह उसी टूटे हुए देश के लिए तड़पती रहीं। एक आजाद औरत, एक मुकम्मल इंसान, एक विद्रोही कवि। पाकिस्तान और भारत के कट्टरपंथी, तानाशाह और अंध-राष्ट्रवादी उनसे सख्त नफरत करते थे। उनकी कालजयी नज्म तुम बिल्कुल हम जैसे निकले  दोनों देशों के राष्ट्र-धर्म-उन्मादियों के मुंह पर एक ऐसा तमाचा था, जिसे वे कभी भुला नहीं पाए, न भुला पाएंगे। एक इंटरव्यू में फहमीदा ने कहा था- ‘तालिबान और आईएसआई के लोग कहानियां-कविताएं नहीं पढ़ते। अगर वे पढ़ते होते, तो वे वैसे नहीं रह पाते, जैसे वे हैं। इसीलिए यह जरूरी है कि हम कविताएं-कहानियां लिखते रहें।’ 

दिल्ली पर लिखी उनकी एक बेहद मार्मिक नज्म है- दिल्ली! तिरी छांव बड़ी कहरी/ मिरी पूरी काया पिघल रही/ मुझे गले लगाकर गली-गली/ धीरे से कहे ‘तू कौन है री?’ मैं कौन हूं मां तिरी जाई हूं/ पर भेस नए से आई हंू/ मैं रमती पहुंची अपनों तक/ पर प्रीत पराई लाई हूं।... नस नस में लहू तो तेरा है/ पर आंसू मेरे अपने हैं/ होंठों पर रही तिरी बोली/ पर नैन में सिंध के सपने हैं... तू सदा सुहागन हो मां री!/ मुझे अपनी तोड़ निभाना है/ री दिल्ली छूकर चरण तिरे/ मुझको वापस मुड़ जाना है।

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