बाजूबंद खुल-खुल जाए
नवाब वाजिद अली शाह की अधिकतर मशहूर ठुमरियां भैरवी में बिठाई गईं। बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए तो उन्होंने तब लिखी, जब उन्हें अवध की नवाबी छोड़कर कलकत्ता (अब कोलकाता) के...
नवाब वाजिद अली शाह की अधिकतर मशहूर ठुमरियां भैरवी में बिठाई गईं। बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए तो उन्होंने तब लिखी, जब उन्हें अवध की नवाबी छोड़कर कलकत्ता (अब कोलकाता) के मटियाबुर्ज जाना पड़ा था। वह ‘अख्तरपिया’ नाम से ठुमरी लिखते थे। उनका साथ देने के लिए होते थे वह व्यक्ति, जो भारत में हारमोनियम के पितामह कहे जा सकते हैं- भैया साहब गणपत राव। वह भी ‘सुघरपिया’ नाम से ठुमरी लिखते। इसके अलावा, बिरजू महाराज के दादाजी बिंदादीन महाराज कथक करते। स्वयं वाजिद अली शाह भी बेहतरीन कथक नृत्य करते, और तमाम नाचने-गाने वालियां तो उनके साथ रहतीं ही। गायकी पर होते बनारस के उस्ताद मोइजुद्दीन खान और फिर रचा जाता- बाजूबंद खुल-खुल जाए, सांवरिया ने जादू डारा। अवध के नवाब पर राधा-कृष्ण का प्रभाव क्यों था, यह तो बताने की जरूरत ही नहीं। उनका रचना संसार ही इस प्रेम के इर्द-गिर्द है। लेकिन ‘बाजूबंद खुल-खुल जाए’ का अर्थ क्या हो? इस पर कुमुद झा दीवान ने लिखा है कि राधा विरह में इतनी दुबली होती जा रही है कि बाजूबंद खुल-खुल जा रहे हैं। ठुमरी में इसका शोख चेहरा उभर आता है, लेकिन है यह विरह गीत। भैरवी में जितनी भक्ति है, उतनी ही करुणा भी। तभी तो ठुमरियों और भैरवी का संगम है।