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पुरखों की याद

पितृ पक्ष, यानी दुनियादारी के कामों से फुरसत निकालकर अपने पूर्वजों और दिवंगत प्रिय लोगों को याद करने का अवसर। विज्ञान कहता है कि मृत्यु के बाद सब कुछ यहीं समाप्त हो जाता है। धर्म और अध्यात्म कहते हैं...

पुरखों की याद
ध्रुव गुप्त की फेसबुक वॉल सेTue, 25 Sep 2018 10:55 PM
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पितृ पक्ष, यानी दुनियादारी के कामों से फुरसत निकालकर अपने पूर्वजों और दिवंगत प्रिय लोगों को याद करने का अवसर। विज्ञान कहता है कि मृत्यु के बाद सब कुछ यहीं समाप्त हो जाता है। धर्म और अध्यात्म कहते हैं कि मृत्यु के बाद देह तो मिट्टी में मिल जाती है, पर आत्माएं अजर-अमर हैं। तर्क कहता है कि अगर भौतिक देह ही नहीं, तो भौतिक उपादानों की क्या जरूरत? मृत्यु के बाद किए जाने वाले पितृपक्ष जैसे तमाम आयोजन व्यर्थ के कर्मकांड के सिवा कुछ नहीं। लेकिन इन कर्मकांडों का एक भावनात्मक सच भी है। अगर ये कर्मकांड भी न हों, तो इस व्यस्त जीवन में कौन किसको याद करता है? हमारा दृष्टिकोण जितना भी वैज्ञानिक हो, संस्कारों से बंधे हमारे मन के किसी कोने में यह बात जरूर दबी होती है कि मृत्यु के बाद हमारे प्रियजन आसपास ही मौजूद होते हैं। पितृ पक्ष में बेहतर तो यह होगा कि परिवार के लोग रोज कुछ वक्त निकालकर एक साथ बैठें और अपने प्रिय दिवंगतों की स्मृति में दीये जलाकर उनसे जुड़ी अच्छी बातों को याद करें। मृत्यु के बाद अगर सब कुछ खत्म नहीं होता और हमारे पूर्वजों की समय और स्थान से परे किसी और आयाम में उपस्थिति है, तो उन्हें यह देखकर खुशी जरूर मिलेगी कि पिछले जीवन के उनके अपने अब भी सम्मान के साथ उन्हें याद करते हैं। 

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