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भिन्नता का सम्मान

सारा झगड़ा भिन्नता से भय का है, जबकि दुनिया में कभी दो लोग एक जैसे नहीं हुए। हिंदू-मुसलमान, बंगाली-मद्रासी, हिन्दुस्तानी-पाकिस्तानी, काले-गोरे, विषमलैंगिक-समलैंगिक। जो अलग है या मान लिया गया है, वह...

भिन्नता का सम्मान
आशुतोष कुमार की फेसबुक वॉल सेFri, 07 Sep 2018 10:36 PM
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सारा झगड़ा भिन्नता से भय का है, जबकि दुनिया में कभी दो लोग एक जैसे नहीं हुए। हिंदू-मुसलमान, बंगाली-मद्रासी, हिन्दुस्तानी-पाकिस्तानी, काले-गोरे, विषमलैंगिक-समलैंगिक। जो अलग है या मान लिया गया है, वह डराता है। यह डर ही अधिकांश फोबिया, हिंसा, उन्माद, यातना, अत्याचार, युद्ध आदि की मूल वजह है। जब सभी एक-दूसरे से भिन्न हैं, तो हम भिन्नता से डरते क्यों हैं? हम-वे, अपने-पराए, भीतरी-बाहरी आदि का भेद समझने और बरतने की बीमारी हम कब अपने बच्चों को सिखला देते हैं, पता भी नहीं चलता। लेकिन वह बच्चा ताउम्र इस आग में खुद भी जलता रहता है, दूसरों को भी जलाता रहता है। क्या भिन्नता को स्वीकार करने, उसका सम्मान करने के संस्कार को बच्चों के लालन-पालन का जरूरी हिस्सा नहीं बना देना चाहिए? करोड़ों हिन्दुस्तानियों को अदृश्य जेल से आजादी दिलाने वाला फैसला आया है। लेकिन कट्टरपंथी समूह व संघ अब भी जिद पर अड़े हैं। जिसे प्रकृति ने बनाया है, उसे प्रकृति विरुद्ध बताने पर तुले हैं। इससे अधिक अप्राकृतिक क्या होगा? हिंदू-मुस्लिम कट्टरपंथी प्यार के किसी भी इजहार पर पाबंदी लगाने के मामले में हमेशा एकमत रहते हैं। आप दोनों मिलकर अपना कट्टरिस्तान क्यों नहीं बना लेते? जान छोड़ो हमारी।

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