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कसूर की करामाती माटी

लाहौर से लगभग 45 किलोमीटर दूर एक जगह है कसूर। कहते हैं कि भगवान राम के बेटे कुश ने कसूर और लव ने लाहौर की स्थापना की थी। मशहूर सूफी दार्शनिक बुल्ले शाह की मजार इसी शहर में है। कसूर की आबो-हवा कुछ ऐसी...

कसूर की करामाती माटी
सत्याग्रह में अनुराग भारद्वाजFri, 21 Sep 2018 10:04 PM
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लाहौर से लगभग 45 किलोमीटर दूर एक जगह है कसूर। कहते हैं कि भगवान राम के बेटे कुश ने कसूर और लव ने लाहौर की स्थापना की थी। मशहूर सूफी दार्शनिक बुल्ले शाह की मजार इसी शहर में है। कसूर की आबो-हवा कुछ ऐसी है, या बुल्ले शाह की रूमानियत अब भी इसकी फिजाओं में घुली हुई है कि यहां से एक से एक बड़े फनकार निकले और हिन्दुस्तान में मशहूर हुए। यहां पर ब्रिटिश हिन्दुस्तान की बात हो रही है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे मख्सूस नाम और मौसिकी के पटियाला घराने से ताल्लुक रखने वाले उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब और उनके भाई उस्ताद बरकत अली खान साहब यहीं से हैं। और तो और, पाकिस्तान के मशहूर जर्नलिस्ट इरशाद अहमद हक्कानी, जिन्होंने जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ को खरी-खरी सुनाई थी, वे भी यहीं से हैं। नवाज शरीफ की नाक में दम करने वाले जर्नलिस्ट नजम सेठी भी कसूर में पैदा हुए, तो चाचा चौधरी, बिल्लू और साबू को रचने वाले मशहूर कार्टूनिस्ट प्राण कुमार शर्मा भी यहीं से आते हैं। कसूर की अल्लाह वसाई कलकत्ता आकर नूरजहां बनीं। वही नूरजहां, जो ब्रिटिश हिन्दुस्तान की आलातरीन फनकारों में से एक थीं और जिनके चाहने वाले उन्हें लता मंगेशकर से एक कदम आगे पाते हैं।

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