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मैहर की मां अन्नपूर्णा

आकाशवाणी के रागम चैनल पर नित्यानंद हल्दीपुरजी की बांसुरी सुन रहा था। इत्मीनान से पहले सुना नहीं था। हरिप्रसाद चौरसिया और पन्नालाल घोष को ही सुना। सुनकर लगा कि यह तीसरे तरीके से बजाते हैं और लाजवाब...

मैहर की मां अन्नपूर्णा
प्रवीण झा की फेसबुक वॉल सेSun, 21 Oct 2018 11:33 PM
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आकाशवाणी के रागम चैनल पर नित्यानंद हल्दीपुरजी की बांसुरी सुन रहा था। इत्मीनान से पहले सुना नहीं था। हरिप्रसाद चौरसिया और पन्नालाल घोष को ही सुना। सुनकर लगा कि यह तीसरे तरीके से बजाते हैं और लाजवाब बजाते हैं। शहनाई और बांसुरी में छिद्र इतने कम हैं कि न जाने कैसे इतने स्वर निकलते हैं, सब उंगलियों और फूंक का कमाल होगा। इन तीनों अलग-अलग पीढ़ियों के बांसुरी वादकों की शिक्षा ऐसे स्कूल में हुई, जो सरोद-सुरबहार का घराना था। भला उनका क्या संबंध? लेकिन यही तरकीब है हिन्दुस्तानी संगीत की। आप पढ़कर नहीं, सुनकर सीखते हैं। कोई नहीं बताता कि कब कहां उंगली रखनी है। तभी अलग-अलग शैलियों ने जन्म लिया।

 हरिप्रसाद जी और नित्यानंद जी की गुरु मुंबई में सबसे अलग-थलग रहती थीं। पर उनमें कुछ बात होगी कि जिनको हमने पचास वर्षों में नहीं सुना, उनके पास सीखने ऐसे शूरमा जाते हों। वह बाबा की बेटी जो थीं। वह नहीं चाहती थीं कि लोग उन्हें सुनें। लोग उन पर लिखें। और लोग लिखते भी क्या? संगीत की चर्चा ही नहीं, निजी जीवन की चर्चा। कोई यह तो लिखे कि ऐसी कौन सी ध्वनि थी, जो मैहर के तमाम दिग्गजों पर भारी थी। वह वाकई स्वामी हरिदास का स्त्री रूप थीं। मां अन्नपूर्णा!

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