
खेल भावना से कहीं बड़ी राष्ट्र भक्ति
संक्षेप: एशिया कप के दुबई में खेले गए भारत-पाकिस्तान मैच का मैंने भी बहिष्कार किया था। उसे देखा नहीं, मगर जब सुबह यह खबर देखी, तो अच्छा लगा। खबर यही थी कि टीम इंडिया के कप्तान सूर्य कुमार यादव ने पाकिस्तान की टीम की बुरी तरह अनदेखी की…
एशिया कप के दुबई में खेले गए भारत-पाकिस्तान मैच का मैंने भी बहिष्कार किया था। उसे देखा नहीं, मगर जब सुबह यह खबर देखी, तो अच्छा लगा। खबर यही थी कि टीम इंडिया के कप्तान सूर्य कुमार यादव ने पाकिस्तान की टीम की बुरी तरह अनदेखी की। सूर्या के इस बात ने यह इशारा किया कि ये मैच मैदानी जंग हैं। अब पाकिस्तान से मैच भी खेल की तरह नहीं, जंग की तरह होंगे। देखा जाए, तो टॉस के बाद हाथ न मिलाकर और जीतने के बाद भी बिना हाथ मिलाए सीधे पवेलियन लौटकर पाकिस्तान की अच्छी तरह बेइज्जती की हमारे खिलाड़ियों ने। कप्तान सूर्य कुमार यादव की तारीफ इसलिए, क्योंकि उन्होंने टॉस जीतने के बाद हाथ मिलाने जैसी ऐतिहासिक परंपरा को तोड़ने का साहस किया। यह इस बात का संकेत है कि खिलाड़ी अपने अंदाज और आत्मविश्वास से परंपराओं को भी बदल सकते हैं। इस पूरे प्रकरण से यह भी पता चलता है कि खेल भावना से बड़ी है देश भावना। यह नए भारत के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की निशानी है।
राम सिंह हिन्दुस्तानी, टिप्पणीकार
पाकिस्तान के साथ मैच खेलने के पीछे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की क्या मजबूरी थी, यह तो उसके कर्ता-धर्ता ही जानते होंगे, लेकिन मैच में सूर्य कुमार यादव ने अपना फर्ज बखूबी निभाया। उन्होंने न टॉस के समय पाकिस्तानी कप्तान से हाथ मिलाया और न जीत के बाद पाकिस्तानी खिलाड़ियों से। मैच के दौरान भी उन्होंने विरोधी टीम के खिलाड़ियों को कभी भाव नहीं दिया। बीसीसीआई के साथ अनुबंध में बंधे खिलाड़ी अपने स्तर पर अधिकतम इतना ही कर सकते थे, और हमारे कप्तान ने बखूबी इसे किया। इसके लिए सूर्य कुमार को बधाई दी जानी चाहिए। जीत के बाद अपने संबोधन में उन्होंने इस जीत को पहलगाम पीड़ितों व भारतीय सेना को समर्पित किया, मंच से पहलगाम हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी और उस आतंकी कृत्य की भरपूर भर्त्सना की। यह सुखद था, क्योंकि वह इस मंच का बेहतर उपयोग कर गए। क्रिकेट में पाकिस्तान को हराना कोई बड़ी बात नहीं है। क्रिकेट ही नहीं, जीवन के लगभग हरेक क्षेत्र में वह बार-बार पराजित हो चुका है। उसको हराने से अब किसी को कोई विशेष खुशी नहीं मिलती। मगर हराने के बाद और उससे पहले भी, भारतीय कप्तान ने जिस तरह अपने देश को ऊपर रखा, वह तारीफ के काबिल है। बधाई सूर्य कुमार यादव! तुम इतना ही कर सकते थे, और तुमने खूब किया...।
प्रकाश सिंह रघुवंशी, टिप्पणीकार
सिर्फ सुर्खियां बटोरने वाला कदम
भले ही भारत ने ट्वंटी-20 का यह मुकाबला आसानी से जीत लिया, लेकिन भारतीय कप्तान ने जिस भावना का परिचय दिया, उसकी तारीफ नहीं की जा सकती। बेशक, भारतीय खिलाड़ियों ने पाकिस्तान के क्रिकेटरों से हाथ नहीं मिलाए, लेकिन सवाल यह है कि एक आतंकी देश पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेला ही क्यों गया? जो घर उजड़ गए, जिन्होंने अपने लोगों को खो दिया, जो सैनिक देश की सेवा में शहीद हो गए, उन सबकी भावनाओं को दरकिनार करके एक ऐसे देश से क्रिकेट खेला गया, जो किसी भी हालत में भारत को सिर्फ नुकसान पहुंचाना चाहता है। यह बात गले नहीं उतरती। केंद्र सरकार और बीसीसीआई के लिए व्यापार ज्यादा जरूरी है या राष्ट्र? जो भी हो, एक बड़ी भूल बीसीसीआई से हो गई। पाकिस्तान का हर जगह सिर्फ बहिष्कार होना चाहिए। वह कोई सभ्य देश नहीं है। उसका इरादा तो सिर्फ पड़ोसी देश, विशेषकर भारत का नुकसान पहुंचाना है, इसलिए उसके साथ हमें खेलना ही नहीं चाहिए था। रही बात कप्तान सूर्य कुमार यादव की, तो उनके बयान को सिर्फ सुर्खियां बटोरने वाला कदम कहा जा सकता है। इससे वह खबरों में तो आ गए हैं, लेकिन पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ न मिलाने जैसी कवायदों से पहलगाम के दर्द कम नहीं हो सकते, बल्कि जख्म और बढ़ जाएंगे। देश से बढ़कर कुछ और नहीं होना चाहिए, इसे न बीसीसीआई समझ सका और न टीम इंडिया के खिलाड़ी।
विशाल गोविंद राव, टिप्पणीकार
अव्वल तो टीम इंडिया को पाकिस्तान के साथ खेलना ही नहीं चाहिए था और एशिया कप का बहिष्कार कर देना चाहिए था। मुमकिन है, इससे बीसीसीआई को कुछ आर्थिक नुकसान होता, लेकिन जितने पैसे इसके पास हैं, उसको देखते हुए यही कहा जाता कि वह जुर्माना ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। मगर मैच न खेलने से पाकिस्तान को जो आर्थिक हानि होती, उसका उस पर बहुत बुरा असर पड़ता। खैर, जब मैच खेल ही लिया, तो खेल भावना का परिचय देना चाहिए। टॉस के बाद हाथ नहीं मिलाना या जीत के बाद पाकिस्तानी खिलाड़ियों से बिना मिले ड्रेसिंग में लौट जाना, बहुत बचकानी हरकतें हैं। अगर पूरे मैच में काली पट्टी बांधकर भी टीम इंडिया के खिलाड़ी खेलते, तो उसका बहुत बड़ा संदेश जाता। मगर यह भी नहीं किया गया और दिखावटी विरोध किए गए, ताकि उस आग को शांत किया जा सके, जो भारत में उठ रही थी। दरअसल, इस मैच को लेकर पूरे देश में विरोध का जबर्दस्त माहौल था। बहरहाल, टीम इंडिया से यह उम्मीद नहीं थी।
सुजीत कुमार, टिप्पणीकार

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