आखिर टूट ही गई शरद पवार की पार्टी
सत्ता ही सत्य है, यह शायद जिंदगी का भी सच है और राजनीति का पहला और अंतिम सच। राजनीति में इसका दूसरा नाम ‘सेवा’ है, यानी जब कोई राजनेता आम जनता की सेवा के लिए ‘बेचैन’ हो जाता है, तो फिर वह विचारधारा...
सत्ता ही सत्य है, यह शायद जिंदगी का भी सच है और राजनीति का पहला और अंतिम सच। राजनीति में इसका दूसरा नाम ‘सेवा’ है, यानी जब कोई राजनेता आम जनता की सेवा के लिए ‘बेचैन’ हो जाता है, तो फिर वह विचारधारा, संगठन और साथी, सब कुछ छोड़ कर सत्ता की शरण में आ जाता है। शायद इसीलिए महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में चार साल में चौथी बार शपथग्रहण हो रहा था। इस बार नए राजनीतिक समीकरण के साथ एनसीपी के नेता अजित पवार ने अपने आठ विधायकों के साथ शपथ ली। उस वक्त महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार अपनी 25 साल पुरानी पार्टी को टूटते देख रहे होंगे और उनके सामने 1978 की तस्वीर उभर आई होगी। जब उन्होंने ऐसे ही कांग्रेस का साथ छोड़कर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी यानी इतिहास को दोहराने की कहानी या पवार के राजनीतिक जीवन का पहिया पूरा घूम गया।
चार साल पहले महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों के बाद जब मुख्यमंत्री पद को लेकर जय-वीरू यानी भाजपा और शिवसेना की दोस्ती टूट गई, तो राष्ट्रपति शासन को खत्म करते हुए मुंबई के जागने से पहले राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने नई सरकार को शपथ दिला दी और भाजपा के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के साथ एनसीपी के अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उस वक्त तो शायद शरद पवार नींद से उठे भी नहीं थे, यह उनके लिए भयावह सपने के साथ जागना था, लेकिन रविवार को दोपहर में तो सूरज तेज चमक रहा था, तब भी शरद पवार को तस्वीर साफ दिखाई नहीं दी। उनकी बेटी सुप्रिया सुले भी उनकी मौजूदगी में हो रही बैठक की राजनीतिक चालाकियों को शायद समझ नहीं पाईं। माफ कीजिएगा, पता नहीं क्यों इस बीच मुझे श्रीरामचरितमानस के विभीषण की याद आ गई। राजभवन में शपथग्रहण समारोह में शरद पवार के सबसे खास माने जाने वाले और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल भी मौजूद थे।
कहा जाता है कि सत्ता का स्वाद एक बार लग जाए, तो छूटना मुश्किल होता है, 23 नवम्बर 2019 को सवेरे अजीत पवार ने शपथ ली थी, लेकिन वह सरकार 80 घंटे भी नहीं चली, 26 नवंबर को देवेन्द्र फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा, तो अजीत पवार की कुर्सी भी चली गई। फिर 28 नवंबर को उद्धव ठाकरे ने शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को मिलाकर महाविकास अघाड़ी की सरकार बना ली, अजीत पवार तो उसमें भी उप मुख्यमंत्री बन गए। फिर जून 2022 में उस वक्त एक बार फिर सरकार बदल गई, जब एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे का तख्ता पलट दिया। एकनाथ शिंदे को भाजपा ने मुख्यमंत्री बना दिया। अजीत पवार तब से ही बेचैन थे, पार्टी में उनका कद लगातार घटता जा रहा था। सब्र की सीमा शायद तब टूट गई, जब उनके चाचा शरद पवार ने अपनी जगह बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया, उसमें भी सुले के पास महाराष्ट्र की जिम्मेदारी थी। कुछ दिन पहले ही अजीत पवार ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि वह विधानसभा में विपक्ष के नेता नहीं बने रहना चाहते, संगठन में काम करना चाहते हैं। इससे कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू में अजीत पवार ने कहा था कि हमने ‘सेक्यूलरिज्म’ की विचारधारा तो उसी दिन छोड़ दी, जब हमने शिवसेना के साथ सरकार बनाई, यानी उन्होंने भाजपा में जाने की तैयारी पूरी कर ली थी। दो दिन पहले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और देवेन्द्र फडणवीस ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से लंबी मुलाकात की। तब महाराष्ट्र के राजभवन में रविवार को रिलीज हुई पॉलिटिकल फिल्म की पटकथा को अंतिम मंजूरी मिल गई थी। नवंबर 2019 में भी अमित शाह की पटकथा पर ही शपथग्रहण हुआ था, लेकिन उसका ट्रेलर रिलीज होते ही विवाद हो गया और फिल्म को राजभवन से उतारना पड़ा।
एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को तोड़कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की थी और अब अपने अनुभव का फायदा उठाते हुए उन्होंने एनसीपी को भी तोड़ दिया। अजीत पवार के साथ आठ विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली है, इसमें महाराष्ट्र की राजनीति के हर घाट का पानी पी चुके छगन भुजबल भी शामिल हैं और शपथ ग्रहण में मौजूद रहे प्रफुल्ल पटेल भी। अजीत पवार ने अपने साथ 44 विधायक होने का दावा किया है, यह तो उन्हें विधानसभा में साबित करना होगा। कहा जा रहा है कि मंत्री बनने वालों में से तीन पर कई मामलों की जांच चल रही है और पार्टी के कई नेताओं ने बार-बार शरद पवार से भाजपा के साथ चलने के लिए कहा था, ताकि जांच से छुटकारा मिल सके, लेकिन शरद पवार इसके लिए तैयार नहीं हुए। सवाल यह भी हो सकता है कि क्या अब शिवसेना की तरह शरद पवार की पार्टी का नाम भी उनसे छिन जाएगा। एक तर्क यह भी दिया गया कि एनसीपी के ज्यादातर लोग पटना में हुई विपक्षी एकता की बैठक में राहुल गांधी के साथ शरद पवार और सुप्रिया सुले के बैठने से भी नाराज थे। यूं भी नाराजगी और घर छोड़ने के सौ बहाने हो सकते हैं। क्या ये बहाने इस बार टिकेंगे? मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि अब तक डबल इंजन की सरकार चल रही थी, अब अजीत पवार के साथ आने से यह ट्रिपल इंजन की सरकार हो गई है और बुलेट ट्रेन की तरह दौड़ेगी। अजीत पवार राज्य में पांचवीं बार उप मुख्यमंत्री बने हैं, शायद यह भी एक रिकॉर्ड होगा।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव अगले साल अक्तूबर में होने हैं, लेकिन उससे पहले मई में लोकसभा चुनाव होंगे और उसी के लिए नीतीश कुमार की निगरानी में विपक्ष की एकता की कोशिशें हो रही हैं। इसमें भी शरद पवार की भूमिका अहम मानी जा रही है, लेकिन संसदीय राजनीति तो आंकड़ों का खेल है। जिसके पास नंबर होगा, वही वजीर बनेगा। साल 1996 में जब 13 दिन की वाजपेयी सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर बहस हो रही थी, तब प्रमोद महाजन ने अपने भाषण में कहा था कि संसदीय राजनीति कोई ‘बेस्ट की बस’ नहीं है कि जिसने खिड़की से रूमाल रख दिया, सीट उसकी हो गई, यहां बैठने के लिए नंबर चाहिए। महाराष्ट्र में भी नंबर से ही फैसला होगा, देखना होगा कि शरद पवार क्या कदम उठाते हैं। अभी बड़ा सवाल यह भी है कि क्या यह ट्रिपल इंजन की सरकार महाराष्ट्र के आम आदमी के भले के लिए कुछ बड़ा कर पाएगी और विकास को रफ्तार दे पाएगी। जो लोग सक्रिय राजनीति में नहीं हैं, वे फिलहाल राजनीतिक नैतिकता पर बहस करके अपना वक्त बिता सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)