मनोबल बढ़ाए सरकार
लगता है कि पुलिस विभाग का मनोबल गिर रहा है। पुलिस अपना काम खुले दिल से नहीं कर पा रही है। सहारनपुर में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के घर पर तोड़-फोड़ करने की खबरें अभी शांत भी नहीं हुई थीं कि गोरखपुर में...
लगता है कि पुलिस विभाग का मनोबल गिर रहा है। पुलिस अपना काम खुले दिल से नहीं कर पा रही है। सहारनपुर में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के घर पर तोड़-फोड़ करने की खबरें अभी शांत भी नहीं हुई थीं कि गोरखपुर में एक विधायक ने सरेआम एक सीनियर महिला पुलिस अधिकारी को अपमानित कर दिया। इन घटनाओं से पुलिस का मनोबल ही नहीं गिरता, बल्कि सारे विभाग में असंतोष उपजता है। यदि योगी सरकार चाहती है कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था पूरी तरह नियंत्रण में रहे, तो तमाम जनप्रतिनिधियों को पुलिस का सहयोग करना चाहिए और उसका मनोबल बढ़ाना चाहिए। आजकल के नेतागण पुलिस का अपमान करना अपनी शान समझते हैं, जो किसी भी तरह से न तो उचित है और न लाभदायक।
धर्मपाल सिंह, बंदपुर, बागपत
अच्छी नहीं यह राजनीति
मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया, तो लगा कि वह इसमें दिल्लीवासियों की भलाई में कोई महत्वपूर्ण बिल पास कर सकते हैं। मगर हकीकत में उन्होंने विशेष सत्र का इस्तेमाल एक ‘सांविधानिक संस्था’ को बदनाम करने और अपना ‘एजेंडा’ साधने के लिए किया। जिस तरह की राजनीति आप नेता अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं, वह भारत जैसे देश के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि देश में एक बड़ी आबादी आज भी अशिक्षित है और उसे चुनाव आयोग व चुनाव प्रणाली पर पूरा विश्वास है। केजरीवाल ईवीएम पर सवाल उठाकर इन लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यह सेहतमंद लोकतंत्र के लिए उचित नहीं।
कन्हैया पांडेय, रघुनाथपुर, बिहार
प्रेस की स्वतंत्रता
‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर’ द्वारा सालाना जारी किए जाने वाले वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में हमें 136वां स्थान मिला है। इसमें पिछले वर्ष से तीन स्थानों की गिरावट आई है। यह बेहद चिंता का विषय है। असल में, इस गिरावट की वजह पत्रकारों पर जानलेवा हमले, प्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन व उग्र राष्ट्रवादी हैं। हमें इस विषय पर गहन चिंतन-मनन करना चाहिए और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूत बनाना चाहिए।
अनिरुद्ध पुरोहित, देहरादून, उत्तराखंड
ध्यान दे चुनाव आयोग
चुनाव आयोग ने किसी समय आस्था वाले चुनाव चिह्नों पर रोक लगा दी थी, क्योंकि ऐसे चुनाव चिह्न वोटरों को प्रभावित कर सकते थे। अब आयोग को लोगों को प्रभावित करने वाले राजनीतिक पार्टियों के नामों को बदलवाने की शुरुआत करनी चाहिए। जैसे ‘आम आदमी पार्टी’ से ऐसा लगता है कि यह हर आम आदमी की पार्टी है, और जनता पार्टी से, देश की जनता की पार्टी। नामों से प्रभावित होकर अगर कुछ वोट भी इन पार्टियों के पक्ष में जाते हैं, तो वह हमारे लोकतंत्र को कमजोर करेगा।
दिनेश कुमार सिसोदिया, मेरठ
राहत भरा फैसला
निर्भया के गुनहगारों की फांसी की सजा को बरकरार रखकर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इससे महिलाओं के पक्ष में यह संदेश भी गया है कि ऐसे जघन्य अपराध करने वाले बख्शे नहीं जाएंगे। यह सही है कि इस फैसले को आने में देरी हुई, साथ ही नाबालिग अपराधी को कम सजा मिलना भी इसकी एक कमजोर कड़ी रही, पर इससे सजा का महत्व कम नहीं होता। हां, सरकार को भी चाहिए कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए वह ठोस कदम उठाए।
किरण नेगी, रुद्रप्रयाग
कुपोषण के मारे बच्चे
महाराष्ट्र का एक जिला पालघर आदिवासी बहुल है। पिछले कुछ महीनों में यहां सैकड़ों बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हुई है। यह तस्वीर विकास के हमारे तमाम दावों की कलई खोलती है। राज्य व केंद्र सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।
जसवंत सिंह, नई दिल्ली