‘भाजपा के लिए दक्षिण की बड़ी पहेली’ स्तंभ के लेखक ने दक्षिण के एक महत्वपूर्ण राज्य तमिलनाडु की स्थानीय राजनीति की जटिलताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला है। हम उत्तर भारत के लोगों के लिए यह आश्चर्य का विषय हो सकता है कि 39 लोकसभा सीटों वाले राज्य तमिलनाडु में अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी आज भी संघर्ष करती दिख रही है। संभवत: इसका एक कारण वहां के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन पर स्थानीय द्रविड़ आंदोलन का गहरा प्रभाव है, जिसके केंद्र में हिंदुत्व और हिंदी भाषा के प्रति आशंका और विरोध है। एक बात और, वहां के समाज का एक बड़ा वर्ग केंद्र सरकार की परमाणु बिजली जैसी परियोजनाओं के विरोध में है। उसे लगता है कि इन परियोजनाओं के माध्यम से केंद्र सरकार राज्य के पर्यावरण को नष्ट करने पर तुली हुई है। ऐसे में, देश की सबसे बड़ी और सत्ताधारी पार्टी भाजपा की जिम्मेदारी दूसरे दलों की अपेक्षा ज्यादा बढ़ जाती है कि वह आगे बढ़कर राज्य के लोगों की चिंताओं को दूर करे।
चंदन कुमार, देवघर
नाम बड़े और दर्शन छोटे
दिल्ली विश्वविद्यालय ने जनवरी के अंतिम हफ्ते में प्रथम वर्ष के छात्रों का जो रिजल्ट घोषित किया है, वह ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’ वाली कहावत को चरितार्थ करता है। विश्वविद्यालय ने जो नतीजा तैयार किया, उसमें कुछ छात्रों के सब्जेक्ट को बदलकर रिजल्ट में उन्हें अनुपस्थित बता दिया गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में दूर-दूराज से छात्र पढ़ने के लिए आते हैं। वे घर-परिवार से दूर यहां रहते हैं। फिर जब कोई छात्र अपने रिजल्ट पर शक जाहिर करते हुए कॉपी की दोबारा चेकिंग करवाना चाहता है, तो उसे एक निर्धारित रकम चुकानी पड़ती है। सवाल यह है कि जब कॉपी ही गलत तरीके से जांची गई, तो क्या यह रकम छात्रों को वापस नहीं मिलनी चाहिए? शिक्षण संस्थानों की इस गलती से छात्रों का मनोबल टूटता है। इससे विश्वविद्यालय की छवि भी खराब होती है।
निशांत रावत, दिल्ली विश्वविद्यालय
मिलकर करें विकास
केंद्र और राज्यों में किसी भी पार्टी की सरकार हो, वे जनता की पसंद होती हैं। इसीलिए केंद्र व राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकार होने पर एक-दूसरे को सहयोग न देना प्रजातंत्र का गला दबाना है। प्रजातांत्रिक धर्म भी यही कहता है कि सभी सरकारें एक-दूसरे की मदद करें। एक-दूसरे से तालमेल करके देश व राज्यों को विकास के मार्ग पर आगे ले जाना इन सरकारों का प्रमुख कर्तव्य है। मगर हकीकत में अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग अलापने के लिए कोई भी पार्टी देश और जनता के हित में समझौता करने या झुकने को तैयार नहीं दिखती। यह पीड़ादायक स्थिति है। इस स्थिति में हम प्रजातंत्र के फलने-फूलने की कल्पना कतई नहीं कर सकते। हमारे सभी राजनीतिक दलों को यह बात संज्ञान में लेनी चाहिए।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
किन्नरों का आतंक
दिलशाद गार्डन की तरफ से जब उत्तर प्रदेश की सीमा में हम प्रवेश करते हैं, तो एक टोल टैक्स बूथ है। इस टोल टैक्स बूथ पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड की बसें टोल देने के लिए रुकती हैं। लेकिन यहां किन्नरों ने आतंक मचा रखा है। वे जबरदस्ती बसों का दरवाजा खोलकर घुस जाते हैं और सवारियों से जबरन वसूली करते हैं। यदि कोई व्यक्ति उन्हें पैसे नहीं देता, तो वे गाली-गलौज पर उतर आते हैं। पिछले कुछ दिनों से किन्नरों का यह गैंग बहुत सक्रिय हो गया है। दुखद है कि इनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं दिखता। उम्मीद है कि संबंधित विभाग अपनी जिम्मेदारी समझेंगे और यात्रियों को मानसिक यंत्रणा से मुक्ति दिलाएंगे।
कुमार रूद्र, दिलशाद गार्डन, दिल्ली