उलटफेर का विश्व कप
विश्व कप फुटबॉल के इतिहास में कई बार अप्रत्याशित परिणाम सामने आए हैं। लेकिन इस बार के विश्व कप में कुछ ज्यादा ही उलटफेर देखने को मिल रहा है। अब तो लगता है कि क्रिकेट की तरह फुटबॉल को भी लोग महान...
विश्व कप फुटबॉल के इतिहास में कई बार अप्रत्याशित परिणाम सामने आए हैं। लेकिन इस बार के विश्व कप में कुछ ज्यादा ही उलटफेर देखने को मिल रहा है। अब तो लगता है कि क्रिकेट की तरह फुटबॉल को भी लोग महान अनिश्चितताओं का खेल कहने लगेंगे। कम से कम इस बार विश्व कप को लेकर भविष्यवाणी करके कोई यह नहीं बता सकता कि कौन सी टीम मैच जीतेगी? इस बार आइसलैंड जैसे नन्हे से देश ने अर्जेंटीना की दिग्गज टीम से मैच ड्रॉ करा लिया, तो पांच बार की चैंपियन टीम ब्राजील अपना मैच स्विट्जरलैंड से नहीं जीत पाई। गत चैंपियन जर्मनी तो मैक्सिको से अपना मैच हार बैठा। लेकिन सबसे बड़ा उलटफेर तो तब देखने को मिला, जब कोरिया ने जर्मनी को हराकर विश्व से ही बाहर कर दिया। साफ है, भविष्य का कोई कयास नहीं लगाया जा सकता। हां, सिर्फ एक चीज तय है कि अब मुकाबला और कांटे का होगा।
अनित कुमार राय, बाघमारा, धनबाद
मजहब की सियासत
पासपोर्ट हासिल करने के लिए तन्वी सेठ ने पासपोर्ट विभाग को गुमराह करने की कोशिश की और पूरे मामले को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया। वह इसमें सफल भी हो गई थीं। उन्हें पासपोर्ट मिल गया था, जिससे जाहिर होता है कि कानून किस कदर सांप्रदायिक मसले पर काम करता है? मगर अब सच्चाई सामने आ चुकी है। आगे यह मामला जो भी रूप ले, लेकिन नियमों की अनदेखी करके बने पासपोर्ट का यह पूरा मसला यही बता रहा है कि मजहब के नाम पर सियासत करना आज सबसे आसान और कारगर तरीका है। क्या यह स्थिति बदलनी नहीं चाहिए?
चैतन्य, पलवल, हरियाणा
सबसे कड़ी सजा हो
आज बेटी की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है। पहले निर्भया, फिर आसिफा और अब संस्कृति के साथ जो कुछ हुआ, वह सुनकर रूह कांप जाती है। मुश्किल यह है कि निर्भया केस में इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी अपराधियों के गरदन में फांसी का फंदा नहीं डाला जा सका है। अगर ऐसा हो गया होता, तो अपराधियों के मन में खौफ होता और शायद आसिफा और संस्कृति सुरक्षित रहती। ऐसे में, अब मौजूदा केंद्र सरकार के पास सिर्फ एक साल का समय बचा है। वह चाहे, तो ऐसा कोई कानून संसद से पारित कर सकती है कि दुष्कर्मियों को तत्काल फांसी दी जा सके। ऐसे घिनौने अपराध के लिए कोई दूसरी सजा शायद कम होगी। यह उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार समय रहते इस ओर कदम बढ़ाएगी।
सलमान मलिक, रुड़की, उत्तराखंड
सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत
सर्जिकल स्ट्राइक का जिन्न एक बार फिर बोतल से निकलकर राजनीतिक विमर्श के मैदान पर पुख्ता सुबूत के रूप में आया है। दो साल पुराने इस ऑपरेशन पर जिस तरह से कुछ राजनीतिक पार्टियों ने संदेह जताते हुए प्रमाण तक मांग लिए थे, उन्हें अब उचित जवाब मिल गया होगा। तब इसे भाजपा की गुमराह करने वाली राजनीति का हिस्सा बताया गया था। मगर भूलना नहीं चाहिए कि ऐसे बेजा विरोधों से हम कहीं न कहीं पाकिस्तान को खुश होने का मौका देते हैं, क्योंकि वहां का मीडिया ऐसे बयानों के बहाने इस ऑपरेशन को भारत का फैलाया हुआ भ्रम बताता है। हालांकि अब भी वीडियो के सामने आने के बाद इसे आगामी चुनाव की राजनीति से जोड़ा जा रहा है, जिस पर हंसी ही आती है। क्या अब सेना से प्रमाण मांगने वाले अपनी गलती स्वीकारेंगे? कुछ नेताओं की वजह से सेना के अभियान भी अब राजनीतिक द्वंद का मैदान बन गए हैं। अच्छा तो यह होता कि पाकिस्तान से आ रही चुनौतियों का सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर मुकाबला करते।
शैलेन्द्र सिंह, नई दिल्ली