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पीछे छूटते मुद्दे

    देश में नागरिकता संशोधन कानून और नागरिक रजिस्टर के खिलाफ जिस तरह से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं, उसमें कई दूसरे जरूरी मुद्दे पीछे छूट गए हैं। जनता बेशक सीएए और एनआरसी को लेकर...

पीछे छूटते मुद्दे
हिन्दुस्तानSun, 26 Jan 2020 11:00 PM
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देश में नागरिकता संशोधन कानून और नागरिक रजिस्टर के खिलाफ जिस तरह से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं, उसमें कई दूसरे जरूरी मुद्दे पीछे छूट गए हैं। जनता बेशक सीएए और एनआरसी को लेकर आक्रामक है, लेकिन इससे भारत को विश्वगुरु बनाने वाले तत्व- जैसे शिक्षा, तरक्की और तकनीक का हाल बहुत बुरा है। शिक्षण संस्थान राजनीतिक विचारधारा में बंट गए हैं, तो नौजवान बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर हैं। महंगाई लगातार बढ़ रही है और तकनीक व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। सरकार इन मुद्दों पर न तो कोई चर्चा कर रही है, और न ही ठोस कदम उठा रही है। भारत 117 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक में 102वें और 189 देशों के मानव विकास सूचकांक में 129वें पायदान पर है। साफ है, नौजवानों को आगे बढ़ाने की जरूरत है। सिर्फ विश्वगुरु कहने से भारत यह रुतबा हासिल नहीं कर सकता, इसके लिए ठोस कदम उठाने ही होंगे।

मोहम्मद सिराजुद्दीन


बेरोजगारों का रजिस्टर

जहां एक तरफ राष्ट्रीय नागरिकता संशोधन कानून को लेकर धरना-प्रदर्शन चल रहे हैं, तो दूसरी ओर एक वर्ग इस कानून का समर्थन भी कर रहा है। यानी, देश में कहीं उम्मीद, तो कहीं नफरत का माहौल है। मगर यह हर किसी को समझना चाहिए कि देश के बुनियादी विकास की पहली शर्त यही है कि नफरत को किनारे किया जाए। नफरत तरक्की के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। हालांकि इस मुद्दे पर पक्ष या विपक्ष में बैठने की बजाय हमें देश की मौजूदा स्थिति के बारे में सोचना चाहिए। जिस प्रकार आज देश में बेरोजगारों की फौज बढ़ रही है, उनके राहत के लिए क्या कुछ काम सरकारी स्तर पर नहीं होने चाहिए? मेरा मानना है कि आज देश के ज्यादातर नौजवानों की यही मांग है कि एक राष्ट्रव्यापी बेरोजगार रजिस्टर बने, ताकि बेरोजगारी की स्थिति का सही-सही आंकड़ा आ सके। इस रजिस्टर में बेरोजगारों की संख्या दर्ज की जानी चाहिए, ताकि उनकी उम्मीदों को देखकर सरकार नए रोजगार का सृजन करे। इससे काम और दाम तो मिलेंगे ही, देश की अर्थव्यवस्था भी बढ़ जाएगी। सरकार इस रजिस्टर को तैयार करने की दिशा में आगे बढ़े।

विजय पपनै, फरीदाबाद


काम में असमानता 

अस्थाई और अनुबंध पर नौकरी कर रहे कर्मचारियों के साथ असमानता का व्यवहार आखिर क्यों किया जाता है? देश का संविधान सभी को समानता का अधिकार देता है, लेकिन कई विभागों व कार्यालयों में कर्मचारियों के साथ असमानता का व्यवहार दिखने में आता है। समाचार पत्रों के माध्यम से तो यह भी पता चलता है कि अस्थाई शिक्षकों को परीक्षा की उत्तरपुस्तिका जांचने से भी मना कर दिया जाता है। उन्हें तो समान वेतन और स्थाई नौकरी की मौलिक सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है। एक ही काम में स्थाई और अस्थाई कर्मियों में ऐसी असमानता क्या स्वीकार्य होनी चाहिए?

अनुज कुमार गौतम, दिल्ली


बड़बोले बयानों पर रोक

हाल के समय में यह देखने को मिला है कि गरिमापूर्ण भाषा का इस्तेमाल न करने से हमारे जन-प्रतिनिधियों को शर्मसार होना पड़ा है। नेताओं के बोल में संयम व सम्मान होना चाहिए, लेकिन स्थिति यह है कि तमाम दलों के नेतागण (फिर चाहे छोटे हो या बड़े) खुलेआम अमर्यादित बयान सार्वजनिक जगहों, मीडिया आदि में देते रहते हैं। इसलिए नेताओं के ऐसे बड़बोड़ेपन पर रोक लगाने के लिए भी कानून बनाया जाना चाहिए। नेतागण सेना के जवानों, महिलाओं पर बेजा टिप्पणी करने के बाद यह कहना भी नहीं भूलते कि उनके बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। नेताओं की अमर्यादित टिप्पणी पर रोक ही लगनी चाहिए। 

मनकेश्वर महाराज ‘भट्ट’
 मधेपुरा, बिहार
 

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