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याद रहेंगे नैयर साहब 

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर की मृत्यु के साथ ही पत्रकारिता के एक अत्यंत जीवंत स्कूल का भी अंत हो गया। अपनी पेशेवर प्रतिबद्धता के लिए मशहूर नैयर साहब की बड़ी खूबी यह थी कि अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी के...

याद रहेंगे नैयर साहब 
हिन्दुस्तानFri, 24 Aug 2018 09:48 PM
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वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर की मृत्यु के साथ ही पत्रकारिता के एक अत्यंत जीवंत स्कूल का भी अंत हो गया। अपनी पेशेवर प्रतिबद्धता के लिए मशहूर नैयर साहब की बड़ी खूबी यह थी कि अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी के पाठकों में भी वह समान रूप से लोकप्रिय थे। एक ऐसे दौर में, जब मीडिया व पत्रकारों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और खुद पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोग इसका दबाव महसूस कर रहे हैं, तब एक बेबाक और मननशील पत्रकार की मृत्यु सचमुच खलने वाली है। आखिर ऐसी शख्सियतों को देखकर ही तो कई सारे पत्रकार साहस संजोते होंगे। खैर, नैयर साहब एक भरा-पूरा एवं सार्थक जिंदगी जीकर गए हैं। उनके सद्कर्म हमेशा पत्रकारिता और पत्रकारों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
श्रुति शाही
न्यू पुनाईचक, पटना- 23 
अधर में लटकी योजना 
केंद्र और राज्य की योजनाओं के बीच तालमेल न बनने की वजह से आदर्श गांव योजना अधर में लटक गई है। ब्लॉक, तहसील व गांव को सड़क मार्ग से जोड़ने का काम जारी है। प्रत्येक गांव में नाली, खड़ंजा, शौचालय आदि बनवाए जा रहे हैं। बिजली पहुंचाने का काम भी जारी है, मगर आदर्श गांव बनाने के लिए इन सबके अलावा बेहतर स्कूल, डिस्पेंसरी, डाकघर, बैंक, पंचायत घर, पक्का श्मशान ग्रह, हाट-बाजार का होना भी जरूरी है। आदर्श गांव योजना को आगे बढ़ाने के लिए जन-प्रतिनिधियों के सहयोग की जरूरत है, जो आपसी तालमेल के अभाव में नहीं मिल पाता। 
श्याम सिंह माछरा, मेरठ
रक्षाबंधन का आधार
रक्षाबंधन बहन-भाई के प्यार का त्योहार है। देश के कोने-कोने में इसे पूरे हर्षोल्लास और पूरी गरिमा के साथ मनाया जाता है, लेकिन यहीं इस विडंबना पर भी गौर करना होगा कि जिस देश में रक्षाबंधन जैसा त्योहार मनाया जाता है, वहीं पर कन्या भू्रण हत्या, लड़कियों के साथ दुराचार और छेड़छाड़ की घटनाएं भी सुर्खियां बनती रही हैं। क्या यह रक्षाबंधन जैसे त्योहारों की अवमानना नहीं है? एक तरफ तो बहनों को सुरक्षा प्रदान करने का वचन और दूसरी तरफ देश की लड़कियों का सुरक्षित न होना, कितनी शर्मनाक और निंदनीय बात है। हर त्योहार और पर्व को मनाने का सिर्फ कर्मकांड नहीं होना चाहिए, बल्कि उसके इतिहास को जानना चाहिए, और उसके पीछे की भावना का सम्मान करना चाहिए, तभी हमारे पर्व-त्योहारों की मर्यादा बची रहेगी और भारत की सभ्यता-संस्कृति को चार चांद लग पाएंगे। साथ ही हम एक सुसभ्य समाज बनने में भी सफल हो सकेंगे। भारत की महान सांस्कृतिक और नैतिक विरासत को बनाए रखने के लिए सभी त्योहारों को हंसी-खुशी मनाना चाहिए और इनके लिए अपनी व्यस्त जिदंगी से टाइम जरूर निकालना चाहिए। 
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
raju09023693142@gmail.com
काला कानून 
संविधान की मूल संकल्पनाओं में एक संकल्प यह भी है कि कोई भी आरोपी दोषसिद्ध होने तक निदार्ेष माना जाएगा। पर एससी/एसटी ऐक्ट मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को दरकिनार करके केंद्र सरकार द्वारा किया गया हालिया फैसला संविधान की इस मूल भावना के विपरीत और बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है कि भारतीय न्यायिक प्रक्रिया लंबी, जटिल और काफी खर्चीली है। ऐसी सूरत में महज आरोप लगा देने भर पर गिरफ्तारी का कानून किसी भी दृष्टि से उचित करार नहीं दिया जा सकता। ऐसे काले कानून का कई बार अनुचित लाभ उठाया जाता है और यह अवसर वह सरकार उपलब्ध करा रही है, जिस पर ऐसी स्थितियों को उत्पन्न न होने देने का दायित्व है। हमारे हजारों शहीदों ने जिस सुराज का लक्ष्य लेकर अपना सर्वस्व न्योछावर किया था, वह सुराज तो  यह हरगिज नहीं है। 
राजीव प्रकाश शर्मा, गोला
rajivprakashsharma1966@gmail.com

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