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हंगामा करते नेता

राजनीति का गिरता स्तर लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। प्रतिदिन यही समाचार सुनने को मिलता है कि आज भी सदन नहीं चल सका अथवा आज भी सदन में हंगामे के कारण कोई काम नहीं हो सका। इससे देश के नागरिक यह सोचने पर...

हंगामा करते नेता
हिन्दुस्तान टीमSat, 24 Mar 2018 01:33 AM
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राजनीति का गिरता स्तर लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। प्रतिदिन यही समाचार सुनने को मिलता है कि आज भी सदन नहीं चल सका अथवा आज भी सदन में हंगामे के कारण कोई काम नहीं हो सका। इससे देश के नागरिक यह सोचने पर विवश हो गए हैं कि इस ‘परंपरा’ को किस तरह खत्म किया जाए? क्या राजनीतिक दलों को खुद इस पर विचार नहीं करना चाहिए? क्या जनता ने उन्हें इसीलिए चुनकर भेजा है कि लोकसभा और राज्यसभा में विरोध के नाम पर लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जाएं? ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए किसी कड़े कानून की आवश्यकता अब पहले से भी अधिक महसूस होने लगी है। इनमें माननीयों को काम के हिसाब से पैसा मिलना, वेल में आकर हंगामा करने पर तुरंत सदन से बाहर कर देना और पूरे सत्र में दो बार से अधिक हंगामा करने पर सदस्यता समाप्त कर देने जैसे प्रावधान होने चाहिए। इसी से लोकतंत्र की रक्षा की जा सकती है, और माननीयों के इस तरह के रवैये पर रोक लगाई जा सकती है।

विनय सिंघल, गाजियाबाद

जागरूकता जरूरी

बीते 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया गया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2050 तक भारत में भीषण जल संकट पैदा हो सकता है। उपलब्ध तथ्यों के अनुसार, देश में साढे़ सात करोड़ नागरिक शुद्ध पेयजल से वंचित हैं। साफ है कि ये आंकड़े भविष्य में बेहद गंभीर जल-संकट पैदा होने के संकेत दे रहे हैं। इस संकट की सबसे बड़ी वजह बढ़ती आबादी है, जो जल को प्रदूषित करके इसका लगातार दोहन कर रही है। ताल-तलैयों में पानी जमा करने की विधि अब प्राचीन परंपरा का हिस्सा बन गई है। गांव-देहातों में भी पोखर आदि खत्म हो चले हैं और वहां अब बहुमंजिला इमारतें चमकने लगी हैं। जल दोहन का सिलसिला यदि इसी अबाध गति से चलता रहा, तो भावी पीढ़ी बूंद-बूंद पानी को तरस सकती है। शुद्ध पेयजल की उपलब्धता बनाए रखने के लिए सभी तबके के लोगों को जागरूक करना जरूरी है। इसके लिए वर्ष भर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। सरकार व नागरिकों की सामूहिक भागीदारी से ही जल संचय के प्रयास सफल हो सकते हैं।

हितेंद्र डेढ़ा, चिल्ला गांव, दिल्ली


बच्चे बनते शिकार

जिन तरुणों के कंधों पर हमारे रहनुमा उभरते भारत की नई तस्वीर गढ़ रहे थे, उसी तस्वीर का स्याह पक्ष राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी का नया आंकड़ा दिखा रहा है। एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, भारत में बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में 11 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, जो हमारी नीतियों व कानूनी कार्रवाइयों को कठघरे में खड़ा करता है। यूं तो पॉस्को कानून में नाबालिगों की सुरक्षा के प्रावधान निहित हैं, पर इसे प्रभावी रूप से अमली जामा पहनाने की आवश्यकता है। सर्वाधिक युवा आबादी वाले देश में बच्चों के प्रति कुंठित मानसिकता यदि पनप रही है, तो उसके उन्मूलन के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को एक स्वर में आवाज बुलंद करनी होगी। हमारे भविष्य की बुनियाद कमजोर न हो, इसकी हर मुमकिन कोशिश हर तबके को करनी ही चाहिए।
विकास कुमार
 आईआईएमसी, नई दिल्ली


आर्थिक भ्रष्टाचार के केंद्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए नोटबंदी की थी, ताकि कोई कालेधन को अपनी तिजोरी की शान न बनाकर रख पाए। मगर आज जिस तरह बैंकों से गड़बड़ियों की खबरें आ रही हैं, यही लगता है कि उन्होंने तो आर्थिक भ्रष्टाचार की कड़वी दवा नोटबंदी को भी बेअसर कर दिया है। अब यही लगता है कि आर्थिक भ्रष्टाचार एक लाइलाज रोग बन चुका है, जिसका अंत शायद कोई चमत्कार ही करेगा।

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

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