बीच बहस में
कल तक जो धुआं था, आज उससे चिनगारी निकलती दिख रही है। आश्चर्य नहीं कि जल्द ही वह आग सियासत को अपनी गिरफ्त में ले लेगी। जब बात नाथूराम गोडसे की होगी, तो निशाने पर राष्ट्रपिता को ही रखा जाएगा, क्योंकि...
कल तक जो धुआं था, आज उससे चिनगारी निकलती दिख रही है। आश्चर्य नहीं कि जल्द ही वह आग सियासत को अपनी गिरफ्त में ले लेगी। जब बात नाथूराम गोडसे की होगी, तो निशाने पर राष्ट्रपिता को ही रखा जाएगा, क्योंकि फासला महज तीन गोलियों का है। मगर गोडसे के हत्यारा होने या न होने पर जब बात निकली है, तो बात दूर तलक जाएगी। बेशक गोडसे की बंदूक से निकली गोलियों ने बापू की जान ली थी। फिर भी वह हत्यारा नहीं था, तो कानून की नजरों में कातिल कौन ठहराया जाएगा? यह अलग बात है कि देश के बंटवारे पर गोडसे का मतभेद बापू की हत्या की वजह बनी। मगर क्या विचारों का मतभेद किसी को हत्यारा या राष्ट्रभक्त मान लेने का पैमाना हो सकता है? छिड़ी बहस के बीच बदलते सियासी मिजाज से देश का इतिहास 360 डिग्री घूम जाए, तो कोई हैरानी नहीं होगी।
एम के मिश्रा, झारखंड
वीडियो से बढ़ता शक
जिस तरह से सोशल मीडिया में ईवीएम से जुड़ी गतिविधियों या इनको एक से दूसरी जगह ढोते हुए दिखाया जा रहा है, वह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। इससे भ्रम की स्थिति बनती जा रही है, और चुनाव प्रक्रिया पर से लोगों का विश्वास भी डिगता जा रहा है। अगर खाली ईवीएम को यहां से वहां ले जाना गलत नहीं है, तब भी चुना गया वक्त गलत है। चुनाव समाप्त होने या फिर गिनती पूरी होने के बाद यह काम किया जा सकता था। लोकतंत्र की रक्षा हर हाल में होनी चाहिए। इस देश का यही मिजाज है कि कोई शासक सर्वशक्तिमान नहीं होता। यह देश इंदिरा गांधी जैसी सख्त महिला को भी सत्ता से हटा चुका है। सरकारें तो आती-जाती रहेंगी, पर को देश हमेशा बेहतरी की ओर बढ़ना चाहिए।
राजू सिमरी, बख्तियारपुर
नतीजे का दिन
लोकसभा चुनाव के नतीजों को जानने का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों की धड़कनें वैसे-वैसे तेज होती जा रही हैं। यह स्वाभाविक भी है। संभव है कि पिछले चुनाव में जीतने वाले कुछ प्रत्याशी अपने व्यवहार के कारण इस बार जनता की अदालत में टिक न पाएं, जिससे उनके ऐशो-आराम में कमी आएगी। हालांकि ऐसे नेता पार्टी को भी जबर्दस्त नुकसान पहुंचाते हैं। फिर, नई लोकसभा में ऐसे प्रतिनिधि भी पहुंचेंगे, जिन्हें मतदाताओं ने पार्टी के साथ-साथ उनकी साफ-सुथरी छवि पर विश्वास करके चुना होगा। इससे पता चलता है कि नेताओं को जनता के बारे में सोचना ही होगा, नहीं तो उनसे सत्ता की कुरसी वह मौका आने पर छीन सकती है।
विनम्र प्रताप
पिलखुआ, उत्तर प्रदेश
परेशान करती मेट्रो
मेट्रो रेल यानी आरामदायक सफर, जाम से मुक्ति और समय की बचत। साथ ही, इससे प्रदूषण से भी मुक्ति मिलती है। लेकिन आए दिन इसमें होती खराबी ने यात्रियों को परेशान कर दिया है। इससे वे अपने गंतव्य तक समय पर नहीं पहुंच पाते और काफी समस्याएं झेलने के लिए मजबूर होते हैं। मेट्रो किराया बढ़ाने की बात तो हर माह की जाती है, लेकिन इसकी सुविधाएं दिन-ब-दिन घटती जा रही हैं। यह बताता है कि मेट्रो भी सार्वजनिक परिवहन के बाकी साधनों की तरह सही रखरखाव न होने का शिकार हो गई है। दिल्ली जैसे भीड़-भाड़ वाले शहरों में एक से दूसरे स्थान पर समय से पहुंचने के लिए मेट्रो एक वरदान है। इसकी वजह से दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों की दूरी अब मिनटों में सिमट गई है, लेकिन मेट्रो में आए दिन होने वाली खराबी से यह दूरी घंटों में बदलती दिख रही है। सरकार बेशक मेट्रो किराए में वृद्धि करे, लेकिन वह मुसाफिरों को तमाम सुविधाएं भी जरूर सुनिश्चित करे, अन्यथा लोगों का मेट्रो से मोहभंग होने लगेगा।
दीपक वाष्र्णेय, राजीव नगर, दिल्ली