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कठघरे में डॉक्टर

जिस डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है, वही आज ऐसे-ऐसे काले कारनामों में शामिल हैं कि जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। किडनी के कारोबार को लेकर हुआ हालिया खुलासा कुछ ऐसा ही है। खबरें बता रही...

कठघरे में डॉक्टर
हिन्दुस्तानTue, 19 Feb 2019 10:11 PM
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जिस डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है, वही आज ऐसे-ऐसे काले कारनामों में शामिल हैं कि जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। किडनी के कारोबार को लेकर हुआ हालिया खुलासा कुछ ऐसा ही है। खबरें बता रही हैं कि यह कारोबार भारत ही नहीं, विदेशों में भी अपनी पकड़ जमा चुका है। वैसे तो केंद्र सरकार ने गैर-कानूनी अंग-प्रत्यारोपण के खिलाफ नियम-कानून बना रखे हैं, लेकिन हालिया खुलासे बता रहे हैं कि गरीब लोगों को इस गोरखधंधे का शिकार बनाया जा रहा है। इसमें कुछ डॉक्टरों की अहम भूमिका थी। आखिरकार जनता विश्वास भी करे, तो किस पर? इस गोरखधंधे में बड़े-बड़े अस्पतालों और डॉक्टरों का शामिल होना बताता है कि अब आम इंसान कहीं सुरक्षित नहीं है। ऐसे ही कुछ डॉक्टरों के लालच की वजह से लोग सभी डॉक्टरों को शक की निगाह से देखने लगते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए था।
विजय कुमार धनिया, नई दिल्ली
vijaykumardhania@gmail.com
शहादत का अपमान 
पुलवामा में शहीद हुए वीरों की शहादत का कुछ नेताओं द्वारा मजाक बनाया गया है। एक तरफ पूरा देश इस शहादत पर गमगीन है, तो दूसरी तरफ कुछ नेता अपनी बदजुबानी से बाज नहीं आ रहे। वे तो शव-यात्रा में भी हंसते हुए दिखाई दे रहे। सरकार ने भी अपनी तरफ से गलत संदेश दिया है। सरकारी कामकाज को न रोककर कोई मंत्री चुनावी रैलियों में व्यस्त है, तो कोई जनसभा को संबोधित कर रहा था। एक नेता तो मंच पर ठुमके लगाते देखे गए। जब हम नेताओं और अभिनेताओं की मौत पर राष्ट्रीय शोक घोषित कर सकते हैं, तो सैनिकों की शहादत पर क्यों नहीं? क्या यह वीर सैनिकों की शहादत का अपमान नहीं है? 
शान भारती, बरेली
shaanbharti@gmail.com
सख्त फैसला जरूरी
केंद्र सरकार को अब दिखाना ही होगा कि उसे 130 करोड़ देशवासियों की पूरी चिंता है। आतंकवाद से निपटने के तरीकों को लेकर हम इजरायल की प्रशंसा तो खूब करते हैं, लेकिन उस जैसा हम दिखा नहीं पाते। हमारे यहां कभी राजनीति आड़े आ जाती है, तो कभी कुछ और। अब बहुत हो चुकी राजनीति। सरकार के साथ-साथ राजनीतिक दलों को भी निजी चिंता छोड़कर देश की चिंता करनी चाहिए। हमारा देश जब सुरक्षित होगा, तभी राजनीतिक दल और नेता भी सुरक्षित रहेंगे। यह समझने का वक्त अब आ चुका है। आतंकवाद का साथ देने वालों के साथ-साथ पूरी दुनिया को भी दिखाना होगा कि हम शांति के पुजारी तो हैं, लेकिन कायर बिल्कुल नहीं हैं। एक बात और, अलगाववादी हों या देश को तोड़ने की मंशा रखने वाले दूसरे लोग, उन सबके खिलाफ सख्त कदम उठाने होंगे। राजनीतिक विरोध और राष्ट्र-विरोध के अंतर को समझना होगा। ऐसा होने पर ही देश से आतंकवाद का खात्मा संभव है।
युधिष्ठिर लाल कक्कड़, गुरुग्राम
1940ylkakkar@gmail.com
आतंकवाद से जंग
बहुत दुख की बात है कि जो लोग सीमा पार बैठे आतंकवादियों पर ‘बदले की कार्रवाई’ करने की वकालत कर रहे हैं, वही अपने देशवासियों के साथ बुरा बर्ताव भी कर रहे हैं। इस तरह की खोखली मानसिकता वाले लोग आतंकियों और पाकिस्तान को भला क्या और कैसे सबक सिखा पाएंगे? यह भी साफ दिख रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ शुरू हुई लड़ाई किस तरफ जा रही है? शहीदों की आत्मा निश्चित रूप से यह देखकर रो रही होगी कि उनकी शहादत के नाम पर अपने ही देश के भाई-बहनों को देशद्रोही बताकर यहां से खदेड़ने की बातें हो रही हैं। साफ है कि एक राष्ट्र के तौर पर भारत एक बार फिर अपनों से ही हारता दिख रहा है। इसे हर हाल में एकजुट होकर बचाने की जरूरत है, क्योंकि एक भारतीय के लिए इससे बड़ी देशभक्ति और जिम्मेदारी शायद कुछ दूसरी कतई नहीं हो सकती।
अंकित कुमार मिश्र, बेंगलुरु
ankit.kumar18ug@apu.edu.in

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