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किस्म-किस्म के रावण

जिसको जले हजारों साल हो गए, उस सतयुगी रावण के प्रतीकों को हर साल दशहरे पर मारकर कितने खुश होते हैं हमारे नेता और बधाई देते हुए कहते हैं कि ‘रावण’ के प्रतीक को मारकर हमने...

किस्म-किस्म के रावण
हिन्दुस्तानFri, 19 Oct 2018 12:35 AM
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जिसको जले हजारों साल हो गए, उस सतयुगी रावण के प्रतीकों को हर साल दशहरे पर मारकर कितने खुश होते हैं हमारे नेता और बधाई देते हुए कहते हैं कि ‘रावण’ के प्रतीक को मारकर हमने ‘बुराई’ को मिटाकर ‘अच्छाई’ को जीत लिया, जबकि समाज में साल-दर-साल रावण रूपी असली बुराइयां तेजी से बढ़ती जा रही हैं। फिर चाहे वे बढ़ती महंगाई के रूप में हों या बढ़ती बेरोजगारी के रूप में, जनसंख्या विस्फोट के रूप में, मी टू के रूप में हो या छोटी-छोटी बच्चियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म के रूप में, बढ़ते भ्रष्टाचार के रूप में हो या बढ़ते काले धन के रूप में। हमारे नेता नकली रावणों को मारने की बजाय दशानन बनी समाज की असली बुराइयों को दूर करने की कोशिश करें, तब मानें। 

शकुंतला महेश नेनावा, इंदौर 

अकबर ने छोड़ी सल्तनत

आखिरकार विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर को पद छोड़ना ही पड़ा। उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिलाओं की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही थी, उसे देखते हुए उनके समक्ष इसके अलावा और कोई चारा नहीं रह गया था कि वह त्यागपत्र दे दें। उचित होता कि वह विदेश यात्रा से लौटते ही त्यागपत्र दे देते, क्योंकि उस समय तक कई महिलाएं उन पर यौन उत्पीडन के आरोप लगा चुकी थीं। बावजूद इसके विदेश यात्रा से लौटने पर पहले तो उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोप खारिज किए और फिर खुद को कठघरे में खड़ा करने वाली महिलाओं पर मानहानि का मुकदमा करने की घोषणा की। वह एक महिला के खिलाफ अदालत पहुंच भी गए। एक क्षण के लिए यह माना जा सकता है कि एक-दो महिलाएं किसी एजेंडे के तहत उनके खिलाफ खड़ी हो गई हों, लेकिन इस पर यकीन करना कठिन है कि एक के बाद एक करीब 20 महिलाओं ने उन पर मिथ्या आरोप लगाए हैं। 

अमन सिंह, बरेली

जलाएं भ्रष्टाचार के पुतले 

माना जाता है कि दशहरा का पर्व असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है। इसलिए दशहरे का त्योहार मनाने से पहले अपने अंदर बैठे रावण को मारना बहुत जरूरी है। लेकिन क्या ऐसा हो पाता है? क्या केवल राम द्वारा रावण का अंत करने से देश तरक्की कर पाएगा? हमारे देश में एक राम पैदा होते हैं, तो जाने कितने रावण पैदा हो जाते हैं। क्या हर वर्ष हम ऐसे ही रावण का पुतला जलाकर दशहरा मनाते रहेंगे? मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार का निवारण और मन से पापों का दहन करने से ही असली रावण का अंत हो सकता है। प्राय: युवा पीढ़ी में अत्यंत जोश और उमंग पाया जाता है। यह पीढ़ी इस उमंग और जोश को दिखावटी रावण के अलावा भ्रष्टाचार का अंत करने में लगाए, तो शायद इस प्रतिक्रिया से कई मासूमों की जान बच जाए। मेरी तरह जाने और भी कितनी लड़कियां होंगी, जिनके घरवाले सिर्फ इस भय से दशहरे के मेले में नहीं ले जाते, क्योंकि वहां औरतें सुरक्षित नहीं हैं। 

 जूली कुमारी
उत्तम नगर, नई दिल्ली

कब बनेगा राम मंदिर

आज दशहरा है। देश भर में राम-लक्ष्मण-हनुमान जी की पूजी की जाएगी। लेकिन रामलला का जहां असल में जन्म हुआ था, वहां अब भी वह तंबू में भक्तों की माया देख रहे हैं। बाबरी ढांचे को धवस्त करते हुए हमारे राजनेताओं और संतों ने बड़े-बड़े दावे किए थे कि भव्य मंदिर बनेगा। यह हिंदुओं के गौरव का प्रतीक स्थल होगा। बाबरी के उस ढांचे को धराशाई हुए ढाई दशक बीत गए, लेकिन वहां आज तक एक ईंट भी खड़ा नहीं हुआ। इस मंदिर का सपना लिए जिन लोगों ने अपना बलिदान दिया, क्या उनके साथ धोखा नहीं हुआ? यह मुद्दा आस्था से ज्यादा राजनीति का बनाया गया, इसीलिए ज्यादा अड़चनें बढीं। अगर इसे सत्ता की सीढ़ी न बनाया गया होता, तो शायद वहां मंदिर बन भी गया होता। अब तो राम भक्तों की नजरें अदालत पर टिकी हैं।
विविधा सिंह
ललिता पार्क, लक्ष्मी नगर, दिल्ली

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